एकतरफा प्यार और भाईचारा अब और नहीं निभाना हमें

 

क्या इससे बीमारी नहीं फैलेगी?

आज एक ऐसे निषय को छूने जा रही हूँ जिस पर बात करने में भी लोगों को दिक्कत होती है। खुद मैंने भी नहीं सोचा था कि मैं इस मुद्दे पर कुछ कहूँगी। व्यक्तिगत तौर पर किसी धार्मिक मामले पर लिखने से मुझे परहेज ही रहा है मगर धार्मिक मामला जब राष्ट्रीय होने लगे। जब धर्मनिरपेक्षता और अनेकता में एकता जैसे शब्दों और वाक्यों का दुरुपयोग होने लगे और चालाकी से खामोशी को ढाल बना लिया जाये तो बोलना ही पड़ता है। यही कारण है कि एक वर्जित विषय पर बात करने की शुरुआत कर रही हूँ और वह भी भावनात्मक रूप से नहीं नहीं, किसी कुंठा के साथ नहीं बल्कि तथ्यों के साथ इतिहास में जाकर तलाशते हुए..।

जी हाँ, इस्लाम और हिन्दू - मुस्लिम रिश्ते पर ही बात कर रही हूँ। भारत से विदेशों में गये और जाकर बसने वाले अप्रवासी भारतीय अर्द्ध भारतीय माने जाते हैं...इंडो - अमरीकी....इंडो चाइनीज जैसे शब्द उनके लिए हैं मगर भारत में वसुधैव कुटुम्बकम की परम्परा रही है। हमने सबको अपना लिया...उनको भी भारतीय मान लिया जिन्होंने हमारे इतिहास से खिलवाड़ किया, हमारे मंदिर तोड़े, हमारे पुस्तकालय जलाये...धर्मान्तरण के नाम पर हमारे पूर्वजों के साथ अमानवीय लोहमर्षक अत्याचार किये..मगर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या उन्होंने कभी अपनी गलती मानी? मनुस्मृति और बाह्मणों के अत्याचार का हवाला देकर आज तक सामान्य वर्ग और हिन्दू धर्म को मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हुए गालियाँ दी जाती हैं। इसके बावजूद कि अयोग्य होते हुए भी अल्पसंख्यक और निचली जातियों के नाम पर आप हमारे अधिकारों पर कब्जा जमाये बैठे हैं...तो आज आपको सुनना होगा...अगर हम आपकी गालियाँ सुन रहे हैं तो आज आप भी खरी - खरी सुनेंगे और खासकर वह अल्पसंख्यक (?) जो शिक्षित तो हैं मगर हिन्दू उनके लिए सिर्फ टूल हैं अपनी तरक्की का...वह जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सारी सुविधाएं उठाते हैं और जब जरूरत पड़े तो मजहब का परदा लगा लेते हैं.,..जुबान पर जिनकी ताला लग जाता है...वह सभी प्रबुद्ध और प्रगतिशील, शिक्षित मुस्लिम, धर्मनिरपेक्ष और अपनी पहचान के संकट से गुजरने वाले बुद्धिजीवी सुनेंगे। मेरा सवाल उनकी खामोशी को लेकर है जिसमें एक चालाकी है..।

भाईचारे का मतलब यह नहीं होता कि किसी के अधिकारों को खत्म करके, किसी की सुरक्षा से समझौता करके वोटबैंक बनाकर किसी एक वर्ग को आगे बढ़ाया जाए और वह इतना बढ़े कि मनमानी के मद में पागल होता जाए...बल्कि यह होता है कि दोनों ही वर्गों और धर्मों की अस्मिता को बरकरार रखा जाये और दोनों धर्म एक दूसरे के लिए खड़े हों...मगर इस्लाम की सबसे ज्यादा लड़ाई तो हिन्दू लड़ रहे हैं...क्या आप धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम दोस्त, बन्धु कभी हिन्दू और हिन्दी के पक्ष में लड़े हैं....जवाब है नहीं....आपके लिए कोई राजेश, सुरेश, सतबीर एक दूसरे की जान का दुश्मन बन जाता है और आप तमाशा देखते हैं और उसका आनन्द उठाते हैं...फिर कैसा भाईचारा? जिन्ना ने आपके लिए देश बना दिया मगर वह आपके साथ नहीं रहा मगर आपके कारण कोई गाँधी अपने ही धर्म के लोगों के बीच बुरा बना,...इस देश ने आप मुस्लिमों के कारण गाँधी को खोया क्योंकि गाँधी आपके हक की ही बात कर रहे थे...वह देश को एक रखना चाहते थे....कोई खान अब्दुल गफ्फार खान भी था जो आपकी ही कौम का था और इस मुल्क से बहुत प्यार करता था मगर आपने अपना आदर्श जिन्ना को चुना। हमें मस्जिदों में जाने से कोई ऐतराज नहीं लेकिन आप मंदिर की तारीफ करने से डरते हैं....क्या यह मौकापरस्ती नहीं है कि सुविधाएं चाहिए तो भारतीय बन जाओ और जब जिम्मेदारी निभानी हो तो मजहबी बन जाओ, मेरा सवाल इस मौकापरस्ती से है...। एक अयोध्या की मस्जिद टूटी और आपने कोहराम मचा दिया...जनाब...कोहराम तो हमें मचाना चाहिए...क्योंकि आपकी सारी मस्जिदें ही हमारे मंदिरों के मलवे पर बनी हैं... आपको फिलिस्तीन में मुसलमानों के मरने का गम है मगर आप पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों के धर्मान्तरण और बांग्लादेश में टूट रहे मंदिरों पर आप एक शब्द नहीं कहते...एक नेता पूरे कोलकाता को मिनी पाकिस्तान बताता है और आपके मुँह में दही जमा रहता है...एक ओवेसी कहता है कि वह 15 मिनट में हिन्दओं को साफ कर देगा और आपमें इतनी हिम्मत नहीं कि आप तनकर यह कह सकें कि एक मुसलमान के होते हुए किसी ओवेसी की यह हिम्मत नहीं है कि ऐसा कहे.,..ऐसा कहने से पहले उसे एक मुसलमान का सामना करना होगा....न....आप सुनते हैं और चुप रह जाते हैं। कश्मीर में आतंकियों की मौत पर दुःख मनाते हैं....भारतीय ध्वज लहराने पर कासगंज में किसी चन्दन को मार डालते हैं,,,,किसी अंकित की ऑनर किलिंग कर देते हैं और जब खुद पर बात आई तो खुद को विक्टिम बताते हैं...। अपनी कौम को अगर आपनी रूढ़ियों के अन्धेरे में रहने दिया तो आप दोषी हैं...आप खुद आगे बढ़े और अपनी प्रगतिशीलता और भारत के प्रति प्रेम अगर आप अपने बच्चों को नहीं सिखा सके हैं, अगर आप तबलीगी जमात, ओवेसी, ओसामा बिन लादेन को भारत से ज्यादा प्रेम करते हैं...तो आप पर सवाल उठेंगे।

दरअसल, कोई भारतीय़ ऐसी नापाक हरकत कर ही नहीं सकता क्योंकि भारतीय होने का मतलब आधार कार्ड और राशन कार्ड का नम्बर भर नहीं है, आपके पूर्वज बाहर से आए, आक्रमणकारी थे और जिनके हाथ हमारे पूर्वजों के खून से रंगे हो, जो भारत के हारने पर पटाखे चलाता हो, वह क्या भारतीय होने के योग्य है?  भारत के अधिकांश मुस्लिम लोगों के पूर्वज हिन्दू ही थे इस बारे में विभिन्न स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती हैं । फ़्रन्कोईस गौइटर ने अपनी पुस्तक में माना है कि 99 प्रतिशत से अधिक भारतीय मुस्लिम लोग, हिन्दू मूल के थे जो धर्मान्तरित हुए। इसी प्रकार के विवरण अन्य स्रोतों से भी मिलते है की वर्तमान दक्षिण पूर्वी एशिया के मुस्लिम जनसँख्या के मूल पूर्वज हिंदू थे। 

महाराष्ट्र के एक मस्जिद से लोगों द्वारा पुलिस अफसर को खदेड़ने का वीडियो लोगों को देखने को मिला। चार मीनार के आस-पास की भीड़ की तस्वीरें हों या पंजाब के बाज़ारों से आई तस्वीरें, देख कर हर बार यही प्रश्न उठता है कि नियमों को लेकर जब मुस्लिम समाज द्वारा व्यक्तिगत या सामूहिक आचरण की बात आती है तो फिर प्रशासन को क्या हो जाता है? तब उन्हें क्या हो जाता है जो हिन्दू त्योहारों या धार्मिक समारोहों के खिलाफ लगातार बोलने में जरा भी नहीं हिचकते? क्या हो जाता है जो महामारी के संक्रमण रोकने की जिम्मेदारी केवल हिन्दू समाज पर डालना चाहते हैं? 

आप खुद को भारतीय नागरिक बताते हैं और सारी सुविधाएं पाते हैं..। नोटबंदी के समय बैंकों के सामने कतारों में सबसे पहले नोट बदलने की होड़ से लेकर हर सरकारी सुविधा का लाभ उठाने में आप आगे रहते हैं...सरकारें आपका तुष्टिकरण करती हैं लेकिन आप चुपचाप मलाई खाते हैं। चलिए मान लिया ममता बनर्जी तुष्टिकरण करती हैं मगर आपकी जिम्मेदारी क्या है...आपने फायदा क्यों लिया...अगर आप अपनी मस्जिद के शीर्ष पद पर किसी हिन्दू को नहीं चाहते तो आपने यह कैसे मान लिया है कि मंदिर के शीर्ष पद हम आपकी कौम के किसी व्यक्ति को स्वीकार कर लेंगे? आपने क्यों नहीं कहा कि नहीं, यह गलत है और ऐसा नहीं होना चाहिए...जब आपको ईमाम भत्ता मिला तो आपने ऐतराज क्यों नहीं किया और क्यों नहीं कहा कि अगर हर धर्म के प्रतिनिधि को यह भत्ता मिले वरना आप इसे मंजूर नहीं करेंगे...जब आपकी अकादमी को आगे ले जाने की बात हो रही थी तो आपने क्यों नहीं कहा कि हिन्दी अकादमी को भी बराबर का हक मिलना चाहिए और जब ईद के लिए बाजार खुल रहे हैं तो नवरात्रि पर भी बाजार खुलने चाहिए? आखिर गरीबी तो धर्म नहीं देखती...यह अच्छा है कि पैगम्बर मोहम्मद के नाम पर कार्टून बने तो आप गर्दनें उतार लेंगे और आपके एम. एफ. हुसैन हमारे देवी - देवताओं के अश्लील चित्र बनाकर हमारा अपमान करें तो वह आपकी नजर में कला है। यह क्या विचित्र नहीं लगता कि एक तरफ तो आप महिलाओं को परदे में रखते हैं और सब शाहीन बाग जैसे आन्दोलन होते हैं तो उनको ही सड़क पर उतार देते हैं...अपनी तस्दीक के लिए जब आप कागजात माँगते हैं तो आप कागज नहीं दिखाना चाहते....जब हमें कागज दिखाने में ऐतराज नहीं है तो आपको क्या दिक्कत है।

अगर आपकी कट्टरता बुरी नहीं है तो हमारी कट्टरता गलत कैसे हो सकती है...जब आप हिन्द पर राज्य करने का ख्वाब संजोते हैं तो हम अपने धर्म की रक्षा क्यों न करें...अगर गज्बा ए हिन्द सही है तो हिन्दू राष्ट्र की कल्पना गलत क्यों और कैसे है? अगर आप भारतीय हैं तो इस्लाम आपका मूल धर्म तो है नहीं क्योंकि यहाँ पर धर्मान्तरण से ही इस्लाम का प्रसार हुआ यानी आपके पूर्वज हिन्दू थे...और सम्भव है कि वह धर्म की रक्षा के लिए ही वीरगति को प्राप्त हुए हैं तो आप किसके लिए लड़ रहे हैं। क्या जवाब देंगे अपने पूर्वजों को...कभी सोचा है...। अपनी कौम के बच्चों को भी आपने नफरत ही सिखायी है...वरना मदरसे हथियार रखने की जगह तो नहीं थे...हम हिन्दुओं को अपने धार्मिक मामलों तक ही किसी धार्मिक गुरु की बात सुननी होती है और उसकी भी बाध्यता नहीं है..मगर आपको वोट किसको देना है...यह भी आपकी मस्जिदों से तय होता है...आप हिन्दुओं को काफिर कहते हैं और अपनी हुकूमत के लिए भी आपको एक हिन्दू और वह भी एक ब्राह्मण ही चाहिए....ऐसे में आपको अपना मजहब क्यों याद नहीं आता? आपने नयी दुनिया की रोशनी अपने बच्चों को दी नहीं...वरना खुलकर इन्सानियत और भारत के लिए बोलते। 

इस्लाम में वह लोग भी हैं जो इस देश के लिए जिए...और इस देश के लिए शहादतें दीं...जिन्होंने इस देश को एक किया...आपके आदर्श वह होने चाहिए....अजीम प्रेम जी से सीखिए...हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे कलाम से सीखिए...कैप्टन हामिद की शहादत को हम भारतीय कैसे भूल सकते हैं...आपको दारा -शिकोह से सीखना चाहिए...रहीम..रसखान...ताज बेगम...आप इनसे क्यों नहीं सीखते....हम ओवेसी या मौलानाओं से शिकायत नहीं कर सकते क्योंकि शिकायत हमें आप जैसे पढ़े - लिखे लोगों से है...उनकी खामोशियों से है...उनकी बेईमानियों से है। भारत को नेताओं ने नहीं, जनता ने बनाया है और जब जनता ठान ले तो उसकी ही इच्छा चलती है। जिस तरह ताली एक हाथ से नहीं बजती, उसी तरह भाईचारा और रिश्ते एकतरफा नहीं होते...गंगा - यमुना अपने अस्तित्व को बनाये रखकर एक दूसरे की रक्षा करके ही साथ रह सकते हैं...और यह तब होगा जब वह एक -दूसरे के बारे में सोचें...उनके हक में आवाज उठाए...उनकी हिफाजत करें...अगर ओम को अजान से दिक्कत नहीं है तो अजान को मंदिरों की घंटियों से समस्या नहीं होनी चाहिए...अगर नेता हमें लड़वा रहे हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके उकसावे या सुविधाओं के जाल में न फँसें और तुष्टिकरण न होने दें। किसी को दिखावे के लिए टोपी या तिलक न लगाना पड़े...ऐसे उदाहरण सामने लाइए जिन पर भारत को गर्व हो...अगर शरीयत से मोह है तो संविधान से मिलने वाली सुविधाओं का लोभ भी आपको छोड़ना होगा..,दूसरों की नहीं जानती मगर मैं इतना जानती हूँ कि अगर आपका आदर्श औरंगजेब हैं....अगर आप भारत की हार पर जश्न मनाते हैं...अगर आपको मिनी पाकिस्तान जैसे शब्दों से फर्क नहीं पड़ता...अगर आप वन्दे् मातरम पर ऐतराज करते हैं...अगर आपके लोग आतंक बनकर दूसरों को असुरक्षित कर रहे हैं और आप तुष्टिकरण की मलाई खा रहे हैं तो मेरे लिए आपका सम्मान करना या आपसे प्रेम करना सम्भव नहीं है...भारत भूमि की सन्तान हूँ और इतनी कृतघ्न नहीं कि मैं गुरु गोविन्द सिंह, गुरु तेग बहादुर, छत्रपति शिवाजी महाराज. महारानी जीजाबाई, महाराणा प्रताप के बलिदानों को भूल जाऊँ। मुझे अजान से दिक्कत नहीं है मगर आपको भी हमारे यज्ञ, हवन, मंदिर की घंटियों...त्योहारों का स्वागत करना होगा...। घर - घर में हवन हो, ओम् की ध्वनि हो...गुरुवाणी हो....चर्च की प्रार्थना हो...बुद्घम् शरणं गच्छामि की ध्वनि हो....ऐसा भारत चाहिए मुझे..मेरे तिरंगे को सम्मान मिले...तिरंगे का सम्मान आपका सम्मान हो...ऐसा देश चाहिए हमें।  हमें कुछ गलत कहा जाए तो आपको बुरा लगे...कोई हमारे खिलाफ फैसले ले तो आप हमारे लिए खड़े हो...कोई आपको बुरा कहे तो उसका विरोध करें..कोई आपके अधिकार छीनें तो हम तन जाए...पर जो हो मामला दोतरफा हो...एकतरफा प्यार और भाईचारा अब नहीं निभाना हमें।

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