सरकार सुधरे मगर हमें भी मुफ्तखोरी छोड़नी होगी, तभी बचेंगे किसान
मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद किसान आन्दोलन की आग पंजाब और राजस्थान तक पहुँच रही है। किसान हमारे लिए मौसम हैं, अन्नदाता, हर अखबार, हर मीडिया, हर ब्लॉग, जहाँ देखिए अन्नदाता को श्रद्धा अर्पित की जा रही है। सोशल मीडिया पर आँसू बहाए जा रहे हैं, तमिलनाडु के किसान जब जंतर – मंतर में धरना दे रहे थे, तब भी बहाए जा रहे थे, आगे भी बहाए जाते रहेंगे। सरकार को घेरने वालों को एक मुद्दा मिल गया है, बाकी सब कुछ ज्वलनशील बनाना तो उनके बाएँ हाथ का खेल है। दरअसल, समस्या की जड़ कहीं और नहीं हमारे भीतर है। जस्टिन बीबर के शो पर 100 करोड़ खर्च करने वाला यह देश, 76 हजार रुपए में एक टिकट खरीदने वाले हम शहरी, शिक्षित, सभ्य, सम्भ्रांत और बुद्धिजीवी जब पहले तो फुटपाथ पर फल और सब्जियाँ बेचने वालों से तो कुछ खरीदते नहीं हैं, खरीदते हैं तो 18 रुपए किलो प्याज को 5 रुपए में खरीदते हैं, दूध का भाव 1 रुपए लीटर भी बढ़ गया तो आन्दोलन से लेकर आगजनी करते हैं और फिर किसान को उसकी फसल की लागत नहीं मिलती तो छाती पीटते हैं। हर गृहिणी या गृह स्वामी जब आधे से कम दम दरों पर राशन खरीद कर लाता है तो उसे विजेता घोषित कर...