महानुभव,
आदरणीय तो आप हैं ही
नहीं और सम्मान देने के लायक नहीं हैं इसलिए बात सीधे शुरू कर दें। मैं बंगाल से
हूँ और कलकत्ता विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा हूँ और मुझे इस बात का गर्व है।
आपको देखकर अपने शिक्षकों, वाइस चांसलरों और बंगाल की जनता के प्रति गर्व और बढ़
गया है। बीएचयू का नाम बहुत सुना था, जब भी कोई बीएचयू की बात करता तो उसमें एक
अकड़ होती कि वह सर्वश्रेष्ठ है।
केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, विशाल परिसर है,
अनुदान की कमी नहीं है तो नाम तो होना ही है। आप महामना के सम्मान को लेकर चिन्तित
हैं और अपनी कारगुजारियों को ढकने की कोशिश में जुटे हैं। मैं एक बात कहूँ, उनका
सम्मान पूरा देश करता है मगर एक बात सत्य है कि आप अपनी छात्राओं के साथ जो कर रहे
हैं, उसे देखकर वे सबसे पहले आपको पद से हटाते। त्रिपाठी जी, आपने शायद नहीं सिखा
मगर किसी भी शिक्षक, प्रिंसिपल और वाइस चांसलर के लिए उसके विद्यार्थी बच्चों की
तरह होते हैं, गुलाम नहीं जैसा कि आप समझ रहे हैं।
आपमें यह गुण है ही नहीं। आपने कहा
कि "अगर हम हर लड़की की हर मांग को सुनने लगें तो हम विश्वविद्यालय नहीं चला
पाएंगे। मैं कहती हूँ तो फिर आप कुर्सी पर बैठे कर
क्या रहे हैं?
जब आप इस पद पर हैं तो हर एक विद्यार्थी की बात सुनना, समझना और उनका ख्याल
रखना आपका पहला दायित्व है। अपनी योग्यता का प्रमाणपत्र देते हुए आपको थोड़ी सी
शर्म आई होती तो अच्छा था। आपको पता है हमारे यहाँ विद्यार्थियों के प्रदर्शन आए
दिन होते रहते हैं।
वाइस चांसलरों को ताले में बंद कर दिया जाता है मगर इस अति के
बावजूद आज तक किसी वीसी ने विद्यार्थियों के इस अधिकार को चुनौती नहीं दी। कलकत्ता
विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर थे सुरंजन दास, आपको पता है...यहाँ के राजाबाजार
साइंस कॉलेज में जब प्रदर्शन हुआ और झड़प हुई तो वे रात भर विद्यार्थियों के साथ
रहे, उनसे बात की और उनकी माँगें पूरी करके ही निकले। सीयूू में एक और वीसी थे सुगत मार्जित, बेहला के एक कॉलेज में जब प्रदर्शन हुआ तो उस गर्ल्स कॉलेज में गए और वहाँ एक छात्रा ने उनको धक्का दिया। जाहिर है कि छात्रा की ये हरकत निंदनीय थी। वीसी चाहते तो उसके खिलाए कार्रवाई कर सकते थे मगर पता है, उन्होंने ऐसा कुुछ नहीं किया और बोले कि वह बच्चे हैं, बच्चों को समझने की जरूरत है।
आप तो ये सोच ही नहीं सकते
क्योंकि आपकी नजर में वाइस चांसलर एक शासक है और विद्यार्थी उसके गुलाम। आप ही की
तरह एक हिटलर यहाँ हुए, अभिजीत चक्रवर्ती....उन्होंने विद्याथिर्यों पर आधी रात को
लाठियाँ भंजवायी थीं, इसके बाद पता है क्या हुआ....सारे शिक्षकों ने उनके खिलाफ
मोर्चा खोल दिया, प्रो. वाइस चांसलर सिद्धार्थ दत्त ने वीसी के विरोध में अपने पद
से इस्तीफा दे दिया...ये होता है वह शिक्षक जो अपने बच्चों पर अन्याय होते नहीं
देख सकता। जेयू में महीनों आन्दोलन चला और होक कलरव बंगाल का जन आन्दोलन बन
गया....मुझे तो लगता है कि न तो आपके शिक्षकों में और न ही बनारस की जनता में
अन्याय के प्रतिकार का साहस बचा है....बंगाल इसलिए ही बंगाल है.....मुझे लगता है
कि शिक्षकों के गुण सीखने हों तो आपको बंगाल आकर यहाँ के शिक्षकों से सीखना चाहिए
कि विद्यार्थियों को किस तरह समझा जाता है और धैर्य के साथ उनकी गलतियों को कैसे
रोका जाता है।
आपने अपने छात्रों को नहीं रोका बल्कि लड़कियों को ही समय बता
दिया...हद है त्रिपाठी जी.... "यह अच्छा है कि एमएमवी और त्रिवेणी लड़कियों के हॉस्टल के लिए कर्फ्यू समय रात 8 बजे है, एक अन्य लड़कियों के
छात्रावास में तो यह शाम 6 बजे है। आपको शर्म नहीं आयी, मैं तो बस कल्पना ही कर
रही हूँ कि आप अपने घर में स्त्रियों के साथ कैसा बर्ताव करते होंगे...और ये भी
समझ में आया कि बनारस में महिलाओं के पीछे रह जाने के पीछे आप जैसे कईयों की ऐसी
जड़ मानसिकता ही है। शर्म कीजिए कि आप अपने परिसर को इस लायक नहीं बना सके कि
लड़कियाँ ही नहीं बल्कि हर कोई आपके परिसर में बेखौफ होकर घूम सके। रैंगिंग हमारे
यहाँ भी होती है मगर यहाँ अपराधी छात्रों का मनोबल नहीं बढ़ाया जाता बल्कि
कार्रवाई होती है...कैसे होती है...ये भी सीखना चाहिए आपको। माफ कीजिएगा....हम
सबकी नजर में आप एक शैक्षणिक डिग्री प्राप्त पिछड़े हुए जाहिल इन्सान हैं।
आपने कहा कि "लड़कों और लड़कियों के
लिए सुरक्षा कभी भी समान नहीं हो सकती।" आप अब भी उसी पुरातन युग में
जी रहे हैं और आउटडेड मानसिकता वाले हैं....इस लोकतांत्रितक देश में लड़कियों के
भी उतने ही अधिकार हैं और आपकी लंका (बीएचयू में जो हरकतें हुई हैं, उसके बाद यही
नाम सही है) के असुर इस देश की सीमा में ही आते हैं, जरा सा संविधान पढ़िए....वैसे
इस देश की रक्षामंत्री एक महिला ही हैं तो क्या आप ये दिव्य ज्ञान क्या उनको भी
देने वाले हैं...महानुभव आगे बढ़ने का अधिकार देवियों को भी है। वैसे हम बता दें
कि होक कलरव आन्दोलन भी रैंगिंग और 2 लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटना को लेकर ही
शुरू हुआ था।
आपने कहा कि "सबसे पहले, यह यौन उत्पीड़न की घटना नहीं है,
यह एक छेड़छाड़ का मामला है।" त्रिपाठी जी अनचाहे स्पर्श का दंश और दहशत क्या होता है....आपको शायद ही पता हो
मगर एक सवाल तो बनता है कि आपकी बेटी के सामने कोई जींस खोलकर खड़ा हो जाए
और उसके कुरते में हाथ डाले तो भी क्या आप यही फार्मूला लागू करेंगे....मुझे संदेह
है कि आपमें पिता वाली संवेदना शेष है या नहीं। आप बोले कि "कभी-कभी मुद्दे होते हैं और कुछ मुद्दे पैदा होते हैं. यह मुद्दा बनाया गया
था. मुझे लगता है कि यह समस्या बाहरी लोगों द्वारा बनाई गई थी और जो इस मामले ने
अंत में जो आकार लिया वह प्रारंभिक घटना से भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है।"
जब लोग बाहरी थे तो 1200 छात्राओं के खिलाफ एफआईआर
क्यों वीसी साहेब?
बीएचयू की छात्राओं ने दावा किया है कि विश्वविद्यालय में कोई लड़की नहीं
है जिसे परिसर में परेशान ना किया गया हो या फिर उसके साथ छेड़छाड़ ना हुई हो.
लेकिन, आपके पास एक अलग ही कहानी है। दरअसल, आप ही अनोखे हैं। छेड़छाड़ और उत्पीड़न
आपके लिए सामान्य घटना है तो बलात्कार तो बिलकुल तुच्छ घटना होगी...जरा सोचिए अगर
आपको पीट देना भी विद्यार्थियों के लिए अति सामान्य घटना हो जाए तो आप क्या
करेंगे...इतना अहंकार किस बात का....?
आपने कहा कि सिंह द्वार पर धरने की आड़ में मदन मोहन मालवीय
की प्रतिमा पर कालिख डालने का कुछ अराजक तत्वों ने प्रयास किया है. यह कृत्य
राष्ट्र द्रोह से कम नहीं है। अब जरा ये बताइए कि जिस देश में स्त्री शक्ति हो,
वहाँ महामना के नाम पर बने परिसर में लड़कियों का उत्पीड़न, सामूहिक छेड़छाड़ किस
श्रेणी के राष्ट्रप्रेम में आता है।
मुझे तो सन्देह है कि मामले पर परदा डालने के
लिए ये कांड आप ही ने करवाया है कि लाठीचार्ज के आरोपों को दबा सके....मगर इतना
जान लीजिए कि इतना आसान नहीं है कि आप
आवाजों को दबा सकें। पता है, इस देश की समस्या ही यही है, मूर्तियों की पूजा करते
हैं और जीवित लड़कियों को या तो जलाते हैं या फिर उनका बलात्कार होता है....अगर
करना ही है तो इन लड़कियों को बंधन से आजाद कर सुरक्षा दीजिए....क्या पता आपके
थोड़े पाप धुल ही जाएँ।
आप कहते हैं कि प्रोफेसर
त्रिपाठी ने यह भी कहा कि परिसर में पर्याप्त सुरक्षा के उपाय हैं। फिर भी लड़कों
और लड़कियों की सुरक्षा कभी भी समान नहीं हो सकती। लड़कियों के लिए बाहर निकलने का
समय रात 8 बजे तक है और लड़कों के लिए रात 10 बजे लेकिन यह दोनों की सुरक्षा के लिए है।
अगर हम हर लड़की की हर मांग को सुनेंगे तो हम विश्वविद्यालय को चलाने में सक्षम
नहीं होंगे। ये सभी नियम उनकी सुरक्षा के लिए हैं। सभी छात्राओं के पक्ष में हैं।'
सड़कें और विश्वविद्यालय परिसर किसी एक की सम्पत्ति नहीं
हैं....आपने कैसे तय कर लिया कि लड़के 10 बजे तक और लड़कियाँ 8 बजे तक
पढ़ेंगी....आप भूल गए कि यह देश आजाद है और हम लड़कियों को समय सीमा में बाँधने का
अधिकार आपको नहीं है.....अगर नियम हैं तो सबके लिए एक जैसे होने चाहिए। कभी बंगाल
आइए और देखिए कि किस तरह अड्डा जमता है और लड़कियाँ बेखौफ होकर बात करती
हैं.....किस तरह अपनी जिन्दगी को जीती हैं....आपको सीखने की जरूरत है। आपको किसने
हक दे दिया कि आप समय की बंदिशों में आजादी को बाँधें।
आप बोले -'प्रधानमंत्री आने वाले थे इसलिए मुझे लगता है
कि ये सब कराया गया है।' उन्होंने कहा कि इस मुद्दे ने जो आकार
लिया, वह प्रारंभिक घटना से भी अधिक
दुर्भाग्यपूर्ण है।" अगर ऐसा है तो यह निहायत शर्मनाक बात है क्योंकि अगर
प्रधानमन्त्री अपने संसदीय क्षेत्र में रहकर भी लड़कियों से नहीं मिलते तो यह निहायत
दुर्भाग्यपूर्ण है।
अगर योगी आदित्यनाथ के पास अपने ही राज्य की जनता की बात सुनने का
समय नहीं है तो उनको पद छोड़ देना चाहिए....मैं ममता बनर्जी को पसन्द नहीं करती
मगर ये बात तो है कि वे मिलती हैं विद्यार्थियों से, शिक्षकों से, उनकी बात सुनती
हैं और जेयू पहुँचकर खुद बात करती हैं। मुझे विश्वास है कि अगर पीएम जाते तो
लड़कियों को एक हौसला मिलता और जब वे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं तो
यह और जरूरी हो जाता है मगर अफसोस उन्होंने ऐसा नहीं किया। आप बंगाल आइए क्योंकि
आपको ट्यूटोरियल की सख्त जरूरत है। ये भी है -
http://www.thelallantop.com/jhamajham/some-more-issues-are-related-with-prof-girish-chandra-tripathi-who-is-vice-chancellor-of-bhu/
शिक्षकों
से
आप तभी
बचेंगे जब आपके विद्यार्थी बचेंगे....महामना के सम्मान के लिए मोमबत्ती लेकर खड़े
हैं, अगर छात्राओं के लिए खड़े होते तो यह नौबत ही न आती....हो सके तो इन छात्राओं
में अपनी बेटियों का भविष्य देखिए...कहीं ऐसा न हो कि आप अपने बच्चों से ही नजर
मिलाकर बात करने के लायक न बचें। शिक्षक वो होता है जो अन्याय का प्रतिकार करना
सिखाता है...झुकना नहीं। हमारे शिक्षक हमारी प्रतिभा को सामने लाने के लिए पढ़ना लड़ना सिखा रहे हैं, क्या आपने विद्यार्थियों को ऐसा कुछ सिखाया है या फिर तलवे चाटना और अभद्रता ही सिखा रहे हैं।
बेहद
बदतमीज छात्रों
अपनी
प्रियतमाओं को मिनी स्कर्ट और बहनों को दस हाथ के घूँघट में देखने के आँकाक्षी
तुम, तुम्हारे मनुष्य होने पर संशय है....मत भूलो कि जो तुमने किया...उसका फल
तुम्हारे ही सामने आएगा जब तुम खुद पिता बनोगे.....उसी दर्द से गुजरोगे, जिस दर्द
से लड़कियाँ गुजर रही हैं। सोशल मीडिया पर जो अश्लील बयानवीरता तुम दिखाते
हो....वह बताती है कि तुम्हारे संस्कार क्या हैं...छात्र तो तुम सब हो नहीं अपराधी
ही हो। मर्दानगी का मतलब जानते भी हो या सारी मर्दानगी लड़कियों कुरते के भीतर हाथ
डालने और अपने अंग प्रदर्शन में निकाल दी.....किसी एक बयानवीर का बयान पढ़ रही
थी.....लड़कियाँ गिरती हैं....टाइप बोलूँगी नहीं....मगर इतना जरूर कहूँगी कि जब
लड़कियाँ गिरती हैं तो उसकी कोख से ही तुम सबका जन्म होता है....जिन छातियों को
निहारते और दबोचते हो.....उनका ही दूध पीकर माँ का दूध टाइप कसमें खाते हो....और
तुम्हारे मर्द बनने के लिए भी कोई लड़की अपनी पूरी जिन्दगी बलिदान देती है। अगर
तुम्हारी मर्दानगी तुम्हारे शरीर के किसी खास अंग के प्रदर्शन और लड़कियों को
दबोचने तक सीमित है...तो अभागे और कायर हो तुम। लड़कियों के बगैर तुम कुछ भी नहीं
हो.....मर्द वह नहीं होता जो खुलकर कामुकता का प्रदर्शन करता है....वह होता है कि
जो लड़कियों की इज्जत करता है...अगर तुम कृष्ण को पूजते होगे तो इसलिए कि उन्होंने
द्रोपदी को बचाया, जिस राष्ट्रवाद की कहानियाँ पढ़ते हो, उसे थोड़ा और गहराई से
पढ़ो....पता चलेगा कि पुरुषों ने स्त्रियों के सम्मान की आधारशिला भी रखी है...राजा
राममोहन राय, ईश्वरचँद्र विद्यासागर....भगत सिंह...महाराणा प्रताप....इनमें से कौन
तुम सबकी तरह बेहूदा हरकतें करता था जरा बताना। आज जो तुम कर रहे हो....कल
तुम्हारे साथ होगा....तब चुल्लू भर पानी में डूब मरने के लिए जगह नहीं होगी। हर
विचारधारा में अच्छी या बुरी बातें होती हैं....अच्छी बातें भी सीखो और इन्सान
बनो। वैसे इन दिनों प्रेसिडेंसी के विद्यार्थी प्रमोद दा का कैंटीन बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं...तुम सबने कभी ऐसा कुछ किया हो तो बताना।
https://www.bhaskar.com/news/UP-VAR-reality-and-ground-report-of-bhu-5705195-PHO.html
बनारस के
लोगों से
आपके लिए
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता.....
देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।