पुलवामा : आपसी द्वेष और टीआरपी का मोह छोड़कर एक साथ खड़े होने का वक्त है ये


पुलवामा में इस कदर आतंकी हमला हुआ कि शहीद हुए 40 से अधिक जवानों के शव क्षत-विक्षत हो गए। उरी के बाद पुलवामा, हमारे सैनिकों ने शहादत दी..हम शहीद कहते जरूर हैं मगर सच तो यह है कि यह एक नृशंस हत्या है..एक कायराना हरकत। होना तो यह चाहिए कि हम एक साथ इस हमले के खिलाफ खड़े होते मगर ऐसी दुःखद और मार्मिक घड़ी में भी हम दो धड़ों में बँटे हैं। यह सही है कि सुरक्षा में चूक हुई है मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसके पीछे वह लोग भी हैं जो इस देश में रहते जरूर हैं मगर उनकी आत्म पाकिस्तान में गिरवी रखी है। आश्चर्यजनक तरीके से अब भी नवजोत सिंह सिद्धू बातचीत को लेकर दलीलें दे रहे हैं और महबूबा मुफ्ती व फारुक अब्दुल्ला जैसे नेता अब भी सर्जिकल स्ट्राइक और सेना की कार्रवाई की निन्दा करने में लगे हैं..। आखिर देश का बुद्धिजीवी वर्ग कब तक आतंकियों के मानवाधिकार का ढोल पीटता रहेगा..क्या किसी सैनिक का मानवाधिकार नहीं है या वह मानव ही नहीं है। आखिर हम क्यों इतने संवेदनहीन हो गए हैं...? इस बात की पूरी आशंका है कि इसमें स्थानीय लोगों के साथ नेताओं का भी हाथ है, सब जानते हैं कि महबूबा मुफ्ती से लेकर फारुक अब्दुल्ला की सरकार सेना और सैनिकों के साथ किस तरह का व्यवहार करते हैं...आखिर जब कश्मीर जब भारत का हिस्सा है तो वहाँ के लिए अलग कानून क्यों है अब तक। हम क्यों इतनी सुविधाएं दे रहे हैं, ऐसे नेताओं को...इनकी सुरक्षा के पीछे क्यों अपने जवानों की जान दाँव पर लगा रहे हैं। यह वक्त है कि देश से अलग - थलग पड़े कश्मीर को देश की मुख्य धारा में लाया जाए..ऐसे नेताओं पर नकेल कसी जाए जो आतंकियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं..और पाकिस्तानपरस्तों से सरकार सारी सुविधाएं और सुरक्षा छीन ले। यह तब होगा जब हम सब मिलकर इनका हर जगह से बहिष्कार करें...अगर कश्मीर में किसी और राज्य के लोग नहीं रह सकते, जमीनें नहीं खरीद सकते तो कश्मीरियों को भी इस देश के किसी हिस्से में जमीनें नहीं मिलनी चाहिए। हम जिनकी सुरक्षा के लिए अपने जाँबाज सैनिकों को तैनात कर रहे हैं, क्या वे इस लायक हैं कि इन जवानों की सुरक्षा में रहें। सरकार विपक्ष का मुँह देखकर नहीं चल सकती। केजरीवाल और राहुल गाँधी जैसे लोग सेना से सबूत माँगते रहेंगे तो क्या हम इनकी तुष्टि के लिए बैठे रहेंगे। पूरा देश कश्मीर को लेकर बहुत सोच सका है, किसी भी राज्य को अलग ध्वज की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए..कश्मीर जब भारत से अलग नहीं है तो उसके लिए अलग कानून क्यों स्वीकार किए जा रहे हैं?
पाक मीडिया का आलम तो ये है कि पाकिस्‍तान के अखबार 'द नेशन' ने इस हमले को 'फ्रीडम फाइटर' द्वारा किया गया हमला बताया है। वहीं 'द डाउन' ने इसको लेकर एक छोटी सी खबर को प्रकाशित किया है। इसको लेकर जहां भारत के लोगों में जबरदस्‍त गुस्‍सा दिखाई दे रहा है वहीं पाकिस्‍तान ने इसको लेकर भारत के आरोपों को खारिज कर दिया है। आलम ये है कि पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जो भारत के साथ दोस्‍ती बनाए रखने का राग अलापते दिखाई देते हैं, ने हमले को लेकर कोई अफसोस तक जाहिर नहीं किया है। इतना ही नहीं इस हमले में संवेदना तक जताने के लिए पाकिस्‍तान सरकार का कोई मंत्री तक सामने नहीं आया। वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता की तरफ से एक ट्वीट कर इसकी खानापूर्ति का काम जरूर कर दिया गया। अपने एक ट्वीट में विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता डॉक्‍टर मोहम्‍मद फैजल ने घटना की निंदा की है और भारत के उन आरोपों को खारिज किया है जिसमें भारत ने इसके लिए पाकिस्‍तान को जिम्‍मेदार ठहराया था। प्रवक्‍ता का कहना है कि इसमें पाकिस्‍तान का कोई हाथ नहीं है। क्या ऐसे लोगों से भारत दोस्ती करने जा रहा है?
टीवी चैनलों पर इसको लेकर आक्रामक तरीके से कवरेज जारी है। इसे मोदी सरकार ने संज्ञान में लेते हुए निजी टीवी चैनलों को आगाह किया है। सरकार की तरफ से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर के पुलवामा में गुरुवार को हुए आतंकवादी हमले की पृष्ठभूमि में सभी टीवी चैनलों से ऐसी सामग्री पेश करने से बचने को कहा है, जिससे हिंसा भड़क सकती हो अथवा देश विरोधी रुख को बढ़ावा मिलता हो। मंत्रालय की ओर से जारी परामर्श में कहा गया, ‘‘हालिया आतंकवादी हमले को देखते हुए टीवी चैनलों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसी किसी भी ऐसी सामग्री के प्रति सावधान रहें जो हिंसा को भड़का अथवा बढ़ावा दे सकती हैं अथवा जो कानून व्यवस्था को बनाने रखने के खिलाफ जाती हो या देश विरोधी रुख को बढ़ावा देती हो या फिर  देश की अखंडता को प्रभावित करती हो।''मंत्रालय ने कहा कि सभी निजी चैनलों को इसका सख्ती से पालन करने का अनुरोध किया जाता है। मीडिया की बड़ी भूमिका है और जिम्मेदारी है। मैं हमेशा से कहती आ रही हूँ कि सुरक्षा सम्बन्धी मामलों में कवरेज के दौरान संवेदनशीलता और गोपनीयता की जरूरत है। आपका दुश्मन भी टीवी देखता है। हमें कोई जरूरत नहीं कि टीआरपी बढ़ाने के नाम पर अपनी सैन्य क्षमता, हथियारों और ठिकानों का प्रदर्शन करें...ऐसे साक्षात्कार तो प्रसारित ही नहीं होने चाहिए। विस्फोट की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा न करें...यह रक्षा मंत्रालय और सेना की अपील है। अब सरकार को इस बारे में गम्भीरता से कदम उठाने की जरूरत है। आज पाकिस्तान और आतंकी संगठन मीडिया का प्रिय विषय हैं, क्या ये अच्छा नहीं है कि पड़ोसी देश के गदहे दिखाने की जगह हम उन किसानों और उन लोगों को दिखाएं जो जमीन पर अच्छा काम कर रहे हैं। मीडिया को संवेदनशील होने की जरूरत है क्योंकि कोई टीआरपी देश की सुरक्षा से बड़ी नहीं हो सकती है।
यह वक्त दुःख का नहीं है, क्रोध का मगर इस क्रोध को बरकरार रखते हुए भी हमें एक होकर तमाम धार्मिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक मतभेदों से ऊपर उठकर साथ खड़ा होना होगा। इस देश पर, देश की सेना पर भरोसा रखिए और उन सबका बहिष्कार करिए जो इस मौके का इस्तेमाल राजनीति के लिए कर रहे हैं....हम जरूर जीतेंगे...कश्मीर हमारा था, है और रहेगा...जरूरत इस बात की है कि अब इसे भारत का हिस्सा मौखिक तौर पर नहीं, बल्कि समान कानून लागू करके बनाया जाए। हम जरूर जीतेंगे...तय है।

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