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सितंबर 16, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समय की धूल में इतिहास को लपेटे मालदा का गौड़

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बच्चों द्वारा आयोजित मालदा बाल फिल्म महोत्सव मालदा बहुत विकसित जिला नहीं है। संरचना की कमी से परेशान इस जिले में विकास की जरूरत है। लोग मालदा को आम के लिए जानते हैं मगर पयर्टन के मानचित्र पर मालदा बहुत कम दिखता है। क्या पता इसकी वजह यह हो सकती है कि इस इलाके में अनुसन्धान की जरूरत जितनी थी, उतनी हुई नहीं है। ग्रामांचलों में जो संस्कृति छिपी है, उस पर ध्यान नहीं दिया गया और जो स्थल पर्यटन का केन्द्र बन सकते थे, वे राजनीति मतभेदों और वोटबैंक की राजनीति की भेंट चढ़ गये। अगर मालदा को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखना है तो आपको गौड़ जाना चाहिए। दूसरी बाल फिल्म महोत्सव की कवरेज करने जब 22 अगस्त को मालदा पहुँचे तो हमें भी यह मौका मिला। होटल वही था मगर इस बार यात्रा ट्रेन से हुई। प्रकृति को अपनी आँखों में भरते, फरक्का की गर्जना सुनते हम रात को होटल पहुँचे थे। शम्पा अब बड़ी हो गयी और कॉलेज जाती है यह देखकर अच्छा लगा कि 2 साल पहले जिन बच्चों को स्कूल में देखा था, वह आज कॉलेज में जा चुके हैं। अपना बाल विवाह रोकने वाली शम्पा अब कॉलेज में पढ़ती है। कवरेज के बाद दूसरे दिन हमने गौड़ देख

गंगा की लहरें, मायूस चेहरे. विकास की बाट जोहते काकद्वीप से मुलाकात

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रविवार छुट्टी का दिन होता है मगर 15 जुलाई का दिन मेरे लिए छूट्टी का दिन नहीं था। वह दिन मैंने काम करके खुशी से बिताया और कारण था कि घूमने का मौका मिला था मुझे। हम काकद्वीप जा रहे थे जहाँ एक विद्यालय में वृक्षारोपण का कार्यक्रम क्रेडाई द्वारा आयोजित किया गया था। जो पत्रकार साथ गये थे, उसमें मैं भी शामिल हो गयी थी।  हम बस से जाने वाले थे। रविवार को सुबह 9 बजे प्रेस क्लब की जगह पार्क सर्कस स्थित क्रेडाई के कार्यालय पहुँचना था। समय पर पहुँचने के लिए मुझे टैक्सी लेनी पड़ी। अच्छी बात यह थी कि टैक्सी ने समय से पहले ही मुझे सही जगह पर पहुँचा दिया। यह पूरे कार्यक्रम की जिम्मेदारी कैंडिड पी आर एजेन्सी के कन्धों पर थी। मैं सुबह 8.30 बजे ही जिन्दल टावर पहुँच गयी थी। वहाँ पत्रकार रह चुकी पल्लवी से मुलाकात हुई। कुछ दिनों के लिए ही सही, हम साथ काम कर चुके थे तो एक जाना - पहचाना चेहरा साथ होना अच्छी बात थी। बस 9.05 बजे रवाना हुई और डी.एल खान रोड होते हुए सुन्दरवन की ओर चल पड़ी। 21 जुलाई को सत्ताधारी पार्टी की विख्यात शहीद रैली थी और पूरा इलाका ममता बनर्जी के पोस्टरों और बैनरों से पटा था। उस