नैन्सी महज एक घटना नहीं, तमाचा है
हम बेहद क्रूर समय में जी रहे हैं। क्रूर ही नहीं बल्कि वीभत्स और संवेदनहीन कहना शायद ज्यादा सही है। इस पर संवेदनहीनता के तार जब परिवार से जुड़ने लगते हैं तो स्थिति और खतरनाक हो जाती है मगर बात सिर्फ पारिवारिक रंजिश तक नहीं है बल्कि यह यह सवाल हमारे सामाजिक ढाँचे पर भी खड़ा होता है। बिहार की नैन्सी झा की बर्बर हत्या महज न्याय व्यवस्था पर ही नहीं बल्कि हमारी सामाजिक व्यवस्था पर भी करारा तमाचा है। जिस देश में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं, उस देश के भविष्य का अच्छा होना महज मिथक है और कुछ नहीं। 12 साल की नैन्सी डीएम बनना चाहती थी मगर उसके सपने नोंच लिए गए। पारिवारिक रंजिश में हत्या होना कोई नयी बात नहीं हैं, उत्तर भारत और पूर्वी भारत में तो इसे बेहद सामान्य तरीके से लिया जाता है मगर नैन्सी के साथ जो हुआ, वह आपको अन्दर से हिला डालने के लिए काफी है। नैन्सी का परिवार सदमे में है, माँ खामोश है और पिता अन्दर से टूट गए हैं मगर परिवार ही नहीं, उस बच्ची के साथ हुई क्रूरता से पूरी मानवता सदमे में हैं। नैन्सी को मार डाला गया क्योंकि हत्यारे उसकी बुआ की शादी रोकना चाहते थे। नैन्सी के दादा सत्येंद्र झा