गंगा की लहरें, मायूस चेहरे. विकास की बाट जोहते काकद्वीप से मुलाकात
रविवार छुट्टी का दिन होता है मगर 15 जुलाई का दिन मेरे लिए छूट्टी का दिन नहीं था। वह दिन मैंने काम करके खुशी से बिताया और कारण था कि घूमने का मौका मिला था मुझे। हम काकद्वीप जा रहे थे जहाँ एक विद्यालय में वृक्षारोपण का कार्यक्रम क्रेडाई द्वारा आयोजित किया गया था। जो पत्रकार साथ गये थे, उसमें मैं भी शामिल हो गयी थी। हम बस से जाने वाले थे। रविवार को सुबह 9 बजे प्रेस क्लब की जगह पार्क सर्कस स्थित क्रेडाई के कार्यालय पहुँचना था। समय पर पहुँचने के लिए मुझे टैक्सी लेनी पड़ी। अच्छी बात यह थी कि टैक्सी ने समय से पहले ही मुझे सही जगह पर पहुँचा दिया। यह पूरे कार्यक्रम की जिम्मेदारी कैंडिड पी आर एजेन्सी के कन्धों पर थी। मैं सुबह 8.30 बजे ही जिन्दल टावर पहुँच गयी थी। वहाँ पत्रकार रह चुकी पल्लवी से मुलाकात हुई।
कुछ दिनों के लिए ही सही, हम साथ काम कर चुके थे तो एक जाना - पहचाना चेहरा साथ होना अच्छी बात थी।
बस 9.05 बजे रवाना हुई और डी.एल खान रोड होते हुए सुन्दरवन की ओर चल पड़ी। 21 जुलाई को सत्ताधारी पार्टी की विख्यात शहीद रैली थी और पूरा इलाका ममता बनर्जी के पोस्टरों और बैनरों से पटा था। उस दिन लगातार बारिश हो रही थी।
10.15 बजे हमारी बस आमतला के रास्ते से गुजर रही थी। यह दक्षिण 24 परगना के विष्णुपुर का इलाका था। बीच में हम रुके और तेज बारिश में भीगते हुए हल्का नाश्ता किया। इस दौरान कच्ची सड़कों और गड्ढों से खूब सामना हुआ।
खैर, 12 बजे तक हम काकद्वीप पहुँच चुके थे। सिंचाई विभाग के बंगले में हम पत्रकारों के लिए लंच की व्यवस्था की गयी थी। हम बहुत थक चुके थे और भूख भी काफी लग गयी थी तो हम सब लंच पर टूट पड़े। मुझे जो चीज बहुत भाई. वह गुड़ की बनी मलाई करी थी जो बहुत कुछ रसमलाई जैसी ही होती है। दरअसल, यह रास्ता गंगासागर की ओर जाता है तो नदी भी हमें दिखायी जाने वाली थी। कई बार लगता कि बस बकखाली होकर जाती तो हम समुद्र भी देख लेते एक बार मगर हम सब यहाँ ड्यूटी पर थे तो थोड़ा सा इच्छाओं पर नियन्त्रण तो लाजिमी था।
2 बजे हम गंगासागर के विशाल तट के सामने थे। ऐसा लग रहा था कि आसमान और नदी, एक दूसरे से मिलने के लिए व्याकुल हैं। आसमान नदी पर झुका हुआ था। अद्भुत दृश्य था। पूरे इलाके में हरियाली थी तो गरीबी और मरियल जानवर भी थे। गंगासागर के पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित होने के कारण यहाँ पर आपको नदी तट के आस - पास यात्री निवासी और एक बेहद खूबसूरत यात्री निवास दिखेगा। कच्चे और मिट्टी के घरों के बीच खड़े पक्के मकान यहाँ लक्जरी से कम नहीं लगते। बंगाल के ग्रांमीण इलाकों में आपको संगमरमर के तुलसी पूजा के पात्र दिखेंगे।
3 बजे हम उस विद्यालय में पहुँचे जहाँ नारियल के पौधे क्रेडाई द्वारा ग्रामीणों को दिये जाने थे। पूरा पण्डाल ग्रामीणों से खचाखच भरा था, तिल रखने की भी जगह नहीं थाी मगर लोग समझदार हैं..वह सब समझते हैं। गाँव फोटों खिंचवाने की सबसे अच्छी जगह है। मुझे थोड़ा अजीब लगा क्योंकि जहाँ ये सारा कार्यक्रम चल रहा था, जहाँ वृक्षारोपण हो रहा था, नेता और मन्त्री जुटे थे, वह स्कूल प्रांगण में स्थित बच्चों के खेलने की जगह थी...उनकी मायूसी मुझे साफ दिख रही थी। यहाँ की बच्चियों ने अद्भूत कार्यक्रम किया और इस नृत्य की रिकॉर्डिंग मैंने अपराजिता के यू ट्यूब चैनल के लिए कर ली।
नेता मानें या न मानें पर ग्रामीण इस नाटक को बखूबी समझते हैं। इसके बावजूद उनकी आर्थिक हालत इस नाटक में शामिल होने पर मजबूर करती है। वृक्षारोपण के दौरान एक बुजुर्ग ने मुझसे पूछा - एक आबार कोखुन आशबे (ये लोग फिर कब आयेंगे), जवाब भी उसके पास था...5 बछर पोरे...मैं इस तंज पर अपनी हँसी न रोक सकी। ये भी एक तरह का विद्रोह है मगर दंतहीन विद्रोह है। कार्यक्रम के बाद वापस गाड़ी तक जाने में बड़ी मुश्किल हुई। कार्यक्रम में फोटू खिंचवाकर तो मंत्री महोदय चल दिये थे मगर उनके जाने के बाद जबरदस्त अफरा -तफरी मची थी। सब नारियल का पौधा पाने के लिए टूट पड़े थे। किसी तरह मैं गाड़ी के पास पहुँची।
शाम 4 बजे हम यहाँ से कोलकाता के लिए रवाना हो चुके थे। रास्ते में जाम से सामना हुआ और पैलान का भव्य मंदिर भी देखा। वापस पार्क सर्कस तो जाना था नहीं, घंटों के सफर के बाद मैं बेहला के पास उतरी। सीधी बस तो मिलनी मुश्किल थी तो धर्मतल्ला उतरी और लगभग 10 बजे तक वापस घर आ गयी। ये सफर बहुत छोटा भले हो मगर ग्रामीण अंचलों की वास्तविकता के साथ कई नाटकों से परिचय करवा दिया। साथ ही एक बार बकखाली जाने की इच्छा भी प्रबल हो गयी...देखें...तब तक के लिए अगले सफर का इन्तजार करें।
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