मैनेज करने से कुछ भी मैनेज नहीं होता...बोलना जरूरी है सही समय पर..

आज बात परिवार व्यवस्था और पारिवारिक सम्बन्धों को लेकर करनी है। कलियुग का हवाला देकर सारा ठीकरा युवा पीढ़ी पर फोड़ दिया जाता है इसलिए बात जरूरी है। बात स्त्रियों की भूमिका और उनकी रसोई वाली राजनीति पर भी होगी और चालाकी से भरी चुप्पी पर भी होगी । पारिवारिक सेटिंग और अंडरस्टैंडिंग से उत्पन्न चुप्पी पर होगी। मतलब सम्बन्धों की आड़ में सौदेबाजी और अवसरवादिता पर भी होगी...आज चीरफाड़ होगी । इस बातचीत में अपने अनुभवों के आधार पर ही बात करनी है। कम्पनी टूटती है क्योंकि बॉस अपने कर्मचारियों को अपने अधीनस्थ विश्वासपात्रों के हाथों में उनके हाल पर छो़ड़ देता है और वह देखने की जहमत नहीं करता कि उनके अधीनस्थ बच्चों के साथ कैसा सलूक करते हैं। ठीक इसी तरह खानदान व परिवार टूटते हैं क्योंकि परिवार का मुखिया तब चुप रहता है जब उसे बोलना चाहिए और परिवार की इकाई में होने वाले घटनाक्रमों से या तो अनजान बना रहता है या जानबूझकर निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि जो हो रहा है उसकी निजी जिन्दगी को क्षति नहीं पहुंच रही । उसका इमोशनल अटैचमेंट या तो महज औपचारिकता मात्र है...या खानदान के दूसरे सदस्य उस पर हावी होकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं । कम्पनी, संस्थान या परिवार का संचालन करना एक बहुत बड़ा दायित्व है, वहां सबको साथ लेकर चलना पड़ता है, कड़े फैसले लेने पड़ते है, अनुशासन लाना पड़ता है, जवाबदेही तय करनी पड़ती है । जाहिर है कि आप सबको एक साथ खुश नहीं कर सकते इसलिए जो सही है...उसके साथ लेकर बस आगे बढ़ना ही उचित है । अगर आपके होते हुए किसी के साथ कुछ गलत हो रहा है तो यह विफलता पीड़ित की नहीं, स्वयं आपकी है । इतिहास उंगली आप पर उठाएगा और आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते । यदि सभी के होते हुए सीता को निर्वासन होता है तो यह विफलता किसी और की नहीं कौशल्या और जनक की है । उन सभी लोगों की है जिन्होंने यह देखा। अगर भीष्म पितामह, द्रोण के होते हुए लाक्षागृह और चीरहरण जैसी घटनाएं हो रही हैं तो विफलता पांचाली की नहीं बल्कि हस्तिनापुर के बड़ों की है । छोटों को निर्भय होकर संरक्षण देना और उनको आगे ले जाना बड़ों की जिम्मेदारी है। जिस परिवार में बड़ों के होते हुए बच्चों को भटकना पड़ा । किसी स्त्री अथवा पुरुष को प्रताड़ित किया जाए और खानदान के होते हुए उस पर इतने अत्याचार हों कि वह तड़पती हुए चल बसे तो इसका पाप तो उन बड़ो को ही लगेगा जिन्होंने प्रताड़ित करने वालों, छीनने वालों से जवाब नहीं मांगा जिसने दोषियों को कठघरे में खड़ा नहीं किया। परिवार के किसी सदस्य का सामान कोई कर्मचारी जांच करे तो यह अपमान खुद आपका है। अगर भरा - पूरा परिवार होते हुए भी परिवार के किसी सदस्य का जीवन एकाकी ही रह जाए, कोई अपनी समस्याओं से अकेले जूझ रहा हो..तो किसी फ्लैट के अपार्टमेंट में बंद रहना और कुनबे में रहना, अलग कैसे हुआ । घर में भाई - बहनों को अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए..आप अपने भाई या पिता का दायित्व हो सकते हैं मगर अपनी भाभी या अपने जीजा की जिम्मेदारी नहीं हैं क्योंकि यह आपके भाई या बहन की निजी जिन्दगी है तो अपने निजी खर्च और जिम्मेदारियां खुद उठाना सीखिए । हर एक रिश्ते में एक समय के बाद दूरी रहनी जरूरी है । आपको समझना होगा कि विवाह के बाद उस व्यक्ति का अपना एक परिवार है...अपनी मर्यादा रखते हुए सम्बन्ध निभाइए..आत्मनिर्भर रहेंगे तो कोई आप पर हावी नहीं होगा, कोई अहसान नहीं जताएगा। किसी भी विवाद में अपने जीवनसाथी को मत आने दीजिए, उसे अपने भाई - बहनों के साथ खुद सुलझाइए...उनके लिए कुछ करने के लिए आपको किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए । अगर भाई अपनी बहनों को कुछ देने से पहले अपनी पत्नियों की अनुमति मांगते हैं या उनका चेहरा देखते हैं तो ऐसे भाइयों या ऐसी बहनों का क्या काम? अगर बहनों का अपमान होने पर बहनों को कोई फर्क इसलिए न पड़े कि उनका विवाह हो गया है तो ऐसी बहनों की जरूरत क्या है? परिवार वह होता है जहां एक का दुःख, तकलीफ, अपमान, पीड़ा दूसरे की पीड़ा बन जाए...यह हमारी पुरानी पीढ़ी में था इसलिए दूर होने पर भी रिश्ते बने रहे..फिर आज क्या हुआ ? कोई आपके परिवार में दुःखी है, बदहाली में है तो आप आराम से कैसे जी सकते हैं ? सोशल मीडिया पर सुनियोजित रूप से मौसी को परम प्रिय बनाया जा रहा है तो बुआ - फूफा, ननदें, देवर खलनायक साबित किए जा रहे हैं । जो लड़कियां या लड़के शादी के बाद एकछत्र राज्य चाहते हैं, उनसे हमारा विनम्र निवेदन है कि अगर आप मीशो से नहीं आईं या आए तो आपका जीवनसाथी भी फ्लिपकार्ट से डिलिवर नहीं किया गया। उसका पालन - पोषण किया गया है और वह आपकी सास - ननद या जेठ अथवा देवर ने किया है । आपको कोई अधिकार नहीं है कि अपनी कुंठित मानसिकता के लिए किसी का बसा - बसाया परिवार तोड़ डालें । अगर आपको सास - ननद, देवर नहीं चाहिए तो प्लीज डोंट गेट मैरेड....। अलग होकर भी आप अपने परिवार के लिए मटर जरूर छीलेंगी तो सास - ननदों के साथ मटर छीलने में आपत्ति क्यों है? आपको किसने अधिकार दे दिया कि आपकी ननद कब आएगी, कब तक रहेगी...अपने घर से क्या लेगी या क्या नहीं लेगी...ये आप तय करें...जबकि आप अपने मायके में अपने माता - पिता के साथ अपनी भाभी का यह व्यवहार नहीं सह पा रहीं । आपके अधिकार आपके पति पर हैं..आप अपने देवर - ननदों के जीवन से जुड़े फैसले नहीं ले सकतीं, ठीक उसी प्रकार जैसे आपके पति तय नहीं करेंगे कि आपके भाई - बहन जिंदगी कैसे जीएंगे । अगर अपने मायके को कुछ देना है तो वह आप अपनी कमाई से दीजिए । आप अपने मायके से कुछ नहीं मांगेंगी...अच्छी बनी रहेंगी और ससुराल में हिस्सा हड़पने के लिए चालें चलती रहेंगी....नॉट फेयर । यह घर आपके पिता ने नहीं बनाया...आपके पति के पिता ने बनाया है जो आपकी ननद के भी पिता हैं...इस रिश्ते में दरार डालकर अपना घर बसाने से बाज आइए और अधिकार मांगना है तो अपने मायके से मांगिए....फिर देखिए कि आपके वह अपने कितने अपने हैं । बहनों का अधिकार उनके भाइयों पर होता है, भौजाइयों पर अधिकार मत जताइए...हुक्म मत चलाइए...मानिए कि रिश्ते में दूरी है और उसे बने रहना चाहिए । मजे की बात यह है कि सोशल मीडिया पर देवरानी व जेठानी व सास को लेकर मेलजोल और अंडर स्टैंडिंग वाले मीम बन रहे हैं... क्या आपको नहीं लगता कि यह बड़े ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है...यह अनायास नहीं है......अपना कॅरियर, अपना परिवार..अपना फ्यूचर मगर आपको यह सब करने के लिए जरूरत दूसरों की पड़ रही है....सोलह श्रृंगार करके कैमरे पर इतराने वाली वधुएं जरा बताएं..अगर इतनी ही तकलीफ है रिश्तेदारों से तो शादी ही क्यों की? मां की गालियां और चप्पल अमृत समान है और मां जैसी बुआ कुछ कह दे तो उसने जीना हराम कर रखा है...वाह रे हिप्पोक्रेट जेनेरेशन तो अब बुआ को लेकर मीम बनाना बंद करो यूट्यूबरों । जीवन में परफेक्ट कुछ नहीं होता...अगर कुछ बुरा होता है तो वह है मौकापरस्त होना...आप खुद स्वार्थी हैं तो दूसरों से दरियादिली की उम्मीद क्यों? आपके पति के पास अपनी बहन को देने के लिए समय चाहिए...वह आपके भाई..आपके माता - पिता की इज्जत करे मगर अपने भाई - बहनों का पक्ष ले तो वह खलनायक बन गया....गजब हैं जी आप। हमारी परम्परा पाश्चात्य कजन परम्परा नहीं है । भाई - बहन ...भाई बहन होते हैं, हमें कभी समझ ही नहीं आया कि मौसेरा, फुफेरा, चचेरा जैसे शब्द क्या होते हैं और आज की पीढ़ी के लिए ...सब कजन हैं। भाई और बहन तो एक दूसरे की ढाल होने चाहिए कि अगर एक पर आंच आए तो दूसरा खड़ा हो जाए क्यों यह सम्बन्ध तो डिफॉल्ट होता है जिसे ईश्वर ने आपको दिया है । गौर कीजिएगा कि शादी के बाद स्त्रियां कुछ नहीं छोड़तीं बल्कि अपनी ससुराल के संसाधनों का उपयोग कर अपने मायके को समृद्ध करती जाती हैं और लड़के इतने बेवकूफ होते हैं कि पत्नी प्रेम के नाम पर अपने सारे सम्बन्धों, अपनी तमाम संवेदनाओं को तिलांजलि दे जाते हैं। मानसिक और भावनात्मक तौर पर अकेले हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं और एक दिन अवसाद में चले जाते हैं । विवाह का अर्थ अपनी रीढ़ की हड्डी को गिरवी रख देना नहीं होता और अतुल सुभाष जैसी घटनाएं होती हैं क्योंकि आप तो सबसे लड़कर अलग हो गये तो आपके लिए कौन लड़ेगा? मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि असुरक्षा से घिरी किचेन पॉलिटिक्स स्त्रियां दरअसल पहले ही दिन से परिवार के साथ मिलकर रहने में नहीं बल्कि अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने में विश्वास रखती हैं । उनका पहला लक्ष्य ही अपने पति को उसके तमाम रिश्तों से अलग कर खुद पर इतना निर्भर बना देना है कि पति उस पर पूरी तरह निर्भर हो जाए। मूर्ख पुरुषों को पता नहीं कि जिस परिवार को छोड़ रहा है, वह उसका रक्षा कवच है । आपको लेकर जितने प्रोटेक्टिव आपके भाई - बहन या आपके घर के लोग होंगे, उतनी आपकी ससुराल वाले कभी नहीं हो सकते इसलिए अपने जीवनसाथी के निजी सम्बन्धों के बीच में न तो आइए और न ही अपने निजी रिश्तों के बीच में कभी अपने जीवनसाथी को आने दीजिए और न ही किसी को अपने जीवनसाथी के बीच में आने दीजिए । सारा खेल यही है कि दायरे खत्म हो गये हैं...सब गड्डमड्ड हो गया है। हम यह नहीं कहते कि जीवनसाथी का सम्मान मत कीजिए, जरूर कीजिए मगर उसका एक दायरा तय कीजिए, सीमा बांधिए....वह आपका अधिकार है, आपके रिश्ते हैं, आपकी जिम्मेदारी हैं, ईश्वर ने आपको दिए हैं । इनसे न तो कोई आपको दूर कर सकता है और न ही आप खुद इनको खुद से दूर सक सकते हैं । यह आपका जीवनसाथी तय नहीं करेगा कि आपको अपने भाई - बहनों, परिवार या दोस्तों के साथ क्या देना है, कैसे ख्याल रखना है या अपना परिवार कैसे चलाना है....ये सिर्फ और सिर्फ आपका अधिकार है...और इसके लिए कोई आपसे रूठ जाता है तो रूठ जाता है । आप खुद को सुरक्षित और मजबूत कर रहे हैं । अगर आप दो दिन की आई हैं और एकछत्र अधिकार चाहती हैं तो जो आपके पहले जीवनभर आपके साथ के साथ रहा है, उसे हक क्यों नहीं जताना चाहिए ? सोचती हूं कि मान - सम्मान और अपमान की धारणाएं परिवारों में खासकर स्त्रियों के मामले में एकरेखीय क्यों होती हैं? मसलन युग बीत गये मगर आज भी कहा जाता है कि चीरहरण द्रौपदी का हुआ, वनवास सीता को मिला या फिर श्रीराम वन को गए। व्यक्ति कुछ सही या गलत करे तो उसके सिर पर मान व प्रतिष्ठा का बोझ रख दीजिए मगर उसके साथ कुछ गलत हो तो वह उसका व्यक्तिगत मामला है । किसी खिलाड़ी ने पदक जीता तो वह पूरे देश का हो गया मगर महिलाएं सड़कों पर घसीटी जाएं तो वह अपमान महिलाओं का ही होकर रह गया और वह भी कुछ खिलाड़ियों का..हद है। जब कोई स्त्री अपनी इच्छा से अपना जीवनसाथी चुने तो वह कुलघातिनी कहलाती है, अक्सर मां - बाप की इज्जत का हवाला देकर लड़कियों की पढ़ाई या नौकरी छुड़वा दी जाती है मगर वही लड़की अपनी ससुराल में अकेली पड़ जाती है तो वही घरवाले कहते हैं कि यह तो इसका ही भाग्य था। माने अवसरवादिता की भी कोई हद नहीं है । अभी एक मित्र से 20 साल बाद मिलना हुआ। अब वह अधिकारी बन गया है तो सब उसके पीछे दौड़े चले आ रहे हैं मगर जब वह संघर्ष कर रहा था तो लोग उसके साथ नहीं थे। जब हमारे हिस्से के संघर्ष हमारे अपने हैं, तकलीफें हमारी अपनी हैं तो हर अपने सुखों का बंटवारा किसी भी परिवार या समाज के साथ क्यों करें? अक्सर महेंद्र सिंह धोनी या अमिताभ बच्चन की आलोचना की जाती है कि वह अपने किसी चाचा - काका के साथ खड़े नहीं रहे मगर किसी ने वजह जानने की कोशिश नहीं की । ऐसे में सवाल अस्तित्व का खड़ा होता है कि आप हैं कहां...मैंने खरबूजों और गिरगिटों से भी अधिक तेजी से बदलते रिश्ते -नाते और लोग देखे हैं। जब अचानक आप किसी बड़े पद पर चले आते हैं, आपका नाम होने लगता है तो यही बेशर्म लोग आपके सामने खड़े होकर आपको याद दिलाने लगते हैं कि फलाने समय में ढिमकाने तरीके से इन सबने आपकी कई बार सेवा की थी । किसी व्यक्ति का सम्मान जब समाज का सम्मान है, परिवार का सम्मान है तो उसका अपमान समाज या परिवार का अपमान क्यों नहीं है? सब कुछ जानकर भी दुनियादारी के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों को अपराधी क्यों न कहा जाए? आज भी सच तो यही है कि यही रिश्तेदार होते हैं जब आपको आपके घर में प्रताड़ित होता देखते हैं और मौन साधे रहते हैं बल्कि प्रताड़ित करने वाले से अपने रिश्ते बनाए रखते हैं क्योंकि उनको आपसे कोई लाभ नहीं होने वाला रहता। आप उनकी नजर में कोई पागल होते हैं या बेचारा होते हैं जो अपनी जिद के कारण अकेला है। वह नहीं देखते आपका दर्द. आपकी पीड़ा से उनको कोई मतलब नहीं होता । आप उनकी दुनियादारी के एजेंडे में कहीं फिट नहीं होते इसलिए आपका होना न होना उनके लिए बराबर है। आपको बहिष्कृत किया जाता है, आपको अलग - थलग किया जाता है क्योंकि आप उनके किसी काम के नहीं हैं और यही स्वार्थी लोग आपको परिवार का मतलब समझाने लगते हैं...कभी आपके साथ ऐसा हुआ है? मजे की बात है कि अपनी सास के होते हुए घर की मुखिया बन जाने वाली बहुएं परिवार का राग अलापती हैं । घर में किसी सदस्य का निधन हो गया...और उनकी मृत्यु को एक माह भी न हुआ हो..राख ठंडी भी न पड़ी हों और वह अपने बच्चे का जन्मदिन बाकायदा केक काटकर मना रही हो...और वह भी अपने मायके से अपनी भौजाइयों को बुलाकर अपनी रसोई में केक बनवाकर ....आप खुद सोचिए बच्चा कैसे परिवार से खुद को जोड़ सकेगा । एक बात जान लीजिए आपके परिवार का दर्द जितना आपको या आपके भाई - बहनों को होगा...वह दर्द किसी भी सूरत आपकी पत्नी को नहीं हो सकता । जो पराया है, वह पराया ही रहता है..परायी बहन - बेटियां नहीं...बल्कि क्योंकि उसकी दुनिया आपके इर्द - गिर्द सिमटी है और गलत को गलत कहने का सामर्थ्य और जरूरत पड़ने पर दर्पण दिखाने वाली पत्नियां बहुत दिखती हैं। ऐसी जीवनसाथी आपके पास है तो कद्र कीजिए क्योंकि जो आपसे प्रेम करेगा, वह आपको उन सभी से कभी दूर नहीं करेगा जिनसे आप प्रेम करते हैं, जिनके साथ आपका जीवन गुजरा है । वह आपका दुःख जानकर दुःखी भी होगा और खाई को पाटने का प्रयास करेगा। आमतौर पर लड़कियां लड़कों को खुद पर इतना निर्भर बना देती हैं, अपने होने की आदत डलवा देती हैं कि लड़के इस रिश्ते के आगे कुछ सोच ही नहीं सकते और उसकी ससुराल वाले ऐसा व्यवहार करते हैं कि जैसे आप कहीं के राजकुमार हैं...। जाहिर है आपको पैम्पर होना पसन्द हैं, आपको अपना इगो सन्तुष्ट होता लगता है और कल तक जिन भाई - बहनों की बातें आपको नोकझोंक लगती थीं, अब वह आपको जहर लगती हैं । आप मानसिक रूप से अपने ही परिवार से कटने लगते हैं और अलग - थलग पड़ने लगते हैं मगर दूसरी तरफ आपकी पत्नी का मायका और ससुराल दोनों सही सलामत हैं। उसने कुछ नहीं खोया...आपको अलग लेकर उसने अपनी गृहस्थी बसा ली...बच्चों के साथ आपकी दुनिया बस गयी मगर इस घर में सबसे अधिक हताश अगर कोई है तो वह आप ही हैं...आपकी हिम्मत नहीं होती कि आप अपने अपनों से बात कर लें...भाई - बहनों से बात करने को तरसते हैं मगर आपकी पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह घर आपका था, जो रिश्ते खोए हैं, आपने खोए हैं । मां - बाप को छोड़ने का अपराधबोध आपके भीतर है । आपको क्या लगता है कि ऐसी स्थिति में आपके बच्चे कभी परिवार का सही अर्थ समझेंगे..रिश्तों का महत्व समझेंगे और आप उदाहरण देंगे तो किसका देंगे? इस पर भी अगर आपका जीवनसाथी आपकी तकलीफ को नहीं समझ पा रहा तो अब भी वक्त है, जो आपके रिश्ते हैं, उनको समेटना शुरू कीजिए। जो आपके अपने हैं, सीधे फोन घुमाकर बात कीजिए...वैसे ही मिल जाइए जैसे कि आप बचपन में लड़ने के बाद मिल जाते थे...नयी शुरुआत कीजिए...आप एक कदम उठाइए...देखिए कि झक मारकर लोग आपके पास आएंगे । आपकी जरूरत उनको है जो हमेशा से आपके थे, वही आपका रक्षा कवच हैं...वही आपकी दुनिया हैं । इन रिश्तों को समझना आपके बच्चों का हक है ...दीजिए ये हक उनको। संचालक का पहला दायित्व मुद्दों को समग्रता से देखना है क्योंकि एक निरपेक्ष व्यक्ति ही परिवार, देश या समाज को आगे ले जा सकता है। किसी परिवार में एक स्त्री अथवा पुरुष का जीवन नर्क बना दिया जाता है, उसके हिस्से का सुख, उसका परिवार सब छीन लिया जाता है, उसे एक नारकीय जीवन दिया जाता है और अंत में वह दुनिया छोड़ जाती है और यह सब एक समूचा खानदान देखता है और सामान्य बना रहता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। इसके बाद फिर यही सब कुछ दोहराया जाता है और लोग फिर से सामान्य बने रहते हैं । विरोध करने वाले को पागल साबित करने का प्रयास होता है मगर जब वह हर चीज से आगे बढ़ता है तो उसे नीचे गिराने की कोशिश की जाती है..और फिर से परिवार...समाज,....कुल ..खानदान के नाम पर...वाकई यह परिवार है ..या कोई मरघट..यह धरती है ....कोई बता दे मुझे। आज परिवार को परिवार व्यवस्था को लेकर बातें बहुत हो रही हैं मगर सोचिए तो परिवार क्यों टूटे...आखिर क्या वजह थी कि घर के छोटे बच्चो को कमान अपने हाथ में लेनी पड़ी । भरी सभा में अत्याचार देखकर भी भीष्म अगर मौन बने रहे तो विकर्ण को बोलना ही पड़ेगा । दुःशासन के हाथों में अपना अपमान होते देख द्रौपदी को बोलना ही पड़ेगा और उस पर भी बात न बनी तो महाभारत का होना तो तय है ।

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