तर्क का उत्तर तर्क हो सकता है, उपहास नहीं..कमियाँ देखते हैं तो उपलब्धियों को स्वीकार भी कीजिए



महाभारत को लेकर त्रिपुरा के मुख्यमंत्री का बयान सुर्खियों में है...मीडिया को एक नयी स्टोरी मिली...आधी हकीकत और आधा फसाना...जैसे कार्यक्रमों के लिए एक नया मसाला मिला....सोशल मीडिया पर  मजाक उड़ाया जाना जरूरी है मगर आप अपने प्राचीन ग्रंथों...और रामायण व महाभारत जैसे ग्रन्थों पर विश्वास करते हैं तो आप एक झटके से इनको खारिज नहीं कर सकते।

 यह शोध का विषय है, उपहास का विषय नहीं है..यह मानसिकता कि सब कुछ हमें पश्चिम से मिला है..और अपनी उपलब्धियों का माखौल उड़ाना कहीं न कही हमारी पश्चिम पर निर्भरता के कारण है....आज जो चीजें परिवर्तित रूप में हमारे सामने हैं,वे किसी और रूप में पहले थीं...आपने उसे खोया है। भला यह कैसे सम्भव है कि कोई कल्पना के आधार पर एक या दो नहीं बल्कि पूरे एक लाख या उससे अधिक श्लोंकों की रचना कर डालें।

 आप नाम भले इंटरनेट का न दें...मगर महाभारत और इसके पहले कुछ तो था जिसे हम और आप नहीं जानते...मुख्यमंत्री विप्लब देब अगर संजय ने महाराज धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल सुनाया तो कोई तो तकनीक ऐसी रही होगी...जिससे ये सम्भव हुआ होगा जबकि उस समय में मोबाइल फोन का सहारा भी उनको नहीं लेना पड़ा। अगर आप पुष्पक विमान को हवाई जहाज नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? आज आप किताबें पढ़ते हैं, तब मंत्रों का प्रचलन था और मंत्रों के माध्यम से ही सिद्धि होती थी...क्या भारत में शल्य चिकित्सा का इतिहास नहीं है।

क्लोनिंग - पूर्वजों ने महाभारत काल में ही क्लोनिंग कर दिखाई थी | महाभारत के आदिपर्व में इसका वर्णन अध्याय –  115 में मिलता है | कुन्ती को सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ | यह सुनकर गांधारी ने, जिसे 2 वर्षों से गर्भ होने के बावजूद संतान की प्राप्ति नहीं हुई | जिससे परेशान होकर गांधारी ने स्वयं अपना गर्भपात कर लिया | गर्भपात होने के बाद लोहे के गोले के समान माँसपेशियाँ निकली | इस समय व्यास ऋषि को बुलाया गया | उन्होंने इस ठोस मांसपेशियों का निरीक्षण किया | व्यास ऋषि ने इस मांसपेशियों को एक कुण्ड में ठंडा कर विशेष दवाओं से सिंचित कर सुरक्षित किया |

 बाद में इन मांसपेशियों को 100 गांठ ( पर्वों ) में बाँटा तथा 100 घी से भरे कुण्डो में रख कर 2 वर्षों तक सुरक्षित रखा | 2 वर्ष बाद क्रमानुसार गांधारी के 100 पुत्र क्लोनिंग से ही जन्मे | महाभारत काल में शुक्राणु कोशिका यानी स्टेम सैल के द्वारा ही 100 कोरवों को जन्म देने की पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया का वर्णन इसमे लिखा हुआ हैं | गुरु द्रोणाचार्य भी टेस्ट ट्यूब पद्धति से जन्मे हैं। आप इस प्रसंग में नैतिकता पर प्रश्न उठा सकते हैं मगर तकनीक को नकार नहीं सकते। क्या ये टेस्ट ट्यूब बेबी की परिकल्पना के साकार होने जैसा नहीं लगता।
चक्रव्यूह 

मंत्रों से पांडवों का जन्म या द्रोपदी की पुकार पर कृष्ण का आना क्या आपको टेलिपैथी की याद नहीं दिलाता...जब कि वो तो उस समय वहाँ थे ही नहीं...क्या आपको कभी - कभी महसूस नहीं होता.। क्या वृन्दावन, मथुरा, काशी, अयोध्या...जैसे नाम आज भी प्रचलित नहीं हैं....यह कैसे सम्भव हुआ और क्या कुछ नाम परिवर्तित रूपों में नहीं हैं...क्या आपको कान्धार गान्धार का परिवर्तित रूप नहीं लगता...कुरुक्षेत्र...रामेश्वरम सेतु आज तक कैसे हमारे बीच  उपस्थित हैं...बताइए..

अगर आपको कोई याद करता है...कई बार घटनाओं का पूर्वानुमान भी क्या नहीं होता...हम क्यों बिप्लव देव पर हँस रहे हैं...आप कम से कम उनकी बात को परखिए तो सही..। हम नहीं जानते हैं तो यह हमारी कमजोरी है। द्रोपदी का जन्म अग्नि से हुआ...अगर नहीं हुआ तो सिद्ध कीजिए.....आप असहमत हो सकते हैं मगर माखौल उड़ाना तो उन प्रश्नों से भागना है जिन पर खोज करने की जरूरत है।

यह सही है कि अतीत में गलतियाँ हुईं, अन्याय भी हुआ मगर जिस तरह गलतियों से सीखा जा सकता है...उसी प्रकार अपनी उपलब्धियों और खूबियों पर बात करने में क्या हर्ज है। आज आप मिसाइलों की बात करते है और हथियारों को तो आज भी आग्नेयास्त्र कहा जाता है मगर उस समय जो वाण थे..या जिस सुदर्शन चक्र का, गांडीव धनुष का,...उल्लेख किया जाता है..क्या आप उसकी शक्ति को कमतर मान सकते हैं।


सोलर सिस्टम: विश्व के वैज्ञानिक जिस सोलर सिस्टम की खोज काफी बाद में कर पाए है उसके बारे में हमारे ऋगवेद में प्राचीन काल से वर्णन किया गया है। ऋगवेद के अनुसार ‘सूरज अपनी कक्षा में घूमता है और घूमते वक्त पृथ्वी और बाकी ग्रहों के बीच इस प्रकार संतुलन बनाए रखता है कि वे एक-दूसरे से ना टकराएं।’

धरती और सूर्य के बीच दूरी : आपने हनुमान चालीसा के बारे में तो जानते ही होंगे, जिसके एक श्लोक में कहा गया है कि “जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू” इसका मतलब होता है भानु अर्थात सूर्य, पृथ्वी से जुग सहस्त्र योजन की दूरी पर है जो वैज्ञानिक खोज में सटीक पायी गयी है। अब आप सोच सकते है हनुमान चालीसा की रचना कितनी प्राचीन है।


धरती की सतह : 7वीं शताब्दी में भारतीय विद्वान ब्रह्मगुप्त ने वर्णन किया था, धरती की परिधि लगभग 36000 किलोमीटर है। बाद में वैज्ञानिकों ने गणना करने पर इसे 40075 बताया। इन दोनों आंकड़ों में केवल 1% का अंतर था। समय के अंतराल के कारण इस गणना में फेर होना जायज़ है।

ऑर्गन ट्रांसप्लैंट: आज जिस मेडिकल साइंस में ऑर्गन ट्रांसप्लांट पर खूब वाहवाही सुनने को मिलती है और इसे एक बड़ी कामयाबी माना जाता है इसके बारे में आपको बता दें कि ये तकनीक बहुत पुरानी है। पुराणों में इस बात का ज़िक्र है कि भगवान गणेश के शरीर पर हाथी का सिर लगाया गया था।

भगवान विष्णु के सर्वप्रमुख अस्त्र ने कई बार इसका प्रयोग कई रूपों में किया है।

कार्य क्षमता- यह केवल भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करता है और लक्ष्य को पूरी तरह तबाह कर देता है।

कलयुग समानता- मिसाइल

लाइव टेलीकास्ट : आज हम अपने घर बैठ कर टीवी पर लाखों किलोमीटर दूर की घटना या मैच का लाइव प्रसारण देखकर अपने विज्ञान का शुक्रिया अदा करते है पर आपको बता दें महाभारत काल में ये तकनीक इस्लेमाल करने का वर्णन है जिसमे संजय, धृतराष्ट्र को महाभारत का युध्द दिखाते हैं।

हमारे यहाँ अस्त्र -शस्त्रों की समुचित परिभाषा हैं। वो ज्ञान है जिसे देखने की जहमत हम नहीं करते और बड़ा कारण यह है कि कोई भी सटीक अनुवाद हमारे यहाँ उपलब्ध नहीं है और संस्कृत पढ़ना हमें पिछड़ापन लगता है लेकिन एक बात तो तय है कि आपको वर्तमान और भविष्य की बात करनी है तो आप हिन्दी. अँग्रेजी या किसी अन्य भाषा का सहारा ले सकते है मगर अतीत जानने के लिए तो आपको संस्कृत जाननी होगी।
अस्‍त्र  - प्राचीन भारत में 'अस्त्र' शब्‍द का प्रयोग दरअसल उन हथियारों के लिए किया जाता था जिन्‍हें मन्त्रों के द्वारा दूर से फेंका जाता था। इन्‍हें अग्नि, वायु, विद्युत और यान्त्रिक उपायों से प्रक्षेप किया जाता था।
शस्‍त्र  - वहीं 'शस्त्र' शब्‍द का प्रयोग ऐसे खतरनाक हथियारों के लिए किया जाता है जिनके प्रहार से चोट पहुंचती हो या मृत्‍यु तक हो सकती हो।


वैदिक काल में अस्त्र-शस्त्र - वैदिक काल में अस्‍त्र-शस्‍त्र को दो वर्गों में बांटा गया था। (1) अमुक्ता, यानी वे शस्त्र जो फेंके नहीं जाते थे। (2) मुक्ता, यानी वे शस्त्र जिन्‍हें फेंक कर हमला किया जाता था। मुक्‍ता के भी चार प्रकार हैं। इनमें, पाणिमुक्ता, यानी हाथ से फेंके जानेवाले और यंत्रमुक्ता, यानी यंत्रों द्वारा फेंके जाने वाले हथियार शामिल हैं। इसके अलावा 'मुक्तामुक्त' यानी वह शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे। जबकि, 'मुक्तसंनिवृत्ती' वे शस्त्र हैं जो फेंककर लौटाए जा सकते थे। हम उन अस्त्रों की बात भी करते है...जिनका उल्लेख हमें मिलता है।

ये हैं महाविनाशकारी अस्‍त्र -
 महाविनाशकारी अस्‍त्रों में अधिकांश दैवीय थे। इन्‍हें मंत्र शक्‍ति के जरिए फेंककर हमला किया जाता था। हर विनाशकारी अस्‍त्रों पर अलग-अलग देवी-देवताओं का अधिकार होता है। इनके मंत्र भी अलग-अलग होते हैं। देवताओं द्वारा प्रदान किये गये इन अस्‍त्रों को दिव्‍य या मांत्रिक अस्‍त्र कहते हैं। आइए जानते हैं कौन-कौन से थे ये
आग्नेय : यह एक प्रकार का विस्फोटक अस्‍त्र था। पानी की फुहारों के समान ही यह अग्‍नि बरसाकर सबकुछ जलाकर भस्‍म कर देने में सक्षम था। इसके प्रतिकार के लिए पर्जन्‍य अस्‍त्र का प्रयोग किया जाता था। आज भी पिस्तोल और बंदूकों को खबरों में भी आग्नेयास्त्र भी लिखा जाता है।
पर्जन्य :यह भी एक प्रकार का विस्फोटक अस्‍त्र था। जल के समान अग्नि बरसाकर सब कुछ भस्मीभूत कर देने की शक्‍ति इसमें भी मौजूद थी। इसके प्रतिकार के लिए पर्जन्‍य का ही प्रयोग किया जाता था।
वायव्य :इस अस्‍त्र से भयंकर तूफान आते थे और चारो ओर अन्धकार छा जाता था।
पन्नग :इससे सर्प पैदा होते थे। इसके प्रतिकार के लिए गरुड़ अस्‍त्र छोड़ा जाता था।
गरुड़ : इस बाण के चलते गरुड़ उत्पन्न होते थे, जो सर्पों को खा जाते थे।
ब्रह्मास्त्र : यह एक अचूक और अतिविकराल अस्त्र है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह शत्रु का नाश करके ही समाप्‍त होता है। इसका प्रतिकार दूसरे ब्रह्मास्त्र से ही हो सकता है।
पाशुपत : यह एक महाविनाशकारी अस्‍त्र है। इससे समस्‍त विश्व का नाश किया जा सकता है। बता दें कि महाभारतकाल में यह अस्‍त्र केवल कुंती पुत्र अर्जुन के पास ही था।
महाभारत का ही अवशेष है ये अवशेष शिमला से 100 किलो मीटर दूर करसोंग घडी में ममलेश्वर मंदिर में स्थित है ! यहाँ पर दो मीटर लंबा और तीन फिर उचा ढोल है इसे भीम का ढोल बताया गया है ये ढोल पांच हजार साल पुराण है इस मंदिर में करीब पांच हजार साल से ये ढोल रखा हुआ है इस ढोल के बारे में ऐसा खा जाता है की इस ढोल को भीम ने अज्ञात बास के समय बजाय था लोगो का ऐसा मानना है की यहाँ 5 हजार साल पहले अज्ञातवास के समय पांडवो ने कुछ समय इस जगह पर बिताया था उसी समय इस मंदिर में एक बड़ा ढोल भी रखा गया था !

नारायणास्त्र :यह भी पाशुपत के समान ही अत्‍यंत विकराल और महाविनाशकारी अस्त्र है। इस नारायण अस्त्र से बचाव के लिए कोई भी अस्‍त्र नहीं है। इस अस्‍त्र को एक बार छोड़ने के बाद समूचे विश्‍व में कोई भी शक्‍ति इसका मुकाबला नहीं कर सकती। मान्‍यता है कि इसका केवल एक ही प्रतिकार है और वह यह कि शत्रु अस्त्र छोड़कर नम्रतापूर्वक अपने को अर्पित कर दे। क्‍योंकि, शत्रु कहीं भी हो यह बाण वहां जाकर ही भेद करता है। इस बाण के सामने झुक जाने पर यह अपना प्रभाव नहीं करता। इन दैवीय अस्‍त्रों के अलावा 'ब्रह्मशिरा' और 'एकाग्नि' आदि विनाशकारी अस्‍त्र भी हैं।
बिहार के इस स्थान पर राजा पोन्ड्रक का राज था। पोन्ड्रक जरासंध का मित्र था और उसे लगता था कि वह कृष्ण है। उसने न केवल कृष्ण का वेश धारण किया था, बल्कि उसे वासुदेव और पुरुषोत्तम कहलवाना पसन्द था। द्रौपदी के स्वयंवर में वह भी मौजूद था। कृष्ण से उसकी दुश्मनी जगजाहिर थी। द्वारका पर एक हमले के दौरान वह भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया।

इनके अलावा शक्‍ति, तोमर, पाश, ऋष्‍टि, वज्र, त्रिशूल, चक्र, शूल, असि, खड्ग, चंद्रहास, फरसा, मूशल
धनुष, बाण, परिघ, भिन्‍दिपाल, परशु, कुंटा, पट्टी और भुशुण्‍डी भी प्राचीन दुनिया के बेहद शक्‍तिशाली हथियार थे। ये जानकारी इंटरनेट पर भी उपलब्ध है..हम आज भी बहुत कुछ नहीं देखते मगर विश्वास करते हैं और नहीं विश्वास करते तो उसे खोजते हैं तो मजाक उड़ाने या किसी बात को सिरे से खारिज करना हो सकता है कि आसान हो मगर उसकी सच्चाई अगर आपने नहीं तलाशी तो आप किसी का मजाक नहीं उड़ा सकते। हम नहीं रहेंगे, तब भी यह धरती रहेगी और तब लोग भी हमारे होने पर सन्देह करेंगे क्योंकि उन लोगों ने भी हमको देखा नहीं होगा।
बैराठ - राजा विराट के मत्स्य प्रदेश की राजधानी के रुप में विख्यात बैराठ राजस्थान के जयपुर जिले का एक शहर है जिसे वर्तमान में विराट नगर के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि इस प्राचीन नगर में पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय बिताया था.
आज सिन्धु घाटी की सभ्यता एक सच है....कुरुक्षेत्र और द्वारिका का पाया जाना भी एक सच है। आप चीन की दीवार पर भरोसा कर सकते हैं तो अपनी परम्परा पर बात करने में क्या परेशानी है...हम इतिहास की बुराइयों, रूढ़ियों को खारिज करें.....जो आज के समय में हम स्वीकार नहीं कर सकते मगर जिस तरह स्त्री और पिछड़े वर्ग के प्रति संवेदनहीनता एक बड़ा सच है, उसी प्रकार तकनीक और विज्ञान का होना भी सच है। आप असहमत हो सकते है मगर आप प्रमाण दीजिए कि ये गलत है...बगैर प्रमाण के किसी का मजाक उड़ाना आपको संवेदनहीन बनाता है और यह आत्ममुग्धता का प्रतीक है।
महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ और खांडवप्रस्थ का जिक्र किया गया था. करीब पांच हजार साल पहले के इस शहर को आज भारत की राजधानी दिल्ली के तौर पर जाना जाता है.
मैंने नहीं देखा, हमारे समय में नहीं है...या प्रमाण नहीं है...कहकर खारिज करने से पहले एक बार उस पर नजर तो डाली होती...इतनी पराधीन चेतना क्यों है आपकी और आप इतने हीन क्यों हैं कि आपको विश्वास ही नहीं होता कि आपके देश में कुछ अच्छा भी हुआ होगा...दुःखद ही नहीं....दयनीय स्थिति है आपकी। वैसे भी बिप्लव देव ने कोई हेट स्पीच नहीं दी है बल्कि वह बात कही है जिस पर हम न भी सहमत हों तो एक बार विचार करें। भविष्य को मजबूत बनाने के लिए वर्तमान के प्रयत्न काफी नहीं होते बल्कि अतीत के अनुभवों की भी जरूरत पड़ती है।

रामायण और महाभारत के कुछ शहरों के बारे में बताने की कोशिश की है। इसके अतिरिक्त इन नगरों के बारे में भी जानकारी एकत्र कर प्रस्तुत की जायेगी। इतिहास पर भरोसा करना सीखिए...अतीत था तो वर्तमान है...अतीत की गलत बातों को न दोहराएं, उससे सीखिए...भविष्य तो अपने आप सुन्दर बनेगा...।




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