मन्त्री जी का अनशन



-        सुषमा त्रिपाठी
फलकपुर में बड़ी हलचल थी..आज जिले के डीएम के पास जाना था...सरपंच जी आकर सब किसानों को कह गए थे, अबकी रैली में भीड़ करनी थी। प्रजातंत्र का हाथ पार्टी के जिलाध्यक्ष हुक्काम सिंह की जीप भी हरिया के खेतों के बीच से खड़ी फसल को रौंदती हुई रैली का प्रचार करती गुजर गयी थी। हरिया को भी सरपंच साहेब का धमकी भरा अनुरोध मिल गया था और आज तो सांझ को सारे छोटे – बड़े किसानों को बुलाया भी था।
कड़ी धूप में काम करते हुए हरिया हलकान था, खेत से घर दूर था....भागो के लिए कितने दिन से बाजार से साड़ी लेने का मन बनाया था मगर जीप से कुचली फसल को जब भी देखता...आह भरकर बैठ जाता। 4 दिन से कुछ खाया नहीं था, ऊपर से ये बवाल, फसल मंडी तक जाए नहीं तो घर कैसे चले। घर में अन्न का एक दाना न बचा था और साहूकार था कि उधार देने को तैयार न था। पेड़ की छाव के नीचे पसरे हरिया के माथे से पसीना पानी बनकर बह आया था....आदमी 2 दिन भूखा रहे तो चल भी जाए मगर घर में बच्चों के पेट में तो अन्न डालना ही था...भागो की फटी साड़ी देखकर मन भर आता मगर मन बेजार था। सरपंच जी ने कहा था कि प्रजातन्त्र पार्टी से हुक्काम सिंह किसानों को राहत में राशन देंगे और आन्दोलन जम गया तो सरकार भी मुआवजा देगी, बस इस बार किसानों को साथ देना होगा जमके।
समझ में बात तो आ गयी मगर भूखे पेट भजन कैसे होए। भूखे पेट अंतड़ियाँ मरोड़ मार रही थी...रहा न गया तो बोल पड़ा...सरपंच साहेब, उ सब तो ठीक है मगर 4 दिन से अन्न का दाना घर नहीं गया। बच्चे बिलबिला रहे हैं, पेट ही न भरे तो आन्दोलन कैसे करे। मंडी में अनाज ले जाते हैं तो ट्रक रोक देते हैं और आग भी लगा देते हैं...आप लोग बड़े हो. दो – चार बोरी इधर से उधर हो तो भी फरक नहीं पड़ेगा...हमारा गुजारा तो मुस्किल है।
सरपंच साहब के बदन में आग लग गयी....चुनाव का मौसम न होता तो अब तक भगा देते मगर प्रजातन्त्र पार्टी का कमिशन आड़े आ गया। उस पर सरकार की पार्टी के अध्यक्ष भी मिलकर गए थे, गोटी फिक्स हो गयी तो विधायकी का टिकट पक्का था और जीतने के लिए किसानों का साथ जरूरी था...सरपंच रिस्क नहीं ले सकते थे...आँखों के सामने बैनर घूम रहा था...बड़ा सा लहरदार...हल थामे मूँछों पर ताव देते....उफ! क्या जचूँगा....ख्वाहिश ने दिमाग के गर्म पानी पर ठंडक डाल दी...बोले...बिन लड़े ही सुख राज चाहते हो....इ आन्दोलन क्या अपना घर भरने के लिए हो रहा है, प्रदेश का हाल जानते हो, अखबार पढ़ते...बोलते – बोलते याद आया...अनपढ़ हरिया अखबार कैसे पढ़ेगा...रुके। तुम खाली अपने पेट की सोचो...अपने और भाइयों के बारे में सोचा करो...जानते हो, किसानों की जिन्दगी बन जाएगी...जिन्दगी...अरे...दूसरे प्रदेश में सरकार कर्जामाफी की है....हमारे यहाँ काहे नहीं करेगी...सब मिले हैं हरिया और जब तक तुम सब न लड़ोगे कैसे होगा। सरपंच साहब के गोदाम में अनाज की कमी नहीं थी, एक बोरा दे देते तो कुछ बिगड़ता नहीं मगर अनाज जमा करके रखेंगे, तभी तो आसमान के भाव में बेचेंगे...बेटे महेन्द्र ने एक कार देखी है, जिद किए बैठा है...इसी अनाज से तो दाम निकलेंगे।
हरिया की समझ में इतनी मोटी – मोटी बातें नहीं आतीं। उसकी आँखों के सामने भागो की फटी साड़ी और हड्डी सी काया लिए बच्चों का सूखा, उदास चेहरा घूम रहा था। मन तो था कि सरपंच के मुँह पर मुक्का मारकर अभी निकल जाए मगर सरपंच ने रैली में जाने पर 500 रुपए, नारे लगाने पर 700 रुपए, अनाज ट्रक से गिराने पर 1000 रुपए और पथराव करने पर 1500 रुपए देने की बात कही थी, खाना – पीना अलग से मिलता और शहर घूमना भी हो जाता...1500 रुपए में तो घर का खर्चा कुछ दिन तो चल जाएगा। गोली लगी तो सरकार मुआवजा देगी....सुना 10 -20 लाख रुपए देती है और घायल होने पर भी 5 लाख मिल जाते हैं। ऊपर से कर्जमाफी हो गयी तो खेती बच जाए।
हरिया तड़प उठा – इतने पैसे मिले तो बच्चों का जीवन सुधर जाए। सरीर का क्या है, एक दिन माटी में ही तो मिलना है। दूसरा कोई रास्ता नहीं. गिड़गिड़ाते बोला – सरपंच साहेब..तब तो थोड़ा राशन देते तो मदद हो जाती...घर में 4 दिन से अन्न का दाना नहीं है। सरपंच साहब को किसानों को मैनेज करना था...5 किलो चावल, 5 किलो अरहर की दाल दे दी...रैली में आ जाना वरना खाया – पीया निकल जाएगा। हरिया वहाँ से निकला।
गाँव में सब किसान गरीब नहीं थे। सरपंच साहब की ही कई बीघा जमीन और ट्रैक्टर थे मगर उनकी तरह हर किसान की पहुँच नहीं थी, फसल  के भाव बराबर नहीं मिलते थे। चौपाल के टेलिविजन पर दूरदर्शन चलता था और किसानों के हँसते चेहरे और भारी – भारी बातें सुनकर हरिया सोच में पड़ जाता....ये सब उसके गाँव तक क्यों नहीं पहुँचता। उसके बगल में रहने वाले रामबालक पर ऐसा कर्जा चढ़ा कि बिचारे ने फंदा लगा लिया। घरवाली को बाहर काम करने नहीं दे सकता था और बेटी की शादी के लिए कर्जा लेना पड़ा। 30 हजार लिए थे, सूद सहित 50 हजार हो गए...लेनदार रोज घर में धमक देते और गालियाँ सुनाकर जाते। एक दिन थक गया और मौत में मुक्ति पा ली। ऐसा नहीं था गाँव में सरकार के अधिकारी नहीं आते थे, मगर मुट्ठी गरम करने के लिए पैसे कहाँ थे...सुना है कि किसानों के लिए कई योजनाएँ भी हैं...अपने गाँव में तो एक भी नहीं दिखती। जिले के मुख्यालय में फटेहाल किसानों को जाने की मंजूरी नहीं मिलती और मन्त्री जी गाँव तक आते नहीं। एक बार जिले तक भी गया था हरिया...दरवान ने ऐसा दुरदुराया कि फिर हिम्मत न पड़ी। खेत में काम कर पसीना बहाने वाला किसान सैम्पू – साबुन का खर्च कहाँ से उठाए। साबुन शहर से लाता भी तो सोने के गहने की तरह छुपाता...एक टिकिया कम से कम 3 महीने तो चले। कर्जा तो हरिया ने भी लिया था मगर रकम अभी इतनी बड़ी नहीं थी मगर भूख बढ़ती जा रही थी। गाँव के स्कूल में टाट पर बैठाकर बच्चों को पढ़ाते...बेटा सूरज कुछ दिन गया...मगर खेत में हाथ बँटाने वाला कोई न था, पढ़ाई छूट गयी।
21 को रैली थी..मई का महीना...झुलसाने वाली धूप। हरिया तैयार था। शहर तक जाना था...गाँव के पार हुक्काम सिंह ने मैटाडोर भेजी थी। उसकी तरह बहुत से हलवाहे थे...खेतों की फसल को हसरत भरी निगाह से देखते मैटाडोर में बैठ गए..गाँव को जी भर के देखा...क्या पता कल क्या हो?
राजधानी की सीमा पर उतार दिया गया, यहाँ से पैदल जाना था। पुलिस तैनात थी और हाथ में माइक, पेन और कैमरा लिए कुछ लोग भी थे...राम जाने कौन है। हरिया को ट्रक में से अनाज फेंकना था...मन कैसा तो हो रहा था...मर – मर के अनाज उगाया है...कैसे फेके...हाथ काँप रहे थे..मगर आँख के सामने भूखा परिवार और 1000 रुपए के गर्म नोट नाच गए....दुर्बल हो गया था, जोर लगाना पड़ा मगर किसी तरह गिरा दिया.....सड़क को सुनहरा करता गेहूँ बिखर गया था.....हरिया के मन में ख्याल आया...इसमें से थोड़ा अनाज उसके सूरज को मिल जाता...कम से कम पेट तो भरता। अब बारी दूध गिराने की थी...1000 रुपए अतिरिक्त....टैंकर गाड़ी के किनारे पर लाया...सामने फुट पर एक नंगे बच्चे पर नजर पड़ी। हरिया काँप गया...धीरे से पास में रखा गिलास निकाला...पानी पीने के लिए लाया था...उसमें थोड़ा दूध निकाला...चुपके से बच्चे को दिया...जी कड़ा किया और दूध का टैंकर पलट दिया। बच्चे के मुँह पर दूध की छींटे पड़ीं....कैमरों की रोशनी उजली सड़क पर तैर गयी। एक रिपोर्टर आया....कुछ मुँह में घुसा कर बोला...आप किसान हैं, इतना अन्न बर्बाद करते तकलीफ नहीं हुई। बवाल बढ़ गया था...पुलिस का लाउडस्पीकर गूँज रहा था...पुलिस वापस लौटने को कह रही थी...वहीं हुक्काम सिंह की आवाज भी एक साथ गूँज रही थी....भाइयों, वापस मत लौटना....हमको कर्जामाफी चाहिए...हरिया घबराकर पीछे हटा, रिपोर्टर पीछे दौड़ा....दो – चार और पीछे हाथ में पैड और मोबाइल लिए आ गए...कैमरे की चकाचौध से हरिया डर के भागा...तब तक किसी ने पुलिस पर पथराव कर दिया...हरिया बेतहाशा भाग रहा था...पाँव के नीचे गेहूँ, चावल, सब्जी, दूध सब आ रहे थे मगर उसे खबर नहीं थी....गोली चल गयी थी....कहाँ हरिया 10 – 20 लाख की सोच रहा था, कहाँ अब उसके पैर नहीं रुक रहे थे। उसके साथ आए मँगरु को गोली लगी थी...खून से लथपथ मँगरु सड़क पर कराह रहा था....पानी – पानी करते –करते प्राण छूटे। प्रजातन्त्र पार्टी के बड़े नेता का सिर फूटा था...हरिया ने देखा...उनके लिए स्ट्रेचर, पुलिस सब जुट गए...ये किसानों के लिए आन्दोलन है...हरिया बुदबुदाया...। गोलीकांड में 3 किसान मारे गए...हरिया ने देखा...पुलिस के बड़े अधिकारी ने बयान दिया कि गोली पुलिस ने नहीं चलायी। प्रशासन सकते में था, डीएम नहीं जानते थे कि बात इतनी बढ़ जाएगी...ऊपर तक खबर नहीं की थी...फोन लगाया....कृषि मन्त्री जी से बात करवा दीजिए....आवाज आयी...साहब व्यस्त हैं, योग दिवस की तैयारी कर रहे हैं। डीएम अखिलेश चौधरी परेशान थे...इधर हुक्काम सिंह और किसान नेता हरिहर चौधरी मीडिया के सामने मुख्यमंत्री को ललकार रहे थे....मुख्यमंत्री को जवाब देना होगा। कर्जमाफी कीजिए...किसान हलकान है...आन्दोलन चल रहा था। हरिया जम गया था...चाय और नाश्ता मिला तो जान में जान आयी...टीवी पर नजर गयी...4 लोग चिल्ला रहे थे, इतने में उसकी नजर एक चेहरे पर पड़ी...अरे...ये तो अपने सरपंच साहेब हैं...टीवी पर, एक रिपोर्टर आया...कुछ कहेंगे...अब हरिया का डर कम हो गया था, भागा नहीं...कहिए...सरपंच साहब को दिखाया और बोला....उनको पहचानते...रिपोर्टर लापरवाही से बोला...हाँ किसान नेता हैं, हरिया बोल पड़ा...उ हे तो हम सबको लाए हैं.....। रिपोर्टर के हाथ में ब्रेकिंग न्यूज लग गयी थी...हमारे साथ स्टूडियो चलिए...एंकर ने किसान नेता लाने को कहा था..काम बन गया आज के शो का। तभी टीवी पर प्रदेश के मन्त्री और मुख्यमंत्री की तस्वीर नजर आयी...शांति बनाने की अपील के साथ विपक्ष को लताड़ती हुई तस्वीर।
डीएम चाहते थे कि कोई भी मन्त्री एक बार इलाके में लोगों को समझा दे..तो मन्त्री साहब को डर था कि आन्दोलन का गुस्सा उन पर न निकल पड़े। शहर में जाम और अनाज की बर्बादी...अच्छा मसाला था मगर सरकार परेशान थी....चुनाव का गणित बिगड़ सकता था...आखिर समाधान मुख्यमंत्री भोलेनाथ ठाकुर ने निकाला....अनशन! अनशन करूँगा.....शहर के लीला मैदान में बैठूँगा...जब तक किसान भाई नहीं मानते...तब तक अनशन होगा। भारतवासी पार्टी के समर्थक तैयारी में जुट गए...मैदान में आनन – फानन में सफाई हुई, एसी...कूलर लगने लगा...तम्बू बिछे...कुर्सियाँ लगीं....डीएम साहेब निलंबित किए जा चुके थे।
अनशन की खबर प्रजातंत्र पार्टी को लगी....सीएम तो सब फुटेज खा जाएँगे....सामने कौन आए...सबकी नजर हुक्काम सिंह पर गयी....यहाँ भी अनशन....किसान नेता अनशन करेंगे किसानों के लिए...सरकार को झुकना होगा।
वहीं हरिया रिपोर्टर के साथ स्टूडियो में आ गया था, या यूँ कहें ला दिया गया था....उसे तरीके के कपड़े पहनाए गए....खाना खिलाया गया...बहस में उसे कुछ नहीं करना होता था...बस चुप रहना होता था...जहाँ बोलता...सारे बुद्धिजीवी...मन्त्री, नेता और गोरी वाली मेम साब बोलती...उसका चेहरा दिखने लगा था...चलते समय कुछ रुपए दिए गए...1000 रुपए। उसे एयर कंडिशन में रखना जरूरी था...कैमरे के सामने प्रेजेंटेबल दिखना जरूरी था, इसलिए वह 4 दिन स्टूडियो में सुरक्षाकमिर्यों के पास ठहरा दिया गया था।
मुख्य मन्त्री जी का अनशन शुरू हो गया था....कैमरों की नजर सीएम साहब के चेहरे पर जमी थी। मुख्यमन्त्री जी ने भरे गले से किसानों से आन्दोलन वापस लेने की अपील की, हर सम्भव सहायता करने का आश्वासन दिया। हरिया का मन भर आया....इतना बड़ा आदमी भूखा है....भूख तो गरीबों के लिए है।
काम हो गया था...स्टूडियो से वह बाहर निकल गया था...गाँव की खुली हवा में रहने वालों को एसी से कितने दिन मतलब रहे। भटकता – भटकता लीला मैदान के पास चला गया....सब परेशान...मुख्यमंत्री न खाए तो बाकी मन्त्री कैसे खाए...अनशन तो तुड़वाना भी होगा....हरिया बाहर बैठा सोच रहा था कि गाँव कैसे जाए....वहाँ चिन्ता हो रही थी कि किसानों से कैसे बुलवाया जाए कि मन्त्री जी अनशन खत्म कर दें। तभी भारतवासी पार्टी के युवा नेता बकबक सिंह की नजर हरिया पर पड़ी...टीवी पर उसने हरिया को देखा था.....अब हरिया ही एकमात्र सहारा था....अब हरिया की ड्यूटी यहाँ थी...2 हजार रुपए मिले....नये कपड़े....मुख्यमंत्री जी के पास ऐसे थोड़े न ले जाया जा सकता था। कैमरे फिर जमा हुए....अबकी हरिया ने मुख्यमंत्री से आन्दोलन वापस लेने की अपील की, उसी आन्दोलन की, जहाँ वह कुछ दिन पहले हरिया मोहरा था....मुख्यमंत्री जी मान गए...हरिया ने नींबू का शरबत पिलवाकर मुख्यमंत्री जी का अनशन तुड़वाया, मुख्यमंत्री जी ने गले लगाया...। अब 3 हजार रुपए आ गए थे...भागो की साड़ी ले सकेगा...भूखे दूध पीते बच्चे का चेहरा नाच गया....सब उसकी दुआ है..।

वहीं दूसरी ओर सरपंच साहब हरिया पर गरमा गए थे...पाँव की जूती मुकाबले में आ गया था...किसान नेता बन गया था...वे हुक्काम सिंह के साथ अनशन पर बैठ गए थे....मगर मुख्यमंत्री का अनशन तुड़वाकर हरिया बाजी मार गया था....जेब में 3 हजार रुपए, भागो की साड़ी...बीज..सूरज का स्कूल....सब हरिया के चेहरे के सामने थे....टीवी के परदे पर आने वाला किसान नेता बन गया था.....भारतवासी पार्टी का चेहरा...हरिया जीरो से हीरो बन गया था....आन्दोलन टूट रहा था...किसान घर लौट रहे थे....मन्त्री जी का अनशन भी खत्म हो गया था।

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