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हिन्दी केवल हिन्दी प्रदेश की ही नहीं बल्कि हर भारतीय की भाषा है

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हिन्दी हमारी अपनी भाषा है और यह किसी एक दिवस विशेष की मोहताज नहीं है इसलिए आज सितम्बर का महीना नहीं होने के बावजूद हिन्दी को लेकर अपनी बात कहने जा रही हूँ। मंच पर उपस्थित हिन्दी के विद्वतजन, गुरुजन और मेरे प्यारे दोस्तों पता है कि आपने हिन्दी को चुना है और अब आपके मन में अपने चयन को लेकर काफी प्रश्न उठ रहे हैं। अब तो राजभाषा, राष्ट्रभाषा के झगड़े के साथ बोलियों को भी हिन्दी के लिए खतरा बताया जा रहा है। हिन्दी में रोजगार के अभाव का रोना रोया जा रहा है और राष्ट्रभाषा के रूप में भाषा के विस्तार की चाह को भी साजिश बताया जा रहा है, मैं इन सभी मुद्दों पर अपनी बात रखूँगी और मेरा प्रयास होगा कि आप जब इस मंच से जाएं तो एक नयी उर्जा के साथ जाएं  और मुझे विश्वास है कि यह होगा। सबसे पहले समझते हैं कि यह विरोध क्यों हो रहा है। हिन्दी हमारी राजभाषा है और वह विभिन्न बोलियों को लेकर बनी निर्मित हुई है। संविधान में इसे राजभाषा का दर्जा देकर बड़ा बनाया गया है। मैं आपसे पूछती हूँ कि अगर आपके परिवार में आप आत्मनिर्भर नहीं हैं तो आप तो अपने बड़ों से ही उम्मीद करेंगे कि वह आपका खर्च वहन करे और आ

हिन्दी को बोलियों से नहीं साहित्यिक साम्राज्यवाद फैलाने वालों से खतरा है

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डॉक्टर दो तरह के होते हैं, एक वे जो चाहते हैं कि मरीज में उत्साह बना रहे और वह जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए और दूसरे वे जो चाहते ही नहीं है कि मरीज को पता चले कि वह ठीक हो गया है वरना उनकी डॉक्टरी का भट्टा बैठ जाएगा, बेचारे बेरोजगार हो जाएंगे। हिन्दी की समस्या यही है कि हिन्दी के कई विद्वान और आलोचक चाहते ही नहीं हैं कि हिन्दी आम जनता तक पहुँचे वरना उनकी दुकानदारी बैठ जाएगी। वह कभी भाषा की शुद्धता को अडंगा बनाते हैं तो कभी बोलियों के अलग होने से डरते हैं मगर उनको यह अब मान लेना चाहिए कि हमारी भाषा और हमारी संस्कृति किसी विश्वविद्यालय, संस्थान, आलोचना या गोष्ठियों की सम्पत्ति नहीं है। वह आम भारतीय की भाषा है, फिर वह एक रिक्शेवाला बोले या पान की दुकान चलाने वाला या दक्षिण भारत में कोई डोसा बेचने वाला और वह हिन्दी ऐसे ही बोलेंगे जैसे आप हिन्दी मिश्रित अँग्रेजी बोलते हैं मसलन कॉलेज और कालेज और ऑफिस को आफिस। क्या आपके गलत बोलने से अँग्रेजी को क्षति पहुँची ? नहीं, क्योंकि आप खुद ही मान रहे हैं कि अँग्रेजी विकसित हो रही है तो जो गलत हिन्दी बोल रहा है, उसे सुधारने में आप उसका सहयोग कर सकते

जीतने वाला नायक भले हो मगर हारने वाला खलनायक नहीं होता

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रियो ओलम्पिक्स में साक्षी मलिक और पी वी सिन्धु के पदक जीतने और दीपा कर्माकर के चौथे स्थान पर रहने के बाद महिला सशक्तीकरण के प्रचारकों की बाढ़ आ गयी है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी खिलाओ जैसे नारे लग रहे हैं तो कहीं पर इस प्रदर्शन मात्र से परिस्थिति में बदलाव की उम्मीद की जा रही है। साक्षी का पदक जीतना इसलिए भी खास है क्योंकि वह हरियाणा से हैं जहाँ लड़कियों का बच जाना ही बड़ी बात है। सिन्धु को लेकर अब आँध्र और तेलंगाना में जंग शुरू हो गयी है तो दूसरी ओर शोभा डे जैसे लोग भी हैं जो खिलाड़ियों पर तंज कसकर लाइमलाइट में आने के बहाने ढूँढते हैं और फटकार लगने के बाद सुर बदलने लगते हैं। समूचा हिन्दुस्तान रो रहा है कि हमारे खिलाड़ी पदक नहीं जीत सके और उनका प्रदर्शन बेहद लचर रहा। सच कहूँ तो महान के देश के हम नागरिक और यहाँ की व्यवस्था बेहद स्वार्थी और आत्मकेन्द्रित हैं जिनको किसी की तकलीफ से कोई मतलब नहीं। रियो के बहाने सशक्तीकरण की राह निकालने वालों से पूछा जाए कि क्या वे अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहेंगे तो जवाब होगा नहीं। दीपा कर्माकर और सिन्धु की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले अपनी बे

एक कंदील मरेगी तो हजार और कंदील उठ खड़ी होंगी, जुर्म के खात्मे के लिए

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तो कंदील आखिर तुम मार डाली गयी। तुम भूल गयी कि ऐसे देश में हो जहाँ औरतों का होना ही गुनाह है , वह तो बस पीछे चलने के लिए होती हैं। तुम्हारा भाई कहता है कि उसने अपनी शान ( ?) के लिए तुम्हारी जान ली है मगर सच तो येे है कि वह तो सिर्फ एक मोहरा है जिसका दिमाग उस लोगों के इशारे पर चलता है जिसकी टोपी सिर पर रखकर तुमने वीडियो बनाने की गुस्ताखी कर डाली। ऐसा नहीं है कंदील कि तुम हमें बहुत अच्छी लगती थी , नहीं तुम अच्छी नहीं थी ( ?) । भला गुस्ताख औरतें अच्छी होती हैं कभी ? तुम्हारा बड़बोलापन   न जाने कितनी बार मीडिया और यूट्यूब की टीआरपी बढ़ाने के काम आया था मगर उनको मसाला देने वाले बहुत हैं। मुझे तो तुम बिल्कुल अच्छी नहीें लगती थी मगर अच्छा नहीं लगने का मतलब ये थोड़ी न है कि हम जीने का हक ही छीन लें। तुमने एक भारतीय क्रिकेटर की तारीफ की , ये तुम्हारा गुनाह ही तो है। भले ही लोग तुम्हारे लिए सहानुभूति दिखा रहे हैं मगर कंदील , कुछ तुम्हारे मुल्क में और हमारे मुल्क में भी बहुत से लोगों के गुरुर को ठंडक मिली होगी कि उन्होंने एक गुस्ताख औरत को सबक सिखा दिया। तुम नहीं जानती थी कि कंदील जैसी औरतें