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जिंदगी के सितार पर छेड़ा गया जीजिविषा का मधुर राग प्रेम शर्मा मैम

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जीवन में कुछ लोग होते हैं जो आपको जीने की राह तो दिखाते ही हैं, वह हिम्मत भी बन जाते हैं । वह आपके पास रहें या न रहें...आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं...मैं बार - बार कहती हूँ कि मैं जो कुछ हूँ...मेरे विश्वास के कारण, अपनी शिक्षिकाओं के कारण हूँ, अपने दोस्तों के कारण हूँ..। मेरी कहानी में परिवार रक्त सम्बन्धों से नहीं जुड़ा..वह हृदय से जुड़ा है । जब स्कूल में पढ़ती थी तो प्रिंसिपल रूम के सामने एक क्लास चलती थी..तब मैं सातवीं या आठवीं में थी। उस क्लास में जो शिक्षिका बैठती थीं...उनकी कक्षा के बाहर हम अपनी प्रैक्टिस के लिए..चूंकि गाती थी तो उस समय सूद मिस (स्व. कृष्ण दुलारी सूद) के सामने हम छात्राओं को अभ्यास करना होता था। मिस गाना सुनती थीं...जब तक उनको तसल्ली न होती...हमारा गाने का अभ्यास चलता रहता...तब वह शिक्षिका मेरे लिए कौतुहल ही थीं। नाम भी बाद में पता चला....प्रेम शर्मा...मैं यह नहीं कह सकती कि मैं पहले से उनको प्रिय थी क्योंकि स्कूल में उनसे पढ़ने का मौका नहीं मिला । लंबा अरसा बीत गया...स्कूल के बाद कॉलेज..कॉलेज के बाद विश्वविद्यालय....लंबा वक्त गुजरा...बहुत से उतार -च