यह कहानी सलाम दुनिया में प्रकाशित हो चुकी है
मोहरा - सुषमा त्रिपाठी " प्रदीप्त मुखर्जी , हमारी जोनल कमेटी के नये अध्यक्ष। पार्टी ने इनको यह जिम्मेदारी सौंपी है। उम्मीद है कि प्रदेश के दूसरे नेता भी उसी ईमानदारी से पार्टी को आगे बढ़ाएंगे , जिस तरह से प्रदीप्त बढ़ा रहे हैं। " तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। सभागार के बीच से एक दुबला - पतला सांवला लड़का मंच की ओर बढ़ा। उसके गले में हार डाला गया और वह संकोच से मानो दबा जा रहा था। तालियों के बीच मंच के नीचे दो हाथ अपनी मुट्ठियों को भींचे तने जा रहे थे , कभी इन हाथों ने इसी पार्टी के लिए चोटें भी खायीं थीं और ये हाथ किसी और के नहीं , उसी सुभाष के थे जिसकी जगह प्रदीप्त को दे दी गयी थी। सुभाष से और रहा नहीं गया , कुछ सोचता , तभी मोबाइल की घंटी बजी और वह बाहर आ गया। - " ए सुभाष दा , के होलो प्रेसिडेंट तोमादेर ?" - " नतून छेले , प्रदीप्त मुखर्जी। " - " प्रदीप्त , तुम ही तो लाए थे , दादा उसे। " सुभाष ने फोन काट दिया। एक - एक करके पुरानी बातें य