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जनवरी 4, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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सहने की नहीं, कुछ करने की जरूरत है -     सुषमा त्रिपाठी हमारी जिंदगी में बहुत से पल ऐसे होते हैं जब हमें सख्त कदम उठाने की जरूरत पड़ती है मगर हम ऐसा नहीं करते। खासकर हम लड़कियों को तो यही सिखाकर बड़ा ही किया जाता है कि वह हमेशा दूसरों के बारे में सोचे। हमेशा यही फिक्र की जाती है कि लोग क्या कहेंगे मगर एक बार भी कोई यह सोचने की जहमत नहीं उठाता कि लड़कियां किन स्थितियों में जी रही हैं। हम मानें या न मानें आज भी भारतीय परिवार अपनी बेटियों की ख्वाइशों के साथ समझौता करने को तैयार रहते हैं। दुनिया बड़ी अजीब है क्योंकि यहां उसे खामोश रहने को कहा जाता है जो खुद पीड़ित है मगर एक बार भी अपराधियों पर लगाम कसने की कोशिश नहीं की जाती। इस पत्रिका में मैं बतौर पत्रकार नहीं, सावित्री गर्ल्स कॉलेज की पूर्व छात्रा के रूप में भी नहीं बल्कि आप सबकी तरह नयी पीढ़ी के सामने अपनी बात रखने की कोशिश कर रही हूं। मेरा मानना है कि अगर आप अपना सम्मान नहीं कर सकते तो दूसरों का सम्मान करना कभी नहीं सीखेंगे। दूसरों के बारे में सोचना अच्छी बात है मगर अपने आत्मसम्मान की बलि देकर आप किसी का भला नहीं करते बल्क