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नेता ही नहीं, जनता भी किसी की नहीं होती

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कई बार मैं सोचती हूँ, हर एक कहानी सुखद अंत तक क्यों नहीं पहुंच पाती। जब पीछे मुड़कर देखने का मन करता है और पीछे मुड़ जाती हूँ तो सबसे पहले ध्यान कहानियों के अंत तक जाता है। भारत से हूँ और भारतीयता की ही बात करुँगी,आख्यानों के सन्दर्भ में ही बात करूँगी। इस सृष्टि की रक्षा के लिए सदा से ही ईश्वर कई रूप लेकर धरती पर उतरते रहे हैं...वैसा ही जीवन जीते हैं..जैसा एक मनुष्य जीता है। उतने ही कष्ट, उतनी ही लांछनाएं और उतने ही कलंक उनको मिलते हैं जो एक साधारण मनुष्य की सोच से भी बाहर है मगर इतना कुछ होने पर भी वह सत्य और सृजन का मार्ग कभी नहीं छोड़ते क्योंकि वे ईश्वर हैं। पौराणिक कहानियों के आभामण्डल में दबे अन्धकार पर नजर डालिए तो पता चलता है, किसी का भी जीवन आसान नहीं था..किसी का भी जीवन सुख से भरा हुआ नहीं था..व्यक्तिगत जीवन में हम जिनको अवतार समझते हैं, उनको भी मानसिक यंत्रणाओं से गुजरना पड़ा है। पत्थर वही लोग उठाया करते हैं जिन्होंने पत्थर कभी खाया न हो। मेरी समझ में जनता का हाल सदा से यही रहा है..राजा से लेकर राजगद्दी तक और लोकतंत्र की भाषा में प्रधानमंत्री से लेकर कुर्सी तक...हमेशा से बु