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जनवरी 15, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिन्दी वालों के हाथों सतायी जा रही है हिन्दी, बचाना आम जनता को होगा

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हिन्दी को बचाने के लिए हिन्दी वाले अब सड़क पर उतरने की योजना बना रहे है। हवाई यात्रा कर दिल्ली पहुँच रहे हैं इसलिए कि भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता न मिले। बड़ी - बड़ी संगोष्ठियाँ होती हैं, लाखों का खर्च होता है मगर जो बुनियादी मुद्दे हैं उस पर बात ही नहीं होती।  40 साल से पुस्तक मेले में हिन्दी के प्रकाशक स्टॉल लगाते आ रहे हैं मगर पुस्तक मेले की आयोजन समिति में हिन्दी का कोई लेखक, प्रकाशक या बुद्धिजीवी नहीं है, हिन्दी के संरक्षक खामोश हैं। पत्रकार और हिन्दी का होनेे के नाते आवाज उठायी। http://salamduniya.in/index.php/epaper/m/23910/58555716cc1b6 हिन्दी माध्यम स्कूलों में बच्चों को साल बीतने के बाद पाठ्यपुस्तकें मिलती हैं मगर कोई आवाज नहीं उठती और न कोई सड़क पर उतरता है। बंगाल में इस्लामीकरण और तुष्टिकरण की नीति राज्य सरकार ने अपना रखी है और शर्म की बात यह है कि इस पुस्तक की अनुवाद में प्रक्रिया में हिन्दी के विद्वान शामिल हैं। सवाल यह है कि आर्थिक कारण व्यक्ति की सोच और अन्तरात्मा पर भारी कैसे पड़ते हैं और सवाल यह है कि ऐसे व्यक्ति को सम्मान क्यों मिलना चाहिए? हिन्दी का हि