समाज और कानून के बीच अपना वजूद और न्याय तलाशते एसिड हमलों के शिकार

तुम मेरे दिल पर लिखना चाहते थे अपना प्यार
इनकार किया तो चेहरे पर अपनी नफरत लिख दी
याद रखो, तुमने सिर्फ मेरा चेहरा जलाया है
 हौसले अब भी जिंदा हैं मेरे, छीन नहीं सकते तुम
सुना तुमने, जिंदा हूँ अपने जीने की जिद के साथ।।


नफरत और एसिड का गहरा रिश्ता है, खासकर स्त्रियों का मामला हो तो यह और गहराई से जुड़ जाता है। प्रेम निवेदन नहीं माना तो प्रतिशोध की आग को तरल कर चेहरे पर बहा देना आम बात है। स्त्री का इनकार उसकी हिमाकत है और 21वीं सदी की ओर बढ़ चले हिन्दुस्तान में नफरत और एसिड हमलों की तादाद भी बढ़ चली है मगर हमलों की शिकार महिलाओं के हौसलों को मारना इतना आसान नहीं है। अजीब बात यह है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के पास भी 2013 तक एसिड हमलों का कोई आँकड़ा नहीं था मगर भला हो भारतीय दंड संहिता में हुए संशोधन का जिससे एसिड हमलॆ को अपराध की श्रेणी में रखा जाने लगा। जाहिर है कि आँकड़े 2014 से ही मिलते हैं और 2014 में ही एसिड हमलों के 225 मामले देखने को मिलते हैं और 2012 में 106 और 2013 के 116 मामलों से अधिक हैं। 2015 में एसिड हमलों के सबसे अधिक 249 मामले दर्ज किए गए। कहने की जरूरत नहीं है कि एसिड हमले पितृसत्तात्मक सत्ता की नियंत्रण वाली मानसिकता का परिचायक है जहाँ नियंत्रण न कर पाने की स्थिति में बौखलाहट एसिड हमलों का रूप लेती है और यह सारी दुनिया में है। यह किसी जाति, धर्म, स्थान से रिश्ता नहीं रखता बल्कि दक्षिण एशिया, चीन, नाइजेरिया, केन्या, मैक्सिको, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन जैसे देशों में भी होता है। एसिड हमलों की 80 प्रतिशत शिकार महिलाएं ही होती हैं। कानून में संशोधन के बाद एसिड हमलों के मामले में 10 साल या फिर आजीवन सजा का प्रावधान है। ये भी कहा गया कि एसिड खरीदने वालों को अपना सचित्र प्रमाणपत्र दुकानदार को देना होगा और खरीददार का रिकॉर्ड दुकानदार के पास होना चाहिए मगर हम सब जानते हैं कि एसिड अब भी दुकानों में खुलेआम बिक रहा है। कानून है मगर वह लागू नहीं हो पाता।
एसिड हमलों के मामले में सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है और बंगाल  उसके बाद आता है। एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन इंडिया (एएसएफआई) के आँकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 में एसिड हमलों के 29 मामले दर्ज हुए तो बँगाल में यह आँकड़ा 14 है, इसके बाद बिहार है जहाँ एसिड हमलों के 10 मामले हैं। पीड़ितों के मामले में बिहार आगे है जहाँ 23 एसिड पीड़ित हैं। हालाँकि यह भी ठीक है कि एसिड मामलों में कमी आयी है मगर बंगाल के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। हाल ही में मुर्शिदाबाद के मलिकपुर में ऐसी घटना हुई जहाँ पति ने पत्नी के मुँह में एसिड डाल दिया। अस्पताल ले जाने पर महिला ने दम तोड़ दिया।
अच्छी बात यह है कि सरकार इस बारे में सोच रही है। गृह मंत्रालय ने पहले भी राज्यों को कहा है कि वे सेंट्रल विक्टिम कम्पन्सेशन फंड (सीवीसीएफ) के तहत एसिड हमलों के शिकार लोगों को कम से कम 3 लाख रुपए की राशि का चेक दें। पीड़ितों को तुरन्त लाभ पहुँचाने के लिए प्रधानमंत्री नेशनल रिलिफ फंड से 1 लाख रुपए अतिरिक्त देने की बात कही है मगर सच तो यह है कि जरूरत एसिड हमलों की शिकार महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाकर सक्षम बनाने की है। सर्जरी का खर्च इतना अधिक है कि यह राशि भी कम लगती है। एसिड हमला शारीरिक, सामाजिक और मानसिक रूप से तोड़ता है। इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने अब भी बाकी हैं।
एसिड अटैक पीड़ितों के मुद्दे को कई मंचों पर उठाया गया है और जागरुकता लाने की कोशिश की जा रही है। युवाओं में इस मुद्दे को लेकर जागरुकता बढ़ाने की एक नई कोशिश है एक अनूठी कॉमिक किताब - प्रियाज़ मिरर। ये डाउनलोडेबल कॉमिक बुक ऐनिमेशन वीडियो के साथ असल ज़िंदगी की कहानियां साथ लाती है। अब उनको स्वीकृति मिल रही है। हाल ही में सोनाली मुखर्जी, लक्ष्मी और रेशमा जैसी साहसी लड़कियाँ इसकी मिसाल बनी हैं मगर अब भी यह साहस बहुत कम लड़कियों में है कि वे आगे बढ़ सकें। स्थिति को बदलने के लिए जरूरी है कि कानून व्यवस्था मजबूत हो। न्याय और राहत शीघ्र मिले और उससे भी जरूरी है कि पुरुषों में स्त्री के इनकार को स्वीकार करने का साहस हो और ये तभी होगा जब स्त्री उनके लिए महज चेहरा नहीं बल्कि एक व्यक्तित्व होगी।




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