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मालदा...जिन्दगी की जद्दोजहद और हकीकत से एक मुलाकात

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हम पत्रकारों के काम की सबसे अच्छी बात यह है कि हमारी पत्रकारिता हमें कभी पुराना नहीं पड़ने देती। नए लोगों से मिलना, नये अनुभव और हर बार कुछ नया सीखना...हमें नया रखता है। नयी जगहों पर जाना होता है और हमारे दायरे में बंगलों से लेकर झोपड़ियां तक होती हैं। पहले भी कई जगहों पर जाना हुआ है और दूसरे शहरों में भी गयी हूँ मगर कुछ असाइनमेंट ऐसे होते हैं जिनको कभी भूला नहीं जा सकता। वहाँ जाकर आप देखते ही नहीं, कुछ नया सीखते हैं और निराश होते जीवन में एक नयी उम्मीद और जीजिविषा जाग उठती है।  यूनिसेफ और तलाश के बाल फिल्मोत्सव में जाना एक ऐसा ही अनुभव रहा। शहर की चकाचौंध से बाहर जिन्दगी से मुलाकात हुई और मुश्किल हालात में जी रहे लोगों को देखकर अब लग रहा है कि हमारी मुश्किलें तो कुछ भी नहीं हैं...जिन्दगी को देखने का नजरिया भी बदलता जा रहा है। शहरों में रह रहे लोगों के लिए गांव एक पिकनिक की तरह है और गाँव के लोग शहरों को खासी उत्सुकता से देखते हैं। उनके लिए कोलकाता से आने वाले लोग बहुत अद्भुत होते हैं और जब आप पत्रकार हों या मीडिया से हों तो यह उत्सुकता और बढ़ जाती है। एक दूरी सी बन गयी ह

बीएचयू के वीसी,शिक्षकों, छात्रों और वहाँ के लोगों के नाम खुला पत्र

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महानुभव, आदरणीय तो आप हैं ही नहीं और सम्मान देने के लायक नहीं हैं इसलिए बात सीधे शुरू कर दें। मैं बंगाल से हूँ और कलकत्ता विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा हूँ और मुझे इस बात का गर्व है। आपको देखकर अपने शिक्षकों, वाइस चांसलरों और बंगाल की जनता के प्रति गर्व और बढ़ गया है। बीएचयू का नाम बहुत सुना था, जब भी कोई बीएचयू की बात करता तो उसमें एक अकड़ होती कि वह सर्वश्रेष्ठ है।  केन्द्रीय विश्वविद्यालय है, विशाल परिसर है, अनुदान की कमी न हीं है तो नाम तो होना ही है। आप महामना के सम्मान को लेकर चिन्तित हैं और अपनी कारगुजारियों को ढकने की कोशिश में जुटे हैं। मैं एक बात कहूँ, उनका सम्मान पूरा देश करता है मगर एक बात सत्य है कि आप अपनी छात्राओं के साथ जो कर रहे हैं, उसे देखकर वे सबसे पहले आपको पद से हटाते। त्रिपाठी जी, आपने शायद नहीं सिखा मगर किसी भी शिक्षक, प्रिंसिपल और वाइस चांसलर के लिए उसके विद्यार्थी बच्चों की तरह होते हैं, गुलाम नहीं जैसा कि आप समझ रहे हैं।  आपमें यह गुण है ही नहीं। आपने कहा कि " अगर हम हर लड़की की हर मांग को सुनने लगें तो हम विश्वविद्यालय नहीं चला पाएंगे। मैं क

इतिहास का काला अध्याय है ‘गोरखपुर बालसंहार’

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 उत्तर प्रदेश इन दिनों बेशर्म बेरहमी का अखाड़ा बना हुआ है। एक मरघट लगा है जहाँ सिर्फ वे रौंदे हुए फूल पड़े हैं जिनको असमय तोड़ दिया गया और माली बिलख रहे हैं....जो हालात हैं, उसे देखकर कहना पड़ रहा है कि यह क्रन्दन खत्म नहीं होने वाला है। क्या हमारी मानसिकता इतनी वीभत्स हो गयी है कि संवेदना मात्र के लिए जगह नहीं बची। गोरखपुर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का क्षेत्र है जो इन दिनों झाड़ू लगाकर अपने गुनाहों पर परदा डालने में लगे हैं। जी, हाँ ये गुनाह ही है और इन मौतों को बालसंहार ही कहना अधिक सही शब्द है। आश्चर्य है कि यहाँ बच्चों की मौत पर भी राजनीति और लीपापोती हो रही है। मोदी ने सत्ता सम्भालते ही स्वच्छ भारत अभियान चला दिया था। झाड़ू अच्छी चीज है मगर क्या झाडू ही काफी है ? गोरखपुर तो शायद पहली कड़ी है और मीडिया की नजर भी वहाँ इसलिए पड़ी क्योंकि वह खुद मुख्यमंत्री का बतौर सांसद लोकसभा क्षेत्र है, न जाने ऐसी कितनी गुमनाम मौतें रोज हो रही हैं। मोदी जी, आपका न्यू इंडिया कैसे बनेगा जब भविष्य कहलाने वाले हमारे नौनिहाल यूँ आपकी सरकार और प्रशासन की लापरवाही के हाथों असमय अपनी