‘दादा’ की राह पर चलती दिख रही हैं ‘दीदी’
दिन बदलते हैं और जब दिन बदलते हैं तो पुराने दिनों को भूलने में देर नहीं लगती। अगर गुजरा हुआ कल याद भी आता है तो सत्ता में आने के बाद अधिकतर सत्ताधारी बदला लेने और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो जाते हैं। सत्ता के नशे की तासीर शायद कुछ ऐसी ही होती है कि लोकतन्त्र की दुहाई देकर कुर्सी पाने वाले सदाचारी नेता कब दुराचार के दलदल में चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता। ईमानदारी की जगह बेईमानी और चापलूसी ले लेती है, विनम्रता तानाशाही में इस कदर बदलती है कि स्पष्टवादी ही दुश्मन बन जाते हैं, जो लंका में जाता है, वही रावण बन जाता है और जो कुर्सी पा जाता है, वही अहंकारी और तानाशाह बन जाता है, उसे याद ही नहीं रहता है कि आज जिन चीजों के लिए वह प्रशासन और कानून को अपने हित में इस्तेमाल कर रहा है, कल यही उसके दुश्मन हुआ करते थे। सीबीआई को तोता कहा गया मगर सत्ता के हाथों इस्तेमाल होती पुलिस को क्या कहेंगे, पता नहीं। बहरहाल बंगाल में इन दिनों विपक्ष और सत्ता के बीच कुश्ती चल रही है, ममता बनर्जी जिस राह को पीछे छोड़कर आ गयी हैं, अब उसी राह पर चलने के लिए वाममोर्चा, काँग्रेस और भाजपा बेताब हैं। ममता जब विपक्...