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मार्च 27, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मुफ्त वाली संस्कृति और दोहरेपन से पार पाये बगैर महंगाई से बचना सम्भव नहीं

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महंगाई ऐसा शब्द है जिससे जनता हमेशा से त्रस्त रही है, नेताओं के लिए यह अत्यन्त प्रिय मुद्दा है और सरकारों का सिरदर्द। महंगाई के कारण सरकारें गिरती भी रही हैं और माध्यमिक तक आते - आते तो महंगाई निबन्ध का विषय भी बनती रही है। कीमतें घटने - बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं और दुनिया में चल रही गतिविधियों और बनती - बिगड़ती परिस्थितियों का महंगाई पर व्यापक प्रभाव रहता है। इनमें से कुछ परिस्थितियाँ ऐसी हैं जिन पर वश नहीं चलता - जैसे - प्राकृतिक आपदा हो या युद्ध या ऐसा ही कोई कारण। इन सबके बीच एक सच भी है कि महंगाई को लेकर गम्भीर प्रयासों की कमी है और राजनीतिक पार्टियों की खुराक है इसलिए वे इस मुद्दे को जिन्दा भी रखना चाहती हैं। बात करें जनता की..तो जनता दो पाटन के बीच में पिसती है और सबसे अधिक त्रस्त है मध्यम, निम्न वर्ग..। अब एक सवाल हम खुद से पूछें कि क्या हम इस गम्भीर समस्या के समाधान के लिए वाकई गम्भीर हैं? अगर वाकई मैं अपनी बात कहूँ तो नहीं और इसका कारण है कि हमारा दोहरापन..हमें मुफ्त में चीजें चाहिए, सब्सिडी चाहिए..नेताओं ने वोट बैंक की राजनीति के लिए कर्जमाफी, सब्सिडी, फ्री की राजनीति त