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एकतरफा प्यार और भाईचारा अब और नहीं निभाना हमें

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  क्या इससे बीमारी नहीं फैलेगी? आज एक ऐसे निषय को छूने जा रही हूँ जिस पर बात करने में भी लोगों को दिक्कत होती है। खुद मैंने भी नहीं सोचा था कि मैं इस मुद्दे पर कुछ कहूँगी। व्यक्तिगत तौर पर किसी धार्मिक मामले पर लिखने से मुझे परहेज ही रहा है मगर धार्मिक मामला जब राष्ट्रीय होने लगे। जब धर्मनिरपेक्षता और अनेकता में एकता जैसे शब्दों और वाक्यों का दुरुपयोग होने लगे और चालाकी से खामोशी को ढाल बना लिया जाये तो बोलना ही पड़ता है। यही कारण है कि एक वर्जित विषय पर बात करने की शुरुआत कर रही हूँ और वह भी भावनात्मक रूप से नहीं नहीं, किसी कुंठा के साथ नहीं बल्कि तथ्यों के साथ इतिहास में जाकर तलाशते हुए..। जी हाँ, इस्लाम और हिन्दू - मुस्लिम रिश्ते पर ही बात कर रही हूँ। भारत से विदेशों में गये और जाकर बसने वाले अप्रवासी भारतीय अर्द्ध भारतीय माने जाते हैं...इंडो - अमरीकी....इंडो चाइनीज जैसे शब्द उनके लिए हैं मगर भारत में वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा रही है। हमने सबको अपना लिया...उनको भी भारतीय मान लिया जिन्होंने हमारे इतिहास से खिलवाड़ किया, हमारे मंदिर तोड़े, हमारे पुस्तकालय जलाये...धर्मान्तरण के नाम प