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बॉलीवुड को धकेल कर एक दूसरे के घाव हरे होने से बचाइए...बस यही सौहार्द है

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क्या यह जरूरी था...एकता दिखाने का क्या यह एकमात्र रास्ता है जबकि हम मानसिक तौर पर तैयार ही नहीं है जब मुझसे कोई बुरे लहजे से बात करता है..या किसी के साथ कड़वे अनुभव हों...तो मैं नजरअन्दाज कर भी दूँ तो उसे माफ नहीं कर पाती...यह आपके साथ भी होता होगा...परिवार बँट जाते हैं तो उनको अलग होना पड़ता है...वह दूर हो जाते हैं....मगर दूर होकर भी पास रहते हैं। अगर दूर नहीं भी होते तो एक सीमा बन ही जाती है....अपने - अपने दायरे में अपनी - अपनी दुनिया में हम जी रहे होते हैं....अब सवाल है कि आज यह किस्सा छिड़ा ही क्यों....सवाल तो मतभेद और असहमतियों के बीच साथ रहने का है...। बस यही वजह है...अब इस निजी घटना को देश और धर्म के चश्मे से दूर रखकर देखिए...। गंगा - जमुनी तहजीब की बात की जाती है...रोटी - बेटी के रिश्ते की बात की जाती है...(बेटे की बात क्यों नहीं होती...ये तो अब भी नहीं पता है)...और यह सब कहते हुए यह बात भुला दी जाती है कि गंगा का भी अपना अस्तित्व है और जमुना यानी यमुना का भी....तो ये दोनों नदियाँ अपना अस्तित्व खोकर एक दूसरे में मिल जाएं,..क्या यह इतना जरूरी है औऱ सबसे बड़ी बात कि क्या हम मानसि