संदेश

अप्रैल 23, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

समाज और कानून के बीच अपना वजूद और न्याय तलाशते एसिड हमलों के शिकार

चित्र
तुम मेरे दिल पर लिखना चाहते थे अपना प्यार इनकार किया तो चेहरे पर अपनी नफरत लिख दी याद रखो, तुमने सिर्फ मेरा चेहरा जलाया है  हौसले अब भी जिंदा हैं मेरे, छीन नहीं सकते तुम सुना तुमने, जिंदा हूँ अपने जीने की जिद के साथ।। नफरत और एसिड का गहरा रिश्ता है, खासकर स्त्रियों का मामला हो तो यह और गहराई से जुड़ जाता है। प्रेम निवेदन नहीं माना तो प्रतिशोध की आग को तरल कर चेहरे पर बहा देना आम बात है। स्त्री का इनकार उसकी हिमाकत है और 21वीं सदी की ओर बढ़ चले हिन्दुस्तान में नफरत और एसिड हमलों की तादाद भी बढ़ चली है मगर हमलों की शिकार महिलाओं के हौसलों को मारना इतना आसान नहीं है। अजीब बात यह है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के पास भी 2013 तक एसिड हमलों का कोई आँकड़ा नहीं था मगर भला हो भारतीय दंड संहिता में हुए संशोधन का जिससे एसिड हमलॆ को अपराध की श्रेणी में रखा जाने लगा। जाहिर है कि आँकड़े 2014 से ही मिलते हैं और 2014 में ही एसिड हमलों के 225 मामले देखने को मिलते हैं और 2012 में 106 और 2013 के 116 मामलों से अधिक हैं। 2015 में एसिड हमलों के सबसे अधिक 249 मामले दर्ज किए गए। कहने की ज