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स्त्री - पुरुष की मित्रता को सामान्य बनाइए और स्कूलों में सिखाइए, अपराध कम होंगे

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बहुत सी चीजें अब भी भारतीय समाज के लिए किसी डर से कम नहीं हैं। इनमें से एक मुद्दा है स्त्री व पुरुष के सम्बन्धों को सही तरीके से लेकर चलना । दुःख की बात यह है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर सामाजिक व्यवस्था तक में यह सिखाया ही नहीं जाता कि एक लड़का और लड़की अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं। दोस्ती न भी हो तो मनुष्यता के नाते मैत्री व आदर अथवा स्नेह के भाव से एक साथ काम कर सकते हैं। हम उस समाज से आते हैं जहाँ स्त्री और पुरुष के बीच शरीर और दैहिक आकांक्षाओं का इतना बड़ा बवंडर खड़ा कर दिया गया है कि बचपन से ही एक लड़का अपनी बहन को छोड़कर दूसरी लड़कियों को माल समझता है। बचपन से ही वह मां - बहन की गालियां सुनते हुए और बड़ों को ऐसी गालियां देते हुए देखता है और यही वह अपने दोस्तों से लेकर सार्वजनिक स्थल पर करता है और दुःख की बात यह है कि उसे यह सब सामान्य लगता है । मां, बहन, बेटी को छोड़कर संसार में कोई और रिश्ता भी हो सकता है, यह किसी की समझ में आता ही नहीं है और गालियां भी इन रिश्तों के नाम पर ही दी जाती हैं। लड़कों की नजर में अगर कोई लड़की पसंद आ गयी तो वह किसी भी सूरत में उसकी ही होनी चाह

नेता ही नहीं, जनता भी किसी की नहीं होती

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कई बार मैं सोचती हूँ, हर एक कहानी सुखद अंत तक क्यों नहीं पहुंच पाती। जब पीछे मुड़कर देखने का मन करता है और पीछे मुड़ जाती हूँ तो सबसे पहले ध्यान कहानियों के अंत तक जाता है। भारत से हूँ और भारतीयता की ही बात करुँगी,आख्यानों के सन्दर्भ में ही बात करूँगी। इस सृष्टि की रक्षा के लिए सदा से ही ईश्वर कई रूप लेकर धरती पर उतरते रहे हैं...वैसा ही जीवन जीते हैं..जैसा एक मनुष्य जीता है। उतने ही कष्ट, उतनी ही लांछनाएं और उतने ही कलंक उनको मिलते हैं जो एक साधारण मनुष्य की सोच से भी बाहर है मगर इतना कुछ होने पर भी वह सत्य और सृजन का मार्ग कभी नहीं छोड़ते क्योंकि वे ईश्वर हैं। पौराणिक कहानियों के आभामण्डल में दबे अन्धकार पर नजर डालिए तो पता चलता है, किसी का भी जीवन आसान नहीं था..किसी का भी जीवन सुख से भरा हुआ नहीं था..व्यक्तिगत जीवन में हम जिनको अवतार समझते हैं, उनको भी मानसिक यंत्रणाओं से गुजरना पड़ा है। पत्थर वही लोग उठाया करते हैं जिन्होंने पत्थर कभी खाया न हो। मेरी समझ में जनता का हाल सदा से यही रहा है..राजा से लेकर राजगद्दी तक और लोकतंत्र की भाषा में प्रधानमंत्री से लेकर कुर्सी तक...हमेशा से बु

जिंदगी के सितार पर छेड़ा गया जीजिविषा का मधुर राग प्रेम शर्मा मैम

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जीवन में कुछ लोग होते हैं जो आपको जीने की राह तो दिखाते ही हैं, वह हिम्मत भी बन जाते हैं । वह आपके पास रहें या न रहें...आप उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं...मैं बार - बार कहती हूँ कि मैं जो कुछ हूँ...मेरे विश्वास के कारण, अपनी शिक्षिकाओं के कारण हूँ, अपने दोस्तों के कारण हूँ..। मेरी कहानी में परिवार रक्त सम्बन्धों से नहीं जुड़ा..वह हृदय से जुड़ा है । जब स्कूल में पढ़ती थी तो प्रिंसिपल रूम के सामने एक क्लास चलती थी..तब मैं सातवीं या आठवीं में थी। उस क्लास में जो शिक्षिका बैठती थीं...उनकी कक्षा के बाहर हम अपनी प्रैक्टिस के लिए..चूंकि गाती थी तो उस समय सूद मिस (स्व. कृष्ण दुलारी सूद) के सामने हम छात्राओं को अभ्यास करना होता था। मिस गाना सुनती थीं...जब तक उनको तसल्ली न होती...हमारा गाने का अभ्यास चलता रहता...तब वह शिक्षिका मेरे लिए कौतुहल ही थीं। नाम भी बाद में पता चला....प्रेम शर्मा...मैं यह नहीं कह सकती कि मैं पहले से उनको प्रिय थी क्योंकि स्कूल में उनसे पढ़ने का मौका नहीं मिला । लंबा अरसा बीत गया...स्कूल के बाद कॉलेज..कॉलेज के बाद विश्वविद्यालय....लंबा वक्त गुजरा...बहुत से उतार -च