जीता कोई भी हो...हारी तो बस जनता है
चुनाव खत्म हो चुके हैं....तीसरी बार तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने राज्य की कमान सम्भाल ली है..बड़े जोर - शोर से तृणमूल की जीत का डंका बजाया जा रहा है.....तमाम बड़े और आधुनिक बुद्धिजीवी...कलाकार...खिलाड़ी...पत्रकार...सब के सब दीदी की महिमा गाने में लगे हैं....सही भी है...क्योंकि दुनिया चढ़ते सूरज को सलाम करती है...समय गवाह है कि सत्ता जिसके पास रहती है...लोग वहीं जाते हैं....जाहिर सी बात है...सफलता किसे नहीं अच्छी लगती...जीतने वाले से सब नजदीकियाँ बनाकर रखते हैं...उनके सामने झुकते ही नहीं...चरण वंदना तक करने लगते हैं...लेकिन अपनी आत्मा से पूछिएगा तो....इसमें क्या सचमुच प्रेम है....या आतंक है...और यह आतंक..दोनों ही तरफ से है और बीच में पिस रहे हैं लोग...आम जनता...जिसका कोई अपराध नहीं...अपराध है तो बस इतना कि उसने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग किया...आधुनिक भारत में आज यही सबसे बड़ा अपराध है...न..मैं किसी का पक्ष नहीं ले रही...पर क्या यह सच नहीं कि तृणमूल ने भाजपा का भय दिखाकर तीसरी बार सत्ता हासिल की है....खासकर मुसलमानों को भाजपा का भय दिखाया...मुसलमानों ने तो भाजपा को रोकने क...