दीया विश्वास है, दीया संघर्ष है, दीया परिवर्तन है
दीपावली बीत चली मगर दीयों का नाता किसी एक दिन से तो नहीं होता तो बात कही जा सकती है । भारतीय संस्कृति में दीयों का अपना महत्व है। हर साल दीपावली आती है और चली जाती है मगर कभी इस बारे में इस तरह से नहीं सोच सकी जैसे आज सोच रही हूँ। छोटी चीजों पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता जब तक कि हमें उनकी जरूरत न पड़ती हो। दीया उनमें से एक है। पूजा के दौरान दीये की याद आती है, दीपावली के दौरान हमें इसकी याद आती है। दीयों पर कई तरह की कविताएं लिखी गयीं मगर अवसर के अनुसार लिखी गयीं। दीया और वह भी मिट्टी का दीया बहुत साधारण सी चीज है। कुम्भकारों को आमतौर पर दीपावली के दौरान या पूजा के दौरान याद आता है, मांग भी बढ़ जाती है। इधर अयोध्या में दीपोत्सव के दौरान लाखों दीये जलाने की परम्परा चल पड़ी है, सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी इसका अपना महत्व है मगर बात जब भक्ति की हो तो वहां आडम्बर नहीं, निश्चलता देखी जाती है, दीया चाहे सोने का हो, चांदी का हो या मिट्टी का हो..निश्चलता उसमें कूट - कूटकर भरी है। वह प्रकाश भले ही किसी और से पाता है मगर जब तक जलता है, अन्धेर से लड़ता है। कितने परिश्रम