अथ श्री श्वान प्रताड़ित कथा...

 

चित्र - गूगल से साभार

डिस्क्लेमर - श्वान प्रेमी..इस पोस्ट से दूर रहें....वरना उनके कोमल हृदय पर लगे आघात के जिम्मेदार हम नहीं होंगे...कुत्ता सामने आकर भौकता है और काटता है तो क्या होता है, भुक्तभोगी रह चुके हैं और यह लेख उसी पीड़ा से जन्मा है...सुमित्रानन्दन पन्त ने कहा था...वियोगी होगा पहला कवि...हम कहते हैं..कुत्ता प्रताड़ित होंगे हम जैसे...तभी जन्मा ऐसा प्रतिवाद....और हाँ, हम कुत्ते को कुत्ता ही कहेंगे और कुतिया को कुतिया ही कहेंगे विदाउट किन्तु और परन्तु....जब भैंस को भैंस कहते हैं, गाय को गाय या गइया कहते हैं, बिल्ली को बिल्ली कह सकते हैं तो आपके कुत्ते में ऐसे कौन से सुरखाब की पूँछ लगी है....कुत्तों को नियंत्रण में रखने के लिए कानून होना ही चाहिए...इन्सान चाहे लाख बुरे हों पर उनको कुत्ते से कमतर तो मत मानिए ऐसा है कि आज जो कुछ भी हम लिखने जा रहे हैं...उससे बहुत से श्वान प्रेमियों....माने कुत्ता और जनावर प्रेमियों को बड़ी तकलीफ हो सकती है तो उनसे कृपया निवेदन है कि इस भुक्तभोगी से कृपया दूर रहें... अब कुत्ता -बिल्ली प्रेमी कहेंगे तो तकलीफ होगी और फिर वह लेकर बैठ जाएंगे तराजू...और बटखरा लेकर मापेंगे कि उनके 24 कैरेट बाबू और सोना.. कुत्ते की तुलना में हम इन्सानों की शुद्धता तो रक्ती कैरेट भर की भी नहीं है..अब ऐसा है कि कुत्ता अब जनावर तो रहा नहीं, लोग इन्सानों की दुनिया से दूर भागते है और पालतू जानवरों में शरण पाते हैं...।

कई बार तो लगता है कि तेरी मेहरबानियाँ वाले कुत्ते की आत्मा हर कुत्ते में निवास करती है..एक समय था जब मेहमानों का स्वागत..पुष्पहार से होता था, अब तो कुत्ते की भौं - भौं से होता है। अब जनाब कुत्तों का भी एटिट्यूट होता है...जिसका मालिक जितना रईस होगा...उसका बाबू और सोना डॉगी उतना ही शो ऑफ करेगा...मेहमान तो इनके यहाँ जान हथेली पर रखकर जाते हैं और कुत्ता प्रेमियों का ज्यादा टाइम कुत्तों को भीतर ले जाने में बीतता है तो हाल - चाल तो भला क्या लेंगे..। जितने टाइम तक बंदा इनके पास रहता है, उसकी हृदय गति राजधानी एक्सप्रेस की तरह चलती है और तनाव में सिर उबलते हुए दूध की तरह ऊपर -नीचे होता रहता है। जब भी प्लेट में रखी भुजिया पर नजर आती है, एक लम्बी लपलपाती जीभ सामने आ जाती है...मगर कुत्ता प्रेमियों को मजाल है कि कोई फर्क पड़े...अरे...खाइए न..,यह काटता/ काटती नहीं है...उनको क्या पता कि सामने वाले के प्राण निगम के नल की तरह सूखे जा रहे हैं। आप जितनी देर तक रहेंगे...वह कुत्ता या जो भी पालतू जानवर हो...ऐसे घेरेगा और ऐसे घूरेगा कि आपको एक क्षण के लिए लगेगा कि आपने आयकर तो नहीं चुराया ...या फिर कोई अपराध तो नहीं कर बैठे। मगर...न भूल से भी कुत्ते को कुछ न कहिएगा वरना कुत्ते की तरह आपको बाहर का रास्ता दिखा दीजिएगा। कुत्ता प्रेमी मालिकों की अवस्था ऐसी होती है कि बिन कुत्ता, सब सून..। कुत्ता प्रेम का यह हाल है कि पालतू जानवर मालिक दुनिया के सारे रिश्तों को ठोकर मार सकते हैं और कुत्ते के लिए आपसे पानीपत का चौथा युद्ध लड़ सकते हैं। सामान्य घरों में स्वागतम लिखा होता है और इनके घर पर लिखा होता है....कुत्तों से सावधान।

रही बात हमारी तो हमको कुत्ते अक्सर दौड़ाते रहे हैं....सुई भी लगी है..और हम जानवर को जानवर की तरह ही देखते हैं...उसको इन्सान नहीं मान सकते। कुत्ते....बेडरूम में से लेकर ड्राइंग रूम तक, हर जगह राज करते हैं। इन्सान सिमटकर बैठता है, कुत्ते लपलपाती जीभ दिखाते हुए फैलकर बैठते हैं, विचरण करते हैं। कुत्ता प्रेमी मालिक...इन्सानों के बच्चों को भले ही दुरदुरा दें लेकिन अपने बाबू -सोना डॉगी की हर एक फरमाइश बिन कहे सुन लेते हैं। वैसे भी बाजार में कुत्तों के लिए हर तरह की चीजें उपलब्ध हैं और शैम्पू से लेकर कंघी..नहलाने से लेकर घुमाने तक, एक - एक काम इतने प्यार से करते हैं कि अपने दफ्तर का काम भी नहीं करते हैं। कुत्तों के इतने नखरे उठाते हैं जितना वे बच्चों के भी नहीं उठा सकते होंगे। हम तो जब भी किसी से मिलना चाहते या काम से ही मिलना होता तो पहला सवाल..यही होता....जी...आपके घर कोई जानवर या कुत्ता तो नहीं है। अगर जवाब में न होता तो जान में जान आती और अगर अगले ने कह दिया कि हाँ..है तो अपनी आधी जान पहले से ही सूख जाती....काम करना तो था जाना तो था कि...मगर हम जब तक उस जगह रहते...जान और प्राण...आँखें और जुबान...अटकी रहतीं...किसी तरह काम करके निकलते और लम्बी सांस लेते कि....बच गये मगर कुत्तों में कोई न कोई क्रॉस कनेक्शन होता होगा...मतलब ये सोचिए....जाने - अनजाने ऐसा हुआ है कि हमको बार - बार वहीं जाना पड़ता और उसी मानसिक प्रताड़ना से गुजरना होता...जिससे हम भागते हैं। 

आप कुत्ते को कुत्ता बोल भी दें, कुतिया को कुतिया  नहीं बोल सकतें..वरना डाउनमार्केट ही नहीं कह जाएंगे बल्कि आप पर मानहानि का दावा भी ठोक दिया जायेगा।  कुतिया ..प्रसंग से किस्सा याद आया...हमारे प्रतिष्ठित अखबार में समाचार लिखते समय कुतिया...शब्द किसी ने लिख दिया और उस बिचारे पर गाज गिर पड़ी कि आपने कुतिया लिख कैसे दिया...अब हमारी समझ में तो यह नहीं आये कि अगर कुतिया को कुतिया न लिखें तो लिखें क्या...मिसेज कुत्ता...या मिस डॉगी...भाई...बहुते कन्फ्यूजिंग मामला है। खैर..कुत्तो के ठाठ तो इन्सानों की किस्मत पर भारी पड़ते हैं।

अपना पाला...गली के कुत्तों के साथ रईस कुत्तों से भी पड़ता है। मतबल हमारा जो घर है, वहाँ कुत्तों की रईसी देखकर कोई भी पशु प्रेमी निहाल हो जाएगा...मगर हमारी प्रजाति के लोग..तो बस...कुत्ता...भय से ग्रस्त रहते हैं। कुत्ते का ऐटिट्यूड ऐसा है कि एक तो आपको देखकर भौंकना शुरू करेगा और आप अगर लड़ गये..तो अपने मालिक से हाथ छुड़ाकर आपसे आकर लड़ेगा...अब भौं - भौं की भाषा तो हमारी समझ के बाहर है...कुत्ता निवास के बाहर साफ शब्दों में लिखा है कि कुत्तों से सावधान रहना है पर यह नहीं पता था कि इन्सानों के छत पर जाने का टाइम -टेबल भी कुत्ते की सुविधा के अनुसार तय होता है। बच्चे बिचारे 24 घंटे में 48 बार तो कुत्ते के कारण सबको सॉरी कहने में व्यस्त रहते हैं और जो समय अपनी प्रगति और देखभाल में लगना चाहिए, वह कुत्तों की दिनचर्या सम्भालने में लगता है।

अब प्वाइंट यह है कि आप पशु प्रेमी हो ही सकते हैं मगर जब पशु आपका है तो उसके नखरे...आपको ही उठाने होंगे...कोई दूसरा उसकी वजह से क्यों पीड़ित होगा...कहीं न कहीं तो आपको तय करना होगा कि आपको इन्सान पसन्द है, आस - पास के लोग पसन्द हैं....या कुत्तों का आभामण्डल...आप लाख पशु प्रेमी हों मगर जानवर कभी इन्सानों की जगह नहीं ले सकते। कन्हैया को गइया मइया से बहुते प्रेम था और महाराणा प्रताप भी चेतक के बगैर नहीं रह सकते थे। हमारी संस्कृति में देवी - देवताओं के वाहन भी पशु - पक्षी ही हैं मगर कभी भी आप उनको राज करते नहीं देखेंगे। यह चलन ही समझ के बाहर है कि कुत्ता आपके घर में ड्राइंग रूम से लेकर घरों तक में विचरण करता रहे। भले ही यह आपकी व्यक्तिगत पसन्द हो लेकिन व्यक्तिगत  पसन्द दूसरों की जिन्दगी दूभर करने लगे तो कुछ भी व्यक्तिगत नहीं रहता। अगर आप अपने पालतू पशुओं पर नियन्त्रण खो देते हैं और वह कल वह किसी को काट दे तो क्या आप उसकी जिम्मेदारी लेंगे। कुत्तों पर जोर इसलिए दिया है कि कुत्तों को राजदुलारा बताकर उनको सिर पर चढ़ाना एक फैशन हो गया है। हर पालतू पशु की एक जगह होती है और उसे वहीं रहने देना चाहिए...कम से कम हर उस जगह, जहाँ आपके पशु प्रेम का खामियाजा सामान्य लोग उठा रहे हैं। अंग्रेजी में कहें तो वी आर नॉट कम्फर्टबेल विद् डियर - नियर डॉगी चाइल्ड...। कई मामले ऐसे भी सामने आए हैं किसी व्यक्ति को टारगेट करके उस पर कुत्ते छोड़ दिये जाते हैं। ऐसा भी क्या पशु प्रेम कि, आप उसके लिए हर चीज छोड़ दें...कोई आपके पालतू पशु - पक्षी की सुविधा के अनुसार अपनी जीवन शैली क्यों तय करे? इन्सानों के खिलाफ तो बहुत कानून हैं, अगर वे जानवरों को परेशान करें मगर श्वान प्रताड़ित संघ के सदस्यों के हित में कोई कानून हो तो बताइए...अभी तो हर जगह श्वान पुराण ही चल रहा है, काहे कि कुत्ता पुराण थोड़ा डाउन मार्केट लगता होगा...इसलिए अथ श्री श्वान पुराण कथा...हमने आपको  कह दी,,,अब समाधान आप बता सकते हैं तो बताइए।

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