आखिरकार धमाकों और गोलियों के बीच निगम का चुनाव खत्म हुआ, अब नतीजों का इंतजार है मगर कल जो नजारा था, उसे लोकतंत्र के अनुकूल तो नहीं कहा जा सकता। लोकसभा चुनावों में जो उत्साह था और लगता तो ऐसा ही है कि बंगाल में चुनाव औपचारिकता मात्र ही हैं क्योंकि स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा जैसा शब्द राजनीति में अब प्रासंगिक नहीं रहा, एक ही टीम बैटिंग भी करती है, गेंदबाजी भी करती है, कैच भी पकड़ती है और फिर चोरी का रोना भी रोती है। इस टीम को विरोधी नही, लगता है कि उसके खिलाड़ी ही मात देंगे। एक साल में काफी कुछ बदल गया। बहरहाल जिंदगी ने मानों नया मोड़ लिया है और खुद से जूझने के बाद आखिरकार मैं कह सकती हूँ जो होता है, अच्छा होता है, काश यह बात हमारे राज्यवासियों पर और देश पर भी लागू हो पाती, पता नहीं अच्छे दिन कहाँ थम गये,

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