ऐसा लगता है कि पुरस्कार वापसी की रेल निकल पड़ी है जिसमें एक के बाद एक डिब्बे जुड़ते चले जा रहे हैं। हर कोई खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने में जुटा है, वैसे ही जैसे बच्चे कक्षा में प्रथम आने की तैयारी कर रहा हो। हर कोई रूठा है, हर किसी को शिकायत है मगर जख्म पर मरहम लगाने की अदा ही शायद लोग भूल गये हैं। दादरी से लेकर दिल्ली तक, हर जगह माँ भारती कराह रही है। पुरस्कारों से तौबा करने की जगह शायद नफरत से तौबा होती तो कोई राह भी निकलती। काश, लोग समझ पाते कि राम और रहीम, दोनों इस जमीन के ही बेटे हैं। खून किसी का भी बहे, चोट तो माँ को ही लगनी है।
बंगाल की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने वाला हथौड़ा शिक्षक नियुक्ति घोटाला
बंगाल की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों बेपटरी हो गयी है। पढ़ाने वाले सड़कों पर हैं और पढ़ने वाले संशय में दो पाटन के बीच पिस रहे हैं । बतौर पत्रकार शिक्षा बीट की ही खबरें की हैं और खूब की हैं। उन दिनों संवाददाता सम्मेलन होते थे तो वहां भी जाती थी और बहुत कुछ ऐसा था जिसका कारण तब समझ नहीं सकी मगर अब बात समझ रही है। 2011 के पहले भी आन्दोलन होते रहे हैं। शिक्षक सड़कों पर उतरे हैं। ऐसा नहीं है कि वाममोर्चा सरकार दूध की धुली थी मगर भ्रष्टाचार का जो घिनौना रूप अब देखने को मिल रहा है तब शायद सामने नहीं आ सका था। जो भी हो..भ्रष्टाचार की चक्की में पिसना तो निरपराधों को है। एक तरफ देश की संसद है जहां दागी भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं, एक बार में ही माननीयों की तनख्वाह लाखों रुपये हो जा रही है और दूसरी तरफ हमारे देश के भविष्य का निर्माण करने वाले असंख्य युवा हैं जिनके मुंह से वह रोटी भी छीनी जा रही है जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित किया है। 26 हजार नौकरियां मतलब 26 हजार परिवारों का भविष्य दांव पर लग जाना और हजारों स्कूलों की व्यवस्था का बेपटरी हो जाना..यह खेल नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 3 अ...
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