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दांव पर लगा एसएससी अभ्यर्थियों का भविष्य, आंखें खोलिए हुजूर

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-एसएससी सीजीएल में 5 लाख परीक्षार्थी, 55 हजार शिकायतें - सड़क पर उतरे शिक्षकों व विद्यार्थियों से बदसलूकी - एसएससी चेयरमैन ने गलती मानी नौकरी खासकर सरकारी नौकरी हर युवा का सपना होता है। मध्यमवर्गीय परिवारों में सरकारी नौकरी परिवारों का भाग्य बदल देती है औऱ इसके लिए अधिकतर युवा अपनी पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म भरते नजर आते हैं। भूख, प्यास व कष्ट सहकर, कई बार परिवार से दूर रहकर संघर्ष करते हुए कोशिश जारी रखते हैं मगर व्यवस्था को जैसे इन बच्चों की पीड़ा से कोई मतलब ही नहीं है। फिलहाल स्टाफ सलेक्शन कमिशन की नियुक्ति परीक्षाओं में गड़बड़ी को लेकर मामला गरमाया है। 194 केंद्रों पर परीक्षा रद्द हुई। 5 लाख परीक्षार्थी प्रभावित हुए। कोचिंग सेंटरों के शिक्षकों ने सड़कों पर उतरकर अपने विद्यार्थियों के हक में आवाज उठाय़ी। एसएससी के अध्यक्ष एस गोपालकृष्णन ने बताया कि कर्मचारी चयन आयोग हाल ही में हुई चयन पद चरण 13 की परीक्षा रद्द नहीं करेगा, बल्कि उन प्रभावित उम्मीदवारों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित कर सकता है जो उचित अवसर से वंचित रह गए थे। एसएससी सीजीएल (स्टाफ सिलेक्शन कमीशन कॉम्बाइ...

बंगाल की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने वाला हथौड़ा शिक्षक नियुक्ति घोटाला

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बंगाल की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों बेपटरी हो गयी है। पढ़ाने वाले सड़कों पर हैं और पढ़ने वाले संशय में दो पाटन के बीच पिस रहे हैं । बतौर पत्रकार शिक्षा बीट की ही खबरें की हैं और खूब की हैं। उन दिनों संवाददाता सम्मेलन होते थे तो वहां भी जाती थी और बहुत कुछ ऐसा था जिसका कारण तब समझ नहीं सकी मगर अब बात समझ रही है। 2011 के पहले भी आन्दोलन होते रहे हैं। शिक्षक सड़कों पर उतरे हैं। ऐसा नहीं है कि वाममोर्चा सरकार दूध की धुली थी मगर भ्रष्टाचार का जो घिनौना रूप अब देखने को मिल रहा है तब शायद सामने नहीं आ सका था। जो भी हो..भ्रष्टाचार की चक्की में पिसना तो निरपराधों को है। एक तरफ देश की संसद है जहां दागी भी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं, एक बार में ही माननीयों की तनख्वाह लाखों रुपये हो जा रही है और दूसरी तरफ हमारे देश के भविष्य का निर्माण करने वाले असंख्य युवा हैं जिनके मुंह से वह रोटी भी छीनी जा रही है जिसे उन्होंने अपनी मेहनत से अर्जित किया है। 26 हजार नौकरियां मतलब 26 हजार परिवारों का भविष्य दांव पर लग जाना और हजारों स्कूलों की व्यवस्था का बेपटरी हो जाना..यह खेल नहीं है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 3 अ...

सफलता की लिफ्ट अक्सर गिराती है, सीढ़ियों का सहारा लीजिए..इस्तेमाल मत कीजिए

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पेशेवर जीवन के दो दशक से अधिक का समय बीत चला है तो आज कई बातें उन महत्वाकांक्षी युवाओं और अवसरवादी संस्थानों से कहने का मन हो रहा है जो अपने संस्थानों के विश्वसनीय एवं निष्ठावान पुराने कर्मचारियों की भावनाओं के साथ शतरंज खेलते हैं । कर्मचारी जो रसोई में तेजपत्ते की तरह होते है, पहले उनको चढ़ाया जाता है, नींबू की तरह निचोड़ा जाता है और फिर जब वह सीनियर बनते हैं तो दूध में मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है। आजकल सबकी शिकायत रहती है कि निष्ठावान लोग नहीं मिलते। जो नये लोग मिलते हैं..वह संस्थान को प्रशिक्षण संस्थान समझकर सीखते हैं और चल देते हैं। एक बार आइने में खड़े होकर देखिए और आपको पता चल जाएगा कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। सबसे बड़ी बात यह है कि मालिकों को अब खुद से पूछना चाहिए कि क्या वह इस लायक हैं कि उनको कोई समर्पित कर्मचारी मिले जो उनके संस्थान के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दे। कॉरपोरेट जगत वकालत कर रहा है कि कर्मचारियों को 70 घंटे काम करना चाहिए..सवाल है क्यों करना चाहिए...और सबसे बड़ी बात आखिर इसके बाद कर्मचारियों को क्या मिलना है? क्या जिन्दगी में पैसा ही सब कुछ है और...

मैनेज करने से कुछ भी मैनेज नहीं होता...बोलना जरूरी है सही समय पर..

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आज बात परिवार व्यवस्था और पारिवारिक सम्बन्धों को लेकर करनी है। कलियुग का हवाला देकर सारा ठीकरा युवा पीढ़ी पर फोड़ दिया जाता है इसलिए बात जरूरी है। बात स्त्रियों की भूमिका और उनकी रसोई वाली राजनीति पर भी होगी और चालाकी से भरी चुप्पी पर भी होगी । पारिवारिक सेटिंग और अंडरस्टैंडिंग से उत्पन्न चुप्पी पर होगी। मतलब सम्बन्धों की आड़ में सौदेबाजी और अवसरवादिता पर भी होगी...आज चीरफाड़ होगी । इस बातचीत में अपने अनुभवों के आधार पर ही बात करनी है। कम्पनी टूटती है क्योंकि बॉस अपने कर्मचारियों को अपने अधीनस्थ विश्वासपात्रों के हाथों में उनके हाल पर छो़ड़ देता है और वह देखने की जहमत नहीं करता कि उनके अधीनस्थ बच्चों के साथ कैसा सलूक करते हैं। ठीक इसी तरह खानदान व परिवार टूटते हैं क्योंकि परिवार का मुखिया तब चुप रहता है जब उसे बोलना चाहिए और परिवार की इकाई में होने वाले घटनाक्रमों से या तो अनजान बना रहता है या जानबूझकर निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि जो हो रहा है उसकी निजी जिन्दगी को क्षति नहीं पहुंच रही । उसका इमोशनल अटैचमेंट या तो महज औपचारिकता मात्र है...या खानदान के दूसरे सदस्य उस पर हावी होकर अपना...