समय और सदियों का निर्णायक रहा है ‘भाई’ का रिश्ता



परिवार से समाज बनता है मगर परिवार और उसके संबंध और उनके बीच होने वाले संघर्ष युगों का भविष्य भी निर्धारित कर देते हैं। भाई और भाई या भाई और बहन के संबंधों ने कई बार इतिहास बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस संबंधों की कड़ी के बीच भाई एक निर्णायक संबंध रहा है और भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में भी उनकी सकारात्मक और नकारात्मक संबंधों की छाया पड़ी है। भाई - बहन के संबंधों को मजबूत करने के लिए भारतीय संस्कृति में रक्षा बंधन और भइया-दूज जैसे पर्व तो हैं मगर भाई और भाई के संबंध को मजबूत करने के लिए कोई पर्व या त्योहार रखा गया है, इसका जिक्र नहीं मिलता या ऐसा कोई व्रत नहीं दिखता जो भाई अपने भाई के लिए करे। इस आलेख में प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत में भाई - बहन और भाई -भाई के संबंधों पर एक नजर डालने का प्रयास किया गया है क्योंकि आज भी पारिवारिक विवादों में जितनी हिंसा और जितने अपराध व्याप्त हैं, वह इस संबंध के इर्द - गिर्द घूमते हैं - फिर चाहे वह जमीन और सम्पत्ति का बँटवारा हो या फिर माता - पिता को रखने का मामला। आमतौर पर भारतीय फिल्में भी इस संबंध के चारों और घूमती हैं..जहाँ आपको कुम्भ के मेले की तरह भाइयों का मिलना - बिछड़ना दिखता है या फिर नायक व खलनायक की स्पष्ट करती तस्वीर दिखती है। जाहिर है कि इन सभी पर हमारे पौराणिक साहित्य की गहन छाया है तो अपेक्षित है कि इसी समय से लेकर आज तक की तस्वीर को समसामायिकता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। 

शुरूआत रामायण काल यानी त्रेता युग से करें तो सत्य के पक्ष में श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, शांता का संबंध आता है मगर शांता का उल्लेख रामचरित मानस में नहीं है। इन चारों भाइयों का प्रेम आज भी आदर्श माना जाता है तो सुग्रीव - बाली के संबंध भी रामायण में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भरत ने पादुका रखकर श्रीराम की प्रतीक्षा 14 साल तक की तो लक्ष्मण श्रीराम के साथ परछाई बनकर रहे। भरत के साथ शत्रुघ्न रहे तो दूसरी ओर महाकाव्य में खलनायक के रूप में चित्रित रावण की बहन शूर्पनखा के आचरण से पूरी कथा का क्लाइमेक्स बनता है। बड़े भाई के लिए लड़ने वाला कुम्भकर्ण है जिसे रावण का स्नेह मिलता है तो दूसरी और विभीषण है जिसे श्रीराम का पक्ष लेने के कारण रावण का कोपभाजन बनना पड़ता है और अंत में रावण के वध में विभीषण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है मगर कहावत आज तक चली आ रही है - ‘घर का भेदी लंका ढाहे’। आज तक विश्‍वासघात करने वालों को विभीषण ही कहा जा रहा है। 

महाभारत काल में महर्षि व्यास की संतानों के रूप में धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म होता है जबकि विदुर दासी पुत्र थे। कहने की जरूरत नहीं कि दुर्योधन को गढ़ने में महाभारत के युद्ध में धृतराष्ट्र की अधूरी महत्वाकाँक्षा और पुत्र मोह की बड़ी भूमिका है। दुर्योधन की कुप्रवृत्तियों को रोकने का प्रयास कभी भी धृतराष्ट्र ने नहीं किया...एक शासक के रूप में भी वह विफल ही हैं। पांडु कथानक में बेहद कम समय के लिए हैं मगर उनके पुत्रों यानि पांडवों में आपको भातृ प्रेम की झलक मिलती है जिसे मजबूत करने में द्रोपदी की महत्वपूर्ण भूमिका है। दूसरी ओर दुर्योधन, दुशासन के साथ बहन दुःशला भी है और कौरवों में ही विकर्ण भी शामिल हैं जिन्होंने द्यूत में द्रोपदी को दाँव पर लगाने का विरोध किया तो दूसरी तरफ युयुत्सु हैं मगर उन पर ज्यादा कुछ नहीं मिलता। महाभारत में बतौर आज के किंग मेकर की तरह दो भाई श्रीकृष्ण और बलराम हैं जिनमें कई मुद्दों पर असहमति है मगर उनका प्रेम किसी भी सूरत में कम नहीं होता। इस प्रकरण में श्रीकृष्ण एक उदार चरित्र वाले लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्‍वास करने वाले भाई के रूप में सुभद्रा के प्रेम को पूर्णता पहुँचाने वाले भाई के रूप में दिखते हैं। आज जहाँ प्रेम के नाम पर ऑनर किलिंग हो रही है, वहाँ कृष्ण और सुभद्रा का स्नेह अपने आप में एक आदर्श है। आज भी पुरी में श्रीकृष्ण, बलराम, सुभद्रा की पूजा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रूप में की जा रही है।
 
मध्यकालीन भारत में भातृ प्रेम का लोकतांत्रिक आदर्श न के बराबर दिखता है बल्कि सम्राट अशोक से लेकर औरंगजेब तक पर भाइयों को मारकर सत्ता प्राप्त करने के प्रकरण सामने आते रहे हैं। एकमात्र महिला शासक रजिया सुल्तान को मरवाने के पीछे उसके भाई ही थे। स्वंतत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित एक मजबूत उदाहरण हैं।  विजयलक्ष्मी पण्डित ने भी देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। विजयलक्ष्मी एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं्। संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष भी वही थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मॉस्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। सामाजिक परम्पराओं और सोच का असर राजनीति पर भी पड़ता है और आज की राजनीति में भी ऐसा दिख रहा है।

 राजनीतिक परिवारों में बहनें सामने हैं मगर उनको राजनीति का चेहरा बनाने में अभी राजनेता हिचकते हैं और यह बात काँग्रेस समेत अन्य दलों पर भी लागू होती हैं। प्रियंका लाओ के तमाम नारों के बीच आज भी राहुल गाँधी ही कांग्रेस अध्यक्ष हैं। लालू प्रसाद यादव को भी मीसा भारती से अधिक भरोसा तेजप्रताप और खासकर तेजस्वी पर है। कहने की जरूरत नहीं है कि तेजप्रताप - तेज×स्वी, मुलायम सिंह यादव - शिवपाल यादव भारतीय राजनीति को दिशा देने की क्षमता रखते हैं मगर आज भारतीय राजनीति में न तो नैतिकता बची है, न ही धर्म और न ही आदर्श इसलिए वर्तमान समय भटकाव ही है। देखना यह है कि इस समय का सँक्रमण काल कौन सा आता है। वैसे भाइयों की जोड़ी राजनीति में कुछ नेता आमने सामने भी हैं, मसलन - भाजपा नेता और अब त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत राय तथा तृणमूल सांसद सौगत राय। भाई - बहन की एक महत्वपूर्ण जोड़ी काँग्रेस के दिवंगत नेता व माधव राव सिंधिया, राजस्थान की मुख्यमंत्री व भाजपा नेत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया और ग्वालियर की सांसद यशोधरा राजे सिंधिया की है मगर ये तीनों प्रेम के कारण नहीं बल्कि विवाद के कारण ही अधिक चर्चा में रहते हैं। 

खिलाड़ियों में युसूफ पठान व इरफान पठान के साथ हार्दिक व कुणाल पांड्या की जोड़ी मशहूर है। फिल्म उद्योग में राजकपूर, शशि कपूर और शम्मी कपूर की जोड़ी के साथ रणधीर, ऋषि और राजीव कपूर की भाइयों की ताकत की मिसाल है तो संजय दत्त - प्रिया दत्त के नाम भी अक्सर सुनायी देते हैं। भाइयों की छवि और उनकी मानसिकता पर परिवेश का गहरा असर है। यही कारण है कि आज कुछ भाई अपने भाई - बहनों के लिए जान लुटाते दिखते हैं तो दूसरी तरफ भाई पजेसिव और अपने रिश्तों खासकर बहनों पर नियंत्रण पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। बहरहाल, समय है और रिश्ते हैं तो दोनों के अच्छे या बुरे पक्षों का संतुलित आकलन होना समय की माँग है। परम्परा में जो सकारात्मक और लोकतांत्रिक भावना का परिचय देता है, उसे ग्रहण करने की जरूरत है मगर हिंसा और अपराध या बुराइयों को किसी भी रिश्ते में जगह नहीं मिलनी चाहिए चाहे वह भाई - भाई का रिश्ता हो या भाई -बहन का रिश्ता हो...उदार सकारात्मकता और खुली सोच ही इस रिश्ते को सुखद बना सकता है..परिवार के लिए भी, देश और समाज के साथ आने वाले कल के लिए भी। भातृ दिवस की शुभकामनायें।

(सलाम दुनिया में भातृ दिवस पर प्रकाशित आलेख)

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