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पैर की जमीन है इतिहास, खो मत दीजिए

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हम वर्तमान में जीने वाले और इतिहास से डरने वाले लोग हैं...लोग तो ईश्वर से भी डरते हैं...कई बार भक्ति में प्रेम की जगह डर ले लेता है और हम जिससे डरते हैं, उसे याद नहीं करना चाहते। इतिहास एक बड़ा दायित्व है मगर इतिहास लेखन में ईमानदारी बरतने से पहले ही उसमें जब धर्म का मसाला कुछ अधिक डाल दिया जाए तो वह विद्रूप लगने लगता है। इतिहास का चयन भी तो अपनी सुविधानुसार करने की परिपाटी है...कौन सा महापुरुष कितने वोट दिलवा सकता है... इस समीकरण ने इतिहास में उन लोगों के साथ अन्याय करवाया जो नींव की ईंट थे। वरना क्या वजह रही होगी कि जिस दरभंगा राज परिवार ने भारत को रेलवे दी, विमानन सेवा दी, देश का पहला भूकम्प प्रतिरोधी भवन दिया...आज उनकी धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी सरकारें नहीं लेना चाहतीं। क्यों कलकत्ता विश्वविद्यालय अपने दानदाता रामेश्वर सिंह को बस रिकॉर्ड तक समेट बैठा है...आखिर जिस परिसर की जमीन उनसे ?मिली, वहाँ उनकी एक भी प्रतिमा क्यों नहीं है...क्यों उनके नाम पर आयोजन नहीं होते और कैसे एक विशाल प्रासाद को, जो कि हेरिटेज था. उसे ढहाकर इस शहर की बड़ी इमारत खड़ी कर दी गयी।  क्यों 500 साल से अध