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हो सकता है कि जो लिखने जा रही हूँ वह बहुतों को नागवार गुजरे , यह भी कहा जा सकता है कि कुछ नियम ही ऐसे हैं मगर नियम जब आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने लगे , तब ऐसा ही  होता है , कहकर खुद को समझाना बहुत कठिन होता है , कुछ पेशेवर तकाजा भी है और हो सकता है कि यह दूतावासों से लेकर हवाई अड़्ों की संस्कृति हो। बात अमेरिकन सेंटर की हो रही है , जहाँ कई सालों से आना जाना होता रहा है। सुरक्षा के लिए जाँच भी तकाजा है , यह भी स्वीकार कर लिया जाए इसका तरीका बाध्य कर देता है कि यह सोचा जाए कि क्या हम अपने ही देश में हैं। और हाँ , तो दूसरों के बनाए नियम हम पर क्यों लागू होंगे। जाँच के नाम पर आपका सामान बिखेरकर तलाशी लेना , और फिर आपको आपको पानी पीने को बाध्य करना , अनचाहे ही शक का दायरा खड़ा करता है। सवाल यह है कि विदेशों में तो हमारे पूर्व राष्ट्रपति से लेकर अभिनेताओं तक को तलाशी के नाम पर अपमान सहना   पड़ा है तो फिर मैं क्यों शिकायत कर रही हूँ। वैसे क्या बराक ओबामा को भी भारत आने पर  तलाशी देनी पड़ी होगी। हद तो तब हो जाती है जब कई बार आपको असमय दवा खाने को कह दिया जाता है। बात विश्वा...
महिला सशक्तीकरण का मतलब पुुरुषों का नहीं उस पितृसत्तात्मकता का विरोध करना है जो परंपरा के नाम पर स्त्रियों को कमतर समझकर उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है। कहने को स्त्री और पुरुष समाज के दो पहिए हैं मगर स्त्री वह पहिया है जिसे जिम्मेदारियों के नाम पर घिसा तो गया मगर अधिकारों का तेल नहीं लगने दिया गया। जो लोग परदा प्रथा और देवी बनाकर स्त्री से आज भी मध्ययुगीन सभ्यता में जीने की उम्मीद रखते हैं, जो स्त्री को उपभोग की सामग्री मानकर उस पर अधिकार जताते हैं, दहेज या प्रेम मे ं ठुकराए जाने पर उस पर तेजाब फेंकते है और बलात्कार या हिंसा को लड़कियों की नियति मानते हैं उनसे ही यह सवाल है, क्या आप शादी के नाम पर अपनी ससुराल को दहेज देना पसंद करेंगे, और वहां रहना पसंद करेंगे। कैेसे लगेगा जब दहेज के साथ आपको वह तमाम काम करने पड़ेे जो आपकी पत्नी करती है। क्या करेंगे जब धोखेबाजी की शिकार कोई प्रेमिका आपके चेहरे पर तेजाब फेंके। क्या होगा जब यौन हिंसा की घटनाएं आपके साथ हों। घर की इज्जत के नाम पर लड़कियों की जान लेने वालों को कैसा लगेगा जब ऐसी घटिया हरकतों के लिए लड़कियां हिंसक हो उठें, लड़कों क...
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