आइसक्रीम खाएंगे, जब मैंने रस्सी पर खेल दिखाती गौरी से बतियाने की कोशिश की तो गौरी का पहला वाक्य यही था। नीचे भीड़ खड़ी उसका तमाशा देख रही थी, पास ही कानून के पहरेदार भी थे मगर आँखों के सामने बालश्रम या यूँ कहें, कि बच्ची की जान को दाँव कर लगाकर तमाशा देखने वाले अधिक थे। गौरी 2 साल से ही सयानी हो चुकी है, घर चलाने के लिए और भाई के इलाज के लिए अपने भाई -बहनों के साथ खेल दिखाती है मगर उसकी छोटी सी आँखों में बचपन पाने की चाह को छोड़कर मैं कुछ नहीं देख पायी। माँ कहती है कि उसकी बेटी सब कर लेती है, बेटी जब खेल दिखाती है तो माँ और भाई नीचे चलतेे दिखे, भाई ऊपर जाता तो गौरी नीचे चलती। ऊँची पतली रस्सी पर खड़ी गौरी पता नहीं दुनिया को तमाशा दिखा रही थी या नीचे खड़े तमाशबीनों का तमाशा देख रही थी, पता नहीं मगर मन बहुत परेशान हो गया। गौरी मानों अब तक मेरा पीछा कर रही है, मैं उसकी कहानी पहुँचा सकूँ, इसके अलावा फिलहाल और कुछ नहीं कर सकती। माँ को भी दोष कैसे दूँ मगर दोषी फिर कौन है, गरीबी, व्यवस्था या कुछ और। पता नहीं मगर उसकी आवाज गूँज रही है - आइसक्रीम खाएंगे
दिल्ली का वह सफर जिसने अपनी सीमाओं को तोड़ना सिखाया
पुराने किले की सीढ़ियों पर सफर कैसा भी हो बहुत कुछ सिखा जाता है और किसी सफर पर निकलना अपनी सीमाओं को तोड़ने जैसा ही होता है। वैसे काम के सिलसिले में कई बाहर बाहर निकली हूँ मगर हर बार बँधा - बँधाया ढर्रा रहता है और आस - पास लोगों की भीड़। वो जो एडवेंचर कहा जाता है...वह रहता जरूर है मगर कभी अपनी हिचक को तोड़ना मुमकिन नहीं हो सका था मगर इक्तफाक बहुत कुछ बदलता है जिन्दगी भी और सोचने का तरीका भी। विमेन इकोनॉमिक फोरम में जब शगुफ्ता को सम्मानित किए जाने की सूचना मिली तो उसने अपने साथ मेरे जाने की भी व्यवस्था कर दी थी मगर मुझमें हिचक थी। हसीन इक्तिफाक थे टिकट को रद्द भी करवाया मगर दिल्ली मुझे बुला रही थी तो इस बीच कविता कोश के मुक्तांगन कार्यक्रम में प्रसिद्ध कवियित्री रश्मि भारद्वाज माध्यम बन गयीं। बेहद स्नेहिल स्वभाव की रश्मि जी सम्बल देना भी जानती हैं। उनके माध्यम से और कवि जयशंकर प्रसाद की प्रेरणा को लेकर लिखे गए आलेख ने अकस्मात दिल्ली यात्रा की भूमिका लिख दी। 2016 में दिल्ली पहली बार गयी थी और देश भर की महिला पत्रकारों के साथ बीते उन लम्हों ने कुछ अच्छे दोस्त भी दिये मगर घूमना न ...
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