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जनवरी 12, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैनेज करने से कुछ भी मैनेज नहीं होता...बोलना जरूरी है सही समय पर..

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आज बात परिवार व्यवस्था और पारिवारिक सम्बन्धों को लेकर करनी है। कलियुग का हवाला देकर सारा ठीकरा युवा पीढ़ी पर फोड़ दिया जाता है इसलिए बात जरूरी है। बात स्त्रियों की भूमिका और उनकी रसोई वाली राजनीति पर भी होगी और चालाकी से भरी चुप्पी पर भी होगी । पारिवारिक सेटिंग और अंडरस्टैंडिंग से उत्पन्न चुप्पी पर होगी। मतलब सम्बन्धों की आड़ में सौदेबाजी और अवसरवादिता पर भी होगी...आज चीरफाड़ होगी । इस बातचीत में अपने अनुभवों के आधार पर ही बात करनी है। कम्पनी टूटती है क्योंकि बॉस अपने कर्मचारियों को अपने अधीनस्थ विश्वासपात्रों के हाथों में उनके हाल पर छो़ड़ देता है और वह देखने की जहमत नहीं करता कि उनके अधीनस्थ बच्चों के साथ कैसा सलूक करते हैं। ठीक इसी तरह खानदान व परिवार टूटते हैं क्योंकि परिवार का मुखिया तब चुप रहता है जब उसे बोलना चाहिए और परिवार की इकाई में होने वाले घटनाक्रमों से या तो अनजान बना रहता है या जानबूझकर निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि जो हो रहा है उसकी निजी जिन्दगी को क्षति नहीं पहुंच रही । उसका इमोशनल अटैचमेंट या तो महज औपचारिकता मात्र है...या खानदान के दूसरे सदस्य उस पर हावी होकर अपना...