इस साल की बोर्ड परीक्षाएं तो समाप्त हुईं मगर हर साल की तरह नतीजे हैरत में डालने वाले थे। माध्यमिक और उच्चमाध्यमिक की परीक्षा में झंडा फहराने वाले जिले आईएससी और सीबीएसई की परीक्षा में नहीं दिखे। एकबारगी मानना मुश्किल था कि जिस शहर ने देश को एक नहीं दो टॉपर दिए, उसके नतीजे इतने खराब होंगे। जिलों के प्रति सहानुभूति और कोलकाता के प्रति विरक्ति नजरअंदाज करना कठिन है। लड़कियाँ तो मानों पीछे छूटती चली गयीं और ज्वाएंट एन्ट्रेंस परीक्षा के नतीजों ने तो मानो सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर लड़कियाँ हैं कहाँ? इन नतीजों के साथ एक बंधी - बँधायी मानसिकता भी दिखी, लड़कियाँ इंजीनियर नहीं बनना चाहतीं, शोध नहीं कर रहीं और विज्ञान में उनको दिलचस्पी नहीं है। जाहिर है जोखिम उठाने वाले क्षेत्रों में या समय लेने वाले क्षेत्रों में लड़कियाँ या तो खुद नहीं जाना चाहतीं या फिर उनको सामाजिक व्यवस्था इजाजत ही नहीं देती। महानगर में आयोजित हो रहे कॅरियर मेलों में भी लड़कियों की संख्या बेहद कम है। इन क्षेत्रों से होकर गुजरने वाले रास्ते निर्णायक रास्तों की ओर मुड़ते हैं और यही हाल रहा तो कहना पड़ेगा, दिल्ली अभी बहुत...
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आखिरकार धमाकों और गोलियों के बीच निगम का चुनाव खत्म हुआ, अब नतीजों का इंतजार है मगर कल जो नजारा था, उसे लोकतंत्र के अनुकूल तो नहीं कहा जा सकता। लोकसभा चुनावों में जो उत्साह था और लगता तो ऐसा ही है कि बंगाल में चुनाव औपचारिकता मात्र ही हैं क्योंकि स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा जैसा शब्द राजनीति में अब प्रासंगिक नहीं रहा, एक ही टीम बैटिंग भी करती है, गेंदबाजी भी करती है, कैच भी पकड़ती है और फिर चोरी का रोना भी रोती है। इस टीम को विरोधी नही, लगता है कि उसके खिलाड़ी ही मात देंगे। एक साल में काफी कुछ बदल गया। बहरहाल जिंदगी ने मानों नया मोड़ लिया है और खुद से जूझने के बाद आखिरकार मैं कह सकती हूँ जो होता है, अच्छा होता है, काश यह बात हमारे राज्यवासियों पर और देश पर भी लागू हो पाती, पता नहीं अच्छे दिन कहाँ थम गये,
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हो सकता है कि जो लिखने जा रही हूँ वह बहुतों को नागवार गुजरे , यह भी कहा जा सकता है कि कुछ नियम ही ऐसे हैं मगर नियम जब आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने लगे , तब ऐसा ही होता है , कहकर खुद को समझाना बहुत कठिन होता है , कुछ पेशेवर तकाजा भी है और हो सकता है कि यह दूतावासों से लेकर हवाई अड़्ों की संस्कृति हो। बात अमेरिकन सेंटर की हो रही है , जहाँ कई सालों से आना जाना होता रहा है। सुरक्षा के लिए जाँच भी तकाजा है , यह भी स्वीकार कर लिया जाए इसका तरीका बाध्य कर देता है कि यह सोचा जाए कि क्या हम अपने ही देश में हैं। और हाँ , तो दूसरों के बनाए नियम हम पर क्यों लागू होंगे। जाँच के नाम पर आपका सामान बिखेरकर तलाशी लेना , और फिर आपको आपको पानी पीने को बाध्य करना , अनचाहे ही शक का दायरा खड़ा करता है। सवाल यह है कि विदेशों में तो हमारे पूर्व राष्ट्रपति से लेकर अभिनेताओं तक को तलाशी के नाम पर अपमान सहना पड़ा है तो फिर मैं क्यों शिकायत कर रही हूँ। वैसे क्या बराक ओबामा को भी भारत आने पर तलाशी देनी पड़ी होगी। हद तो तब हो जाती है जब कई बार आपको असमय दवा खाने को कह दिया जाता है। बात विश्वा...
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महिला सशक्तीकरण का मतलब पुुरुषों का नहीं उस पितृसत्तात्मकता का विरोध करना है जो परंपरा के नाम पर स्त्रियों को कमतर समझकर उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखती है। कहने को स्त्री और पुरुष समाज के दो पहिए हैं मगर स्त्री वह पहिया है जिसे जिम्मेदारियों के नाम पर घिसा तो गया मगर अधिकारों का तेल नहीं लगने दिया गया। जो लोग परदा प्रथा और देवी बनाकर स्त्री से आज भी मध्ययुगीन सभ्यता में जीने की उम्मीद रखते हैं, जो स्त्री को उपभोग की सामग्री मानकर उस पर अधिकार जताते हैं, दहेज या प्रेम मे ं ठुकराए जाने पर उस पर तेजाब फेंकते है और बलात्कार या हिंसा को लड़कियों की नियति मानते हैं उनसे ही यह सवाल है, क्या आप शादी के नाम पर अपनी ससुराल को दहेज देना पसंद करेंगे, और वहां रहना पसंद करेंगे। कैेसे लगेगा जब दहेज के साथ आपको वह तमाम काम करने पड़ेे जो आपकी पत्नी करती है। क्या करेंगे जब धोखेबाजी की शिकार कोई प्रेमिका आपके चेहरे पर तेजाब फेंके। क्या होगा जब यौन हिंसा की घटनाएं आपके साथ हों। घर की इज्जत के नाम पर लड़कियों की जान लेने वालों को कैसा लगेगा जब ऐसी घटिया हरकतों के लिए लड़कियां हिंसक हो उठें, लड़कों क...
यह कहानी सलाम दुनिया में प्रकाशित हो चुकी है
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मोहरा - सुषमा त्रिपाठी " प्रदीप्त मुखर्जी , हमारी जोनल कमेटी के नये अध्यक्ष। पार्टी ने इनको यह जिम्मेदारी सौंपी है। उम्मीद है कि प्रदेश के दूसरे नेता भी उसी ईमानदारी से पार्टी को आगे बढ़ाएंगे , जिस तरह से प्रदीप्त बढ़ा रहे हैं। " तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज उठा। सभागार के बीच से एक दुबला - पतला सांवला लड़का मंच की ओर बढ़ा। उसके गले में हार डाला गया और वह संकोच से मानो दबा जा रहा था। तालियों के बीच मंच के नीचे दो हाथ अपनी मुट्ठियों को भींचे तने जा रहे थे , कभी इन हाथों ने इसी पार्टी के लिए चोटें भी खायीं थीं और ये हाथ किस...
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एनडीटीवी को बॉय कहा बरखा दत्त ने , अपनी मीडिया कंपनी स्थापित करेंगी , पढ़ें प्रणय और राधिका का पत्र · February 18, 2015 · Written by B4M Reporter · Published in आवाजाही-कानाफूसी User Rating: 5 / 5 Top of Form Please rate Vote 1 Vote 2 Vote 3 Vote 4 Vote 5 Bottom of Form बरखा दत्त का नाम एनडीटीवी के लिए पर्याय हो चुका है. पर ये नाता अब टूट रहा है. बरखा दत्त अपनी मीडिया कंपनी बनाएंगी. बरखा की एनडीटीवी से विदाई पर चैनल के मालिक-मालकिन प्रणय राय और राधिका राय ने अपने सभी कर्मियों को एक आंतरिक मेल किया है , जो इस प्रकार है... From: Prannoy Roy To: Everyone in NDTV Group Subject: The very best Dear All Barkha Dutt was only 23 when she joined N...