30 मई.....पत्रकारिता और पत्रकार




आज पत्रकारों का दिन है, सोशल मीडिया पर उदन्त मार्तण्ड की तस्वीरें सुबह से चल रही हैं। सद्य पुरातन पत्रकारिता की याद में आँसू बहाने वाले लोग आज के पत्रकारों को गालियाँ देकर अपना मन हल्का कर रहे हैं। पीत पत्रकारिता करने वाले अखबारों की खबर लेकर अपनी कलम को धन्य कर रहे हैं और इसी बीच कोई पत्रकार कड़ी धूप में किसी नेता का बयान लेने के लिए पसीना बहा रहा है तो कोई डेस्क पर बैठा इस बात को लेकर अपने बेटे या बिटिया को फोन पर ही बता रहा है कि उसे अमुक अमुक काम इस समय पर कर लेना चाहिए। एक वयोवृद्ध उप सम्पादक बेटी की शादी के लिए अच्छे रिश्ते की जुगाड़ की फिक्र में सम्पादन का काम सम्भाल रहे हैं तो इतने में ही घड़ी पर नजर पड़ने के बाद किसी महिला पत्रकार के हाथ कलम और कीबोर्ड पर एक साथ चल रहे हैं क्योंकि घर जाकर रात को बेटी को पढ़ाना है और पति अगले दिन काम से बाहर जा रहे हैं। रात हो चली है और कोई सम्पादक पेज छुड़वाकर राहत की साँस ले रहा होता है और दो मोबाइल एक साथ बजते हैं...एक घर आने में कितनी देर है (घर दूर है, देर रात निकलकर पहुँचने में अगले दिन की सुबह हो जाएगी) और दूसरा (इन्होंने विज्ञापन दिया है, इनका नाम जरूर जाना चाहिए।) पेज को बीच में रुकवाकर उन मशहूर उद्योगपति का नाम दिया जाता है क्योंकि नाम छूट जाने पर सम्पादक महोदय की क्लास अखबार के मालिक के सामने लग जाएगी। पब्लिक अच्छी तस्वीरें देखना चाहती हैं....ये क्या आप हमेशा लड़कों की तस्वीरें छापते हैं, फोटोग्राफरों को कहिए कि खूबसूरत और अपनी भाषा बोलने वाली युवतियों की तस्वीरें छापें।....अखबार का फिल्म पेज टेबल पर पसरा है...नोट के साथ...ये बॉलीवुड पेज है न स्कूप डालिए...अरे...सनी लियोनी की तस्वीर साड़ी में डाल रहे हैं....ये क्या मजाक है....और उसी टेबल पर एक पाठक का पत्र है...समझ में नहीं आता कि आप अखबार निकाल रहे हैं कि कोई अश्लील फिल्मी पत्रिका...अगर यही हाल रहा तो अखबार बन्द करना होगा। सम्पादक महोदय की अगली सुबह दफ्तर में ही हो गयी है...ये किसी भी अखबार या पत्रिका का नजारा है...। घर से दसियों बार फोन आ चुका है, रात भर भूखे रहने के बाद घर में घुसने के बाद एक ही कथन...तुम अखबारवालों को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए थी.....और दफ्तर का बारुद घर में फट गया।
(आरामदेह जिन्दगी)
बाइट ले रहा हूँ या लाइव हूँ....फोन मत करना.....प्लीज.....कट से फोन के साथ रिश्ता भी कट हो गया.....महत्वपूर्ण बैठक है...चैनल को ब्रेकिंग चाहिए.....आपाधापी में पैर में वहीं चोट लगी जहाँ कल पुलिस के डंडे पड़े थे.....सोशल मीडिया पर गए....इन बिकाऊ चैनलों पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा देते...सब दलित और अल्पसंख्यक विरोधी हैं....सबको सत्ता ने खरीद लिया। (राज्य के हिसाब से खरीदने वाली पार्टी का नाम बैठा लें। ) अब छुट्टी के दिन कहाँ निकल पड़ी.....? कैसा काम है कि दम मारने को चैन नहीं है, ऑफिस से बोलकर छुट्टी ले या 8 बजे तक घर आ जा....कोई जरूरत नहीं है रात को काम करने की। लड़कियों के लिए जो नौकरी सही है, वही कर...अगली बार एसएससी का फॉर्म ला दे रहा हूँ, चुपचाप भर देना.....दिमाग में कवरेज घूम रहा है और फोन बजता है....अभी तक पहुँची नहीं आप....रहने दीजिए आपसे काम नहीं होगा। इतने आराम से रिर्पोटिंग नहीं होती है....अरे नहीं होता तो छोड़ दीजिए न....बहुत से लोग पीछे हैं...कितनों की जगह जाम करके बैठ गयी हैं.....इसके पहले कुछ बोलती...फोन कट गया और आँख से आँसू बह चले....मगर समझेगा कौन....? आँसू पोछे कि फिर फोन बजा....अगले दिन सुबह तुम्हारे कॉलेज का प्रोग्राम है...इस कॉलेज ने तुमको इतना दिया है....उम्मीद है कि तुम आओगी...।
(प्रोत्साहित करने वाला वातावरण)
भइया...आप तो मीडिया वाले हैं...सब डरते हैं आपसे...। चाय मँगा दे क्या भइया....बैठ जाइए...अरे....भइया के लिए चाय लाना.....न...न में चाय लाने के लिए लोग चले गए...भइया मेरा चाचा का लड़का का एडमिशन कराना है....आप लोगों का तो सोर्स है न करवा दीजिए न...कुछ लेना देना  हो तो भी दिक्कत नहीं...चाय आ गयी है....भइया हम गली में जगराता करवा रहे हैं, एक एड देना है, आपके अखबार में छप जाता तो...भइया...को अचानक फोन आता है....काम  कर रहे हैं या अड्डा मार रहे हैं....कुछ खबर निकली? नहीं निकली तो आ जाइए....भइया चले गए....अरे जानता नहीं...रिपोर्टर लोग हमरा मुट्ठी में है...फोन में कॉन्टेक्ट लिस्ट खुलती है....एक के बाद एक ....ए देख....।
(सेलिब्रेटी पत्रकार)
अरे....आपका बात नहीं मानेगा...आपका तो पार्टी है...हम खबर दे तो देगा मगर...एंटी है....छपेगा....आप अपना एडिटर को बोलना...अच्छा आपको तो जानता है...लो। मैडम खबर ले आती हैं....बेरोबे न, देखे निबी....।
सब खबर लाने का मतलब थोड़े न है कि छपेगी ही....आपका काम है खबर लाना...इसके बाद आपको सोचने की जरूरत नहीं है....अच्छा रुकिए देखा जाएगा....थोड़ा बचाकर लिखा कीजिए...
सॉरी दादा...खबर छोटी हो गयी...अरे मैडम, हम तो पहले ही बोला था...आपके अखबार में मुश्किल होगा....मन में आता है - हाँ, मगर वह एक बाईलाइन स्टोरी होती। खबर...किसका प्रोग्राम था.....उत्तर मिला...क्या दिया....वाह ये तो अच्छा है...लिखिए.....सामने वाली आलमारी में रख दीजिए...काम आता है कहीं देने के.....दूसरा क्या था....ये बस...अच्छा अपने पास रखिए...मेरे पास बहुत है। कुछ देगा नहीं तो फायदा क्या है इतनी दूर रिपोर्टर भेजकर....।
(निष्पक्ष व ईमानदार पत्रकारिता)
प्रोग्राम का दृश्य....हाँ रजिस्टर कर दिया...क्या है ये....उफ...इतना घटिया....कुछ अच्छा दिया कीजिए...इतनी बड़ी कम्पनी, प्रचार और ये गिफ्ट...क्या समझा है पत्रकारों को?....ठीक है.....सर....ध्यान रखेंगे....
न...हमको गिफ्ट नहीं चाहिए...शाहरुख कब आ रहा है, वह बताइए....मैं उसको एक झलक देखना चाहती हूँ और सलमान...उसको देख लिया...अब कुछ और नहीं चाहिए....थोड़ी धूप कम हो निकलेंगे...अच्छा पिकअप दीजिएगा....मेरी स्किन खराब हो गयी है....
बोला था न इसको मत बोलो...जहाँ जाता है मुँह खोल देता है....और इन लोगों को इज्जत चाहिए...भीख माँगते हैं....पत्रकार हैं ये...फोन बजा...हाँ सर पीआर यहीं पर है.....आप आइये न, हम लोग हैं न।
(सम्मानित और इज्जतदारों की प्रायोजित पत्रकारिता)
ये खबर अच्छी है....हाँ...सर बहुत अच्छी स्टोरी है और ये लोग अच्छा काम कर रहे हैं, ह्यूमन एंगल है.....हाँ, ये लोग क्या पेपर को विज्ञापन देते हैं? न में सिर हिलता है...सिंगल डीसी बना कर छोड़ दीजिए....सकारात्मक पत्रकारिता...कचरे के डिब्बे में चली जाती है....अचानक फोन आता है...हाँ सर...हाफ पेज....अच्छा फुल पेज....पूरा कवरेज देंगे सर...फोन रखा जाता है....एक साध्वी आ रही हैं और एक समाज सेवी का निधन हो गया है.....दोनों को अच्छे से लिखिए....विज्ञापन है...नाम इधर से उधर नहीं होना चाहिए....जुबान से निकलता है...सर....कहा न सिंगल....और कुछ नहीं सुनना है.....फीचर घी है और खबर दाल चावल है...घर चलता है...माने अखबार चलता है.....अखबार चलेगा तो सैलरी बढ़ेगी...। और हाँ, आगे से विज्ञापन नहीं तो खबर नहीं....याद नहीं दिलाना पड़े...फोन बजता है...हाँ आप लोग अच्छा काम कर रहे हैं मगर इससे हमारे रीडर्स को क्या मिलेगा और अखबार को क्या मिलेगा...सॉरी अखबार की पॉलिसी यही है....कुछ नहीं हो सकता। 
(धंधेबाज और प्रोफेशनल पत्रकारिता की नयी पीढ़ी का जन्म)
आपको मना किया था...इस पर लिखने से....पार्टी ऑफिस से फोन है और ये खोजी पत्रकारिता है...क्यों गए....क्या कहा...अन्याय हुआ था...गलत तरीके से जमीन ली गयी....फोन बजा....अरे, सर आप क्यों तकलीफ करते हैं...अच्छा नीचे खड़े हैं...आ जाइए...संवाददाता से...आप बैठिए....बुलाएंगे तो आइएगा....सोने से लदे लोग...आ चुके हैं....अगर यही हाल रहा तो अगली बार सोचना होगा....इंडस्ट्री कैसे टिकेगी.. बताइए...सर, नया है...सब ठीक हो जाएगा.....संवाददाता अगले दिन अखबार खोलता है....खबर पलटी जा चुकी है....फोन बजता है...भइया...आप क्या लिखे और क्या छपा..हम लोग का जगह छिन गया.....अगले पन्ने पर उसी कन्सट्रक्शन का विज्ञापन छपा है.....आँसू और मेहनत एक साथ छलक पड़ते हैं.....अब उस गली से गुजरने में ग्लानि होती है...एक अपराधबोध सा कुछ पीछा करता है....। सम्पादक महोदय का प्रोमोशन हो गया है और पत्रकार....कुछ कहने की जरूरत है?
(संवाददाता को लिखने की पूरी आजादी है और अखबार साथ खड़ा है)
मैनेजमेंट का मामला है...ट्रैफिक में गाड़ी फँस गयी है...क्राइम रिपोर्टर को बोलिए, मामला सुलझा लेगा....अरे, क्या नाम है उस लड़की का जो एविएशन करती है...उसको बोलिए....बात करे...विंडो सीट ही चाहिए...फैमली को साथ ले जा रहे हैं। हम उनको सैलरी देते हैं....अगर नहीं कर सकते हैं तो छोड़ दें....लाइन लगी है....आज ही नए बायोडाटा निकालिए...
(स्वतन्त्र पत्रकार)
हाँ, हम गाय काटने का सपोर्ट नहीं करते मगर काम अलग सिद्धांत अलग...सीएम ने कहा है तो मानना होगा....ये क्या लेकर आए हैं....कोई मारवाड़ी नहीं मिला....ये रिक्शेवाले और मूढ़ीवाले विज्ञापन देंगे....आपका अखबार कौन पढ़ता है...न कोई जरूरत नहीं हाईलाइट करने की....फोन बजा....हाँ....दो पेज...अच्छा सर अनुवाद हो जाएगा....रिपोर्टिंग में ही करवा लेंगे....सरकार की उपलब्धियाँ न....न दादा.....इसकी  क्या जरूरत थी....आप लोगों ने लायक समझा यही बहुत है।....दूसरा फोन बजा...जागरण है....ठीक है...हाफ पेज से कम नहीं होना चाहिए....अच्छा लॉन्चिंग भी है......ठीक है, प्रेस रिलीज भेज दीजिएगा। फोन कटा....दूसरे अखबारों से बात नहीं भी करेंगे तो चलेगा...कहाँ क्या चल रहा है....सब मार्केट से पता चल जाता है...लास्ट वार्निंग...अच्छा सा भाषण लिखिए...एक सम्मान समारोह में देना है.....और हाँ, एक लेख लिखवाइए किसी से आज के युग में ईमानदार और निष्पक्ष पत्रकारिता और पत्रकार

आधुनिक व समसामायिक पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जमाना थाली के बैंगन का है

दिल्ली का वह सफर जिसने अपनी सीमाओं को तोड़ना सिखाया

गंगा की लहरें, मायूस चेहरे. विकास की बाट जोहते काकद्वीप से मुलाकात